संवाददाता:-
हर्षल रावल
02 अप्रैल, 2025
सिरोही/राज.
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सिरोही के अर्बुदांचल पहाड़ियों के बीच दो शेर पर कल्याणी रूप में विराजमान हैं मां भद्रकाली, मां स्वयं यहां भद्रकाली के रूप में विराजमान हुई थी
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सिरोही। आज हम बात कर रहे हैं सिरोही जिले के आबूरोड़ से समीप अंर्बुदाचल से सटे सिरोही जिले की, जो अर्बुदांचल की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसे देवभूमि और तपोभूमि भी कहा जाता है। यहां चारो ओर एक से बढ़कर एक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं, जो अपना इतिहास समेटे हुए हैं। इनमें से एक अतिप्राचीन मंदिर जो आबूरोड शहर से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वैसे तो इस मंदिर की बहुत सारी विशेषताएं हैं। इनमें सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर माता भद्रकाली दो शेर पर सवार होने के साथ ही माता भक्तों के कल्याण के लिए कल्याणी रूप में विराजमान है।
आबूरोड शहर से करीब पांच किलोमीटर दूर ऋषिकेश में मनोरम पहाड़ियों के बीच यह प्राचीन मंदिर स्थित है। यहां शहर के रेलवे स्टेशन और रोडवेज बस स्टैंड दोनों ही स्थानों से ऑटो अथवा टैक्सियों के साथ स्वयं के वाहनों से सरलता से पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर का शिवपुराण में उल्लेख किया हुआ है। भद्रकाली मंदिर का इतिहास पांच हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है तथा यह अमरावती नगरी से जुड़ा हुआ है।
मान्यताओं के अनुसार, अमरावती नगरी के राजा अम्बरीष की कई वर्ष की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ऋषिकेश, कर्णिकेश्वर महादेव एवं माता काली प्रकट हुई थी। राजा ने माता भद्रकाली से उनके इसी स्वरूप में यहां विराजमान होने का वर मांगा था। उसके पश्चात से माता यहां भक्तों का कल्याण करने के लिए कल्याणी रूप में विराजमान है तथा दो शेरों पर सवार है। वर्तमान में यह मंदिर सिरोही देवस्थान बोर्ड के अधीन है।
गुजरात के ब्राह्मण समाज की कुलदेवी है मां भद्रकाली:-
माता भद्रकाली स्थानीय लोगों की तो आस्था का केंद्र है ही। इसके साथ ही समीपवर्ती गुजरात के सिद्धपुर एवं मेहसाणा के ब्राह्मण समाज की कुलदेवी हैं। ऐसे में वहां से काफी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए यहां आते हैं। वैसे तो यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं की आवाजाही लगी रहती है। लेकिन जब बात नवरात्रि की तो मंदिर परिसर में मेले सा वातावरण बना रहता है। मंदिर के ठीक समक्ष की ओर श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धर्मशाला भी है। भद्रकाली मंदिर पराक्रमी राजा अम्बरीश द्वारा स्थापित है तथा इस मंदिर को अब तक चार बार बनाया जा चुका है। वर्तमान मंदिर करीब 300 वर्ष पुराना है।
यह है मंदिर की विशेषताएं:-
राजा अम्बरीष ने माता भद्रकाली के मंदिर का निर्माण करवाया था और माता की हूबहू प्रतिमा की स्थापना करवाई थी। इसमें माता भद्रकाली हाथ में त्रिशूल, माला, घंटी और कमंडल धारण किए हुए हैं। माता भद्रकाली दो शेरों पर सवार हैं। दूसरी बार साधु संतों ने दूसरा मंदिर बनवाकर माता की प्रतिमा की स्थापना करवाई थी। इसके पश्चात तीसरी बार मंदिर बनवाकर माता की मूर्ति स्थापित करवाई गई थी। तीनों मंदिरों में प्रतिमा को पश्चिम मुखी विराजित किया गया था।
भद्रकाली ने राजा को स्वप्न में दिए थे दर्शन:-
प्राचीन कथा के अनुसार, प्राकृतिक आपदाएं आने के साथ मंदिर और प्रतिमा मिट्टी में दबने लगी। इस पर माता भद्रकाली ने तत्कालीन सिरोही रियासत के महाराव केसरी सिंह को स्वप्न में दर्शन देकर उनकी प्रतिमा के मिट्टी में दबने और नए मन्दिर में प्रतिमा स्थापित करने के लिए कहा था। इस स्वप्न के पश्चात 1916 में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। उपस्थित मंदिर में देवी माता की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई गई थी। महाराव केसर सिंह ने पूर्वोन्मुखी प्रतिमा स्थापित करवाकर प्रतिष्ठा करवाई थी। पुराने दो मंदिरों में से एक मंदिर वर्तमान मन्दिर के पीछे और सबसे पुराना मंदिर वर्तमान मन्दिर के समक्ष सड़क के दूसरी तरफ पहाड़ी पर बना हुआ है।