बेअंत सिंह समाजसेवी एवं राष्ट्रीय उप महानिदेशक एंटीकरप्शन
बचपन एक ऐसा स्वर्णिम समय होता है जिसमें बच्चे चिंता-मुक्त होकर खेलते,कूदते और अपनी कल्पनाओं की उड़ान भरते हैं। परंतु आधुनिक तकनीक और इंटरनेट की चमक-दमक ने बच्चों के इस मासूम बचपन को निगलना शुरू कर दिया है।आज का बच्चा गांव की चौपालों, दादी-बाबा की कहानियों, और मिट्टी से सने खेलों से दूर होकर मोबाइल, लैपटॉप और इंटरनेट की दुनिया में खोता जा रहा है। एक समय था जब गांवों में सावन आते ही पेड़ों पर झूले पड़ते थे,बच्चे टोली बनाकर गली-मोहल्लों में गुल्ली-डंडा,कंचे,कबड्डी और बैट-बॉल खेलते थे।पर आज यह सब सिर्फ बीते कल की यादें बनकर रह गए हैं।बेअंत सिंह समाजसेवी एवं राष्ट्रीय उप महानिदेशक एंटीकरप्शन बताते हैं कि हमें आज भी वो दिन याद हैं जब सावन में झूले झूलते थे,दादी-बाबा की कहानियां सुनते थे और लकड़ी की गाड़ियों से खेला करते थे। पर आज के बच्चों के लिए ये सब किसी किस्से से कम नहीं।तकनीक ने शहरों से निकलकर गांवों तक अपने पांव पसार दिए हैं। गांवों में भी अब स्मार्टफोन का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है, और बच्चे इसकी गिरफ्त में आते हैं।