GSAT-N2: भारत और अमेरिका के बीच स्पेस क्षेत्र में एक नई साझेदारी को दिखाता है. साथ ही, यह मिशन भारत की स्पेस एजेंसी की उन्नत क्षमता को भी प्रदर्शित करता है, जिससे भविष्य में और भी बड़ी परियोजनाओं के लिए एक मजबूत बुनियाद तैयार हो रही हैं. एलन मस्क की स्पेसएक्स कंपनी भारत के GSAT-N2 कम्युनिकेशन सैटेलाइट को लॉन्च कर दिया है, जिससे इंटरनेट कनेक्टिविटी का नया युग शुरू होने जा रहा है। GSAT-N2 को आज अंतरिक्ष में भेजा गया है। इसे अंतरिक्ष में भेजने का मकसद, भारत की ब्रॉडबैंड जरूरतों को पूरा करना है।
इस सैटेलाइट से होने वाले कई फायदों में एक फायदा ये भी है, कि अब फ्लाइट में यात्रा करते वक्त भी इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सकेगा। लेकिन हम इस सैटेलाइट और मिशन के बारे में क्या जानते हैं? और भारत ने एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स को क्यों इस सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए चुना और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन को क्यों नहीं चुना गया?
GSAT-N2 सैटेलाइट मिशन क्या है?
GSAT-N2 एक हाई थ्रूपुट Ka-बैंड सैटेलाइट है। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, यह GSAT सैटेलाइट की श्रृंखला में लेटेस्ट सैटेलाइट है। GSAT-N2 को सरकारी स्वामित्व वाली न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) ने विकसित किया है। और ISRO की वाणिज्यिक शाखा NSIL, GSAT-N2 के फंड और संचालन के लिए जिम्मेदार है।
इस उपग्रह का मिशन जीवनकाल 14 वर्ष है। इसे 19 नवंबर 2024 को फ्लोरिडा के केप कैनावेरल से लॉन्च किया गया है। इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था, “स्पेसएक्स का फाल्कन-9 19 नवंबर को इसरो के Gsat-20, जिसे GSAT N-2 भी कहा जाता है, को लॉन्च करेगा।”
इस सैटेलाइट का वजन 4,700 किलोग्राम है।
यह सैटेलाइट हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल वीडियो और ऑडियो ट्रांसमिशन प्रदान करेगा।
GSAT-N2 भारत का सबसे एडवांस उपग्रह है। एडवांस Ka बैंड आवृत्ति – जो 27 और 40 गीगाहर्ट्ज़ (GHz) के बीच रेडियो आवृत्तियों की एक श्रृंखला है – वो उपग्रह को उच्च बैंडविड्थ प्रदान करने की अनुमति देती है। GSAT-N2 32 बीम के साथ Ka-बैंड HTS क्षमता प्रदान करता है, जिसमें अंडमान और निकोबार और लक्षद्वीप द्वीप समूह सहित पूरे भारत में कवरेज है।
इनमें से आठ संकीर्ण स्पॉट बीम पूर्वोत्तर में होंगे और बाकी भारत के बाकी हिस्सों में होंगे। बीम को मुख्य भूमि पर स्थित हब स्टेशनों द्वारा समर्थित किया जाएगा।
बेंगलुरु में यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के निदेशक डॉ. एम. शंकरन ने बताया, “जीसैट-20 भारत का सबसे अधिक क्षमता वाला सैटेलाइट है।”
जीसैट-एन2 की 80 प्रतिशत क्षमता निजी कंपनी को बेची जा चुकी है। एनडीटीवी के अनुसार, बाकी 20 प्रतिशत भी विमानन और समुद्री क्षेत्र में निजी कंपनियों को बेची जाएगी। जीसैट-एन2 केंद्र की ‘स्मार्ट सिटी’ पहल को बढ़ावा देगा। यह विमानों में इंटरनेट कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाने में भी मदद करेगा।
18 नवंबर की आधी रात को, एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स ने केप केनावेरल, फ्लोरिडा से अपना फाल्कन 9 रॉकेट लॉन्च किया, जो भारतीय स्पेस एजेंसी ISRO के लिए बेहद महत्वपूर्ण था. इस उड़ान में लॉन्च किया गया सैटेलाइट, जीसैट 20, भारत के लिए एक बड़ा कदम साबित हो सकता है, क्योंकि यह न केवल उन्नत संचार तकनीक से लैस है, बल्कि यह दूर-दराज के इलाकों और विमानों में भी इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराएगा.
GSAT-20: एक नई शुरुआत
जीसैट 20 (या जीसैट एन-2) एक 4700 किलोग्राम वजनी कमर्शियल सैटेलाइट है, जिसे स्पेस कॉम्प्लेक्स 40, फ्लोरिडा से लॉन्च किया गया. यह सैटेलाइट अमेरिकी स्पेस फोर्स के नियंत्रण वाले लॉन्च पैड से उतरा. इसरो के चेयरमैन डॉ. श्रीधर पणिकर सोमनाथ ने मिशन की सफलता की पुष्टि करते हुए बताया कि इस सैटेलाइट को पूरी तरह से तैयार किया गया है और इसकी ऑपरेशनल अवधि 14 साल है.
ISRO और SpaceX की पहली साझेदारी
यह पहली बार था जब ISRO ने स्पेस एक्स के साथ सहयोग किया था. इस साझेदारी के माध्यम से, इसरो ने फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए जीसैट 20 सैटेलाइट को लॉन्च किया. इस सैटेलाइट में अत्याधुनिक फ्रीक्वेंसी का उपयोग किया गया है, जो इसे अधिक बैंडविथ प्रदान करता है और संचार क्षमता को बेहतर बनाता है.
भारत ने मिशन के लिए SpaceX को क्यों चुना?
इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह सैटेलाइट का काफी ज्यादा वजन होना है।
ISRO का लॉन्च व्हीकल मार्क-III (LVM3) M, जो भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का ‘अच्छी तरह से सिद्ध और विश्वसनीय भारी लिफ्ट लांचर’ है, 4 टन तक के वजन वाले संचार उपग्रहों को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में ले जा सकता है।
‘बाहुबली’ या ‘फैट बॉय’ के नाम से मशहूर LVM3, 8 टन तक का पेलोड भी पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में ले जा सकता है। LVM3 ने हाल ही में चंद्रयान-3 मिशन को चंद्र यात्रा पर लॉन्च किया था। इससे पहले, रॉकेट का इस्तेमाल 2019 में चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान को लॉन्च करने के लिए किया गया था।
दूसरी ओर, इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, फाल्कन 9 रॉकेट 8 टन का पेलोड GTO में पहुंचा सकता है। NDTV के अनुसार, यह स्पेसएक्स के साथ NSIL का पहला लॉन्च होगा। इसने लॉन्च के लिए मस्क के स्वामित्व वाली कंपनी को 500 करोड़ रुपये का भुगतान किया है।
इसरो ने पहले अपने सबसे बड़े उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए फ्रांस के एरियनस्पेस का इस्तेमाल किया था। हालांकि, एरियनस्पेस के पास इस समय इसरो के लिए कोई वाणिज्यिक स्लॉट उपलब्ध नहीं है।
ऐसा इसलिए है, क्योंकि कंपनी ने पिछले साल अपने एरियन-5 रॉकेट को बाहर भेज दिया था, जबकि एरियन-6 के लिए स्लॉट पहले ही आरक्षित किए जा चुके हैं। भारत चीन की वाणिज्यिक सेवाओं का उपयोग करने पर विचार नहीं करता है, जबकि रूस, यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा हुआ है।सरकारी स्वामित्व वाली NSIL ने पहले जून 2022 में GSAT-24 लॉन्च किया था। GSAT-24 की पूरी क्षमता सैटेलाइट टेलीविज़न सेवा टाटा प्ले द्वारा बुक की गई थी।
इससे स्पेसएक्स ही एकमात्र व्यवहार्य विकल्प रह जाता है। सरकारी स्वामित्व वाली NSIL ने पहले जून 2022 में GSAT-24 लॉन्च किया था। GSAT-24 की पूरी क्षमता सैटेलाइट टेलीविज़न सेवा टाटा प्ले द्वारा बुक की गई थी।
ISRO वर्तमान में अपना नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) विकसित कर रहा है, जो 4 टन से अधिक वजन वाले उपग्रहों को लॉन्च करने में मदद करेगा। 8,240 करोड़ रुपये के बजट वाला NGLV, LVM3 की पेलोड क्षमता को तीन गुना कर देगा।
यह LVM3 की तुलना में 1.5 गुना अधिक कीमत पर उपलब्ध है।CNGLV में पुनः उपयोग योग्य पहला चरण होगा। यह LEO में 30 टन और GTO में 10 टन भार डाल सकेगा।
स्पेस एक्स के रॉकेट की ऑर्बिटल क्लास की क्षमता है, जिसका मतलब है कि यह रॉकेट पृथ्वी के लोअर ऑर्बिट में पेलोड को पहुंचाने के लिए सक्षम है. फाल्कन 9 रॉकेट 70 मीटर लंबा और 3.7 मीटर व्यास वाला है, और इसमें 9 मर्लिन इंजन होते हैं, जिनकी कुल ताकत 90,000 हॉर्सपावर के बराबर होती है.
रॉकेट के उन्नत तकनीकी पहलू
फाल्कन 9 रॉकेट की विशेषता यह है कि यह रीयूजेबल है, यानी एक बार अंतरिक्ष में जाने के बाद यह रॉकेट वापसी कर सकता है और पुनः उपयोग के लिए तैयार हो जाता है. इसका सिस्टम फ्लाइट पाथ रिकॉर्ड करता है, यानी रॉकेट जिस रास्ते से जाता है, वह उसे याद रखता है, और फिर उसी मार्ग का अनुसरण करते हुए वापस लौटता है. रॉकेट की वापसी को सुनिश्चित करने के लिए कोल्ड गैस थ्रस्टर्स, ग्रिड फिन और री-इग्नाइटेबल इंजन का उपयोग किया जाता है.
इस रॉकेट में 9 मर्लिन इंजन होते हैं, जो रॉकेट ग्रेड केरोसिन और लिक्विड ऑक्सीजन से संचालित होते हैं. जब रॉकेट अंतरिक्ष में पहुंचता है, तो निचला हिस्सा पृथ्वी पर गिर जाता है, और ऊपरी हिस्सा सैटेलाइट को लोअर ऑर्बिट में स्थापित कर देता है.
ISRO और स्पेस एक्स की साझेदारी: भविष्य की दिशा
यह लॉन्च ISRO के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है, क्योंकि यह भारत और अमेरिका के बीच स्पेस क्षेत्र में एक नई साझेदारी को दिखाता है. साथ ही, यह मिशन भारत की स्पेस एजेंसी की उन्नत क्षमता को भी प्रदर्शित करता है, जिससे भविष्य में और भी बड़ी परियोजनाओं के लिए एक मजबूत बुनियाद तैयार हो रही है.
यह सफलता न केवल भारत के लिए गर्व की बात है, बल्कि इससे वैश्विक स्पेस समुदाय में भारत की स्थिति और मजबूत होगी, और इसके साथ ही अंतरिक्ष अन्वेषण में नई संभावनाओं की राह भी खोलेगी.