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वाराणसी।। पौराणिक आध्यात्मिक ऐतिहासिक काशी जो वैदिक काल से जुड़ा है काशी का इतिहास, वेदों और पुराणों में मिलता है उल्लेख, साहित्य, ज्ञान, धर्म और संस्कृति का रहा है केंद्र मौर्य और गुप्त वंश के राजाओं ने भी किया है शासन प्राचीन काल से ही संस्कृति और आध्यात्म का केंद्र रही है काशी

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अंकुर कुमार पाण्डेय ब्यूरो चीफ
सत्यार्थ न्यूज वाराणसी
वाराणसी।। पौराणिक आध्यात्मिक ऐतिहासिक काशी जो वैदिक काल से जुड़ा है काशी का इतिहास, वेदों और पुराणों में मिलता है उल्लेख, साहित्य, ज्ञान, धर्म और संस्कृति का रहा है केंद्र मौर्य और गुप्त वंश के राजाओं ने भी किया है शासन
प्राचीन काल से ही संस्कृति और आध्यात्म का केंद्र रही है काशी

वाराणसी। काशी, जिसे वर्तमान में वाराणसी के नाम से जाना जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के किनारे स्थित एक अत्यंत प्राचीन शहर है। यह शहर न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व भी अत्यधिक रहा है। काशी को विश्व का सबसे प्राचीन जीवित शहर माना जाता है, और इसकी स्थापना का उल्लेख वैदिक युग से मिलता है। इसका नाम काशी का अर्थ है “प्रकाश” और यह शहर लंबे समय से ज्ञान, धर्म, और सांस्कृतिक उत्कृष्टता का केंद्र रहा है। काशी का प्राचीन इतिहास वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। ऋग्वेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में काशी का उल्लेख है, जो इसे भारत के सबसे पुराने धार्मिक स्थलों में से एक बनाता है। वैदिक युग में काशी ज्ञान, शिक्षा, और धर्म का प्रमुख केंद्र रहा। यह क्षेत्र ऋषियों और मुनियों का निवास स्थान था, जहाँ कई धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांत विकसित किए गए थे। ऐसा कहा जाता है कि महान दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने यहाँ शैव धर्म की पुनर्स्थापना की थी।
संकराचार्य जयंती
रामायण और महाभारत में काशी का उल्लेख
प्राचीन हिन्दू महाकाव्यों, रामायण और महाभारत में भी काशी का उल्लेख मिलता है। रामायण में वर्णन मिलता है कि जब काशी नरेश ने महर्षि विश्वामित्र का अपमान कर दिया था, तब भगवान श्री राम ने काशी नरेश का वध करने का संकल्प लिया था। इसके साथ ही महाभारत काल में भीष्म ने अपने छोटे भाई के लिए काशी नरेश की पुत्री का हरण किया था। वहीं भगवान श्री कृष्ण भी अपने समय में पत्नियों संग कई बार काशी में रुके थे, माधव के पदचिन्ह काशी के कई मंदिरों में मौजूद हैं।

बुद्धकालीन काशी
ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी के दौरान, जब गौतम बुद्ध ने अपनी शिक्षा की शुरुआत की, काशी एक महत्वपूर्ण शहर था। वाराणसी के पास स्थित सारनाथ वह स्थान है, जहाँ बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था, जिसे “धर्मचक्र प्रवर्तन” के नाम से जाना जाता है। इस घटना के बाद, काशी बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थल बन गया। यहाँ कई बौद्ध विहार और मठ बने और बुद्ध का संदेश दूर-दूर तक फैल गया। काशी ने बौद्ध धर्म के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सारनाथ, जो काशी के निकट स्थित है, बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र बन गया था और यहाँ पर कई महत्वपूर्ण स्तूप और मठ बने थे। बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ, काशी ने एक धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में अपनी पहचान को और भी सुदृढ़ किया।
सारनाथ।।। मौर्य और गुप्त काल
मौर्य साम्राज्य के दौरान काशी का राजनीतिक और आर्थिक महत्व और बढ़ गया। मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपने शासन का एक महत्वपूर्ण अंग बनाया और वाराणसी और सारनाथ जैसे धार्मिक स्थलों का विकास किया। इस काल में काशी व्यापार का भी एक प्रमुख केंद्र बन गया था, क्योंकि गंगा नदी के किनारे होने के कारण यह व्यापार और आवागमन के लिए एक उपयुक्त स्थान था।
गुप्त काल में भी काशी ने अपने सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को बनाए रखा। यह काल भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग माना जाता है, और काशी में कला, विज्ञान, और साहित्य का उन्नयन हुआ। काशी में मंदिरों का निर्माण हुआ और यह हिन्दू धर्म का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।
मध्यकाल और मुस्लिम शासन
11वीं शताब्दी के बाद, काशी ने विभिन्न मुस्लिम शासकों का शासन देखा। महमूद गजनवी और फिर कुतुब-उद-दीन ऐबक ने काशी पर आक्रमण किया और इसे लूटने की कोशिश की। इसके बाद, मुगल साम्राज्य के समय, विशेष रूप से औरंगज़ेब के शासन के दौरान, काशी के कई प्राचीन मंदिरों को नष्ट किया गया और उनकी जगह मस्जिदों का निर्माण किया गया। इसके बावजूद, काशी ने अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को बचाए रखा और यह हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बना रहा।
औरंगजेब द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर वहाँ ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया, जिसे लेकर बाद में भी कई विवाद रहे। परंतु इस दौरान भी हिंदू समाज ने अपने धार्मिक स्थानों को पुनः स्थापित करने के प्रयास किए। मुगल शासन के अंत में और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के आगमन के साथ, काशी ने एक नए दौर का स्वागत किया।

ब्रिटिश काल
ब्रिटिश शासन के दौरान काशी ने एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के अधिकांश हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया, और काशी भी इसका हिस्सा बन गया। ब्रिटिशों ने यहाँ का प्रशासनिक और राजनीतिक ढाँचा बदल दिया, लेकिन काशी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बरकरार रहा। ब्रिटिश काल के दौरान काशी में शिक्षा और साहित्य का भी विकास हुआ, और यहाँ के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, जिसे पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1916 में स्थापित किया था।इस काल में काशी को सांस्कृतिक पुनर्जागरण का केंद्र माना गया, जहाँ न केवल धार्मिक गतिविधियाँ बल्कि साहित्यिक और शैक्षिक गतिविधियाँ भी अपने चरम पर थीं। काशी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और यहाँ के कई विद्वानों और स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
काशी का धार्मिक महत्व केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है। यहाँ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर, पार्श्वनाथ का जन्म भी हुआ था, जिसके कारण यह जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी एक पवित्र स्थल है। इसके अलावा, यहाँ पर सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक ने भी समय बिताया था, और काशी का उल्लेख सिख धर्मग्रंथों में भी मिलता है।गंगा नदी के किनारे स्थित होने के कारण काशी को अत्यधिक पवित्र माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वाराणसी के घाट, विशेष रूप से मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट, ऐसे स्थान माने जाते हैं, जहाँ लोग अंतिम संस्कार करने के लिए आते हैं। हर दिन यहाँ हज़ारों श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर में जाते हैं।आधुनिक काशी
आज, काशी एक प्रमुख धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। यहाँ हर वर्ष लाखों की संख्या में तीर्थयात्री आते हैं, और यह शहर अपने धार्मिक त्योहारों और उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है। वाराणसी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख तीर्थस्थल है, और यहाँ स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर दुनिया भर के शिव भक्तों के लिए एक पवित्र स्थान है। आधुनिक काल में, वाराणसी ने अपने प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखते हुए आधुनिकता की ओर भी कदम बढ़ाए हैं। यहाँ की बनारसी साड़ी विश्व प्रसिद्ध है, और शहर का संगीत और नृत्य कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। काशी का शास्त्रीय संगीत और नृत्य की परंपरा भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) आज भी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी संस्थानों में से एक है। यहाँ पर विज्ञान, कला, और प्राचीन भारतीय ज्ञान पर अनुसंधान होता है। साथ ही, काशी का ऐतिहासिक महत्व, धार्मिक धरोहर और सांस्कृतिक विविधता इसे एक अद्वितीय शहर बनाते हैं काशी का इतिहास भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है। यह शहर सदियों से धर्म, दर्शन, कला और शिक्षा का केंद्र रहा है। यहाँ का धार्मिक महत्व, विशेषकर हिन्दू और बौद्ध धर्मों के संदर्भ में, इसे भारत के सबसे पवित्र स्थलों में से एक बनाता है। विभिन्न कालखंडों में, चाहे वैदिक युग हो, बौद्ध काल हो, मध्यकालीन मुस्लिम शासन हो, या फिर ब्रिटिश उपनिवेशवाद, काशी ने अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखा है। काशी केवल एक शहर नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का एक अमूल्य प्रतीक है, जिसने अनगिनत पीढ़ियों को प्रेरित किया है और आगे भी करता रहेगा।

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