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बरेली नगर निगम में करोड़ों के टेंडरों में फर्जीवाड़ा, कंप्यूटर ऑपरेटर बर्खास्त, जांच के आदेश

बरेली नगर निगम में करोड़ों के टेंडरों में फर्जीवाड़ा, कंप्यूटर ऑपरेटर बर्खास्त, जांच के आदेश

बरेली से पत्रकार यूसुफ़ खान की रिपोर्ट

बरेली। नगर निगम के निर्माण विभाग में टेंडर प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी का मामला सामने आया है। आरोप है कि बिड कैपेसिटी में हेरफेर कर अयोग्य ठेकेदारों को करोड़ों के ठेके दे दिए गए। इस फर्जीवाड़े में नगर निगम में आउटसोर्स पर तैनात एक कंप्यूटर ऑपरेटर की भूमिका संदिग्ध पाई गई, जिसे तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है। नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य ने मामले को गंभीरता से लेते हुए हाल ही में स्वीकृत सभी टेंडरों की जांच के आदेश दिए हैं।

बिड कैपेसिटी में हेरफेर कर ठेकेदारों को फायदा
नगर निगम के निर्माण विभाग में नई शर्तों के तहत बिड कैपेसिटी ऑनलाइन अपलोड करना अनिवार्य किया गया था, ताकि योग्य ठेकेदारों को ही टेंडर मिले। लेकिन इस प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई। बताया जा रहा है कि कुछ ठेकेदारों की बिड कैपेसिटी पर्याप्त नहीं थी, फिर भी उन्हें टेंडर दे दिए गए। इतना ही नहीं, टेंडर प्रक्रिया के दौरान कई अन्य कमियों को भी नजरअंदाज किया गया।

कंप्यूटर ऑपरेटर ने किया डिजिटल हस्ताक्षर का दुरुपयोग
जांच में पता चला है कि नगर निगम में तैनात कंप्यूटर ऑपरेटर सुलेमान ने सहायक अभियंता के डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र (DSC) का दुरुपयोग कर कई टेंडरों में हेरफेर किया। इस मामले के उजागर होते ही नगर आयुक्त ने कंप्यूटर ऑपरेटर को बर्खास्त कर दिया और चीफ इंजीनियर को छह टेंडरों की विशेष जांच के निर्देश दिए।

नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य ने कहा:
“छह टेंडरों में गड़बड़ी की शिकायत मिलने पर चीफ इंजीनियर को जांच के आदेश दिए गए हैं। दोषी कंप्यूटर ऑपरेटर से डीएससी मंगवाकर उसे तत्काल हटा दिया गया है।”

एनकैप, स्वच्छ भारत मिशन और 15वें वित्त के टेंडरों में धांधली का शक
सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में राष्ट्रीय वायु प्रदूषण नियंत्रण (एनकैप), स्वच्छ भारत मिशन और 15वें वित्त आयोग के तहत करोड़ों के बजट के टेंडर निकाले गए थे। आशंका है कि इन टेंडरों में भी धांधली हुई है। बताया जा रहा है कि ठेके जल्दबाजी में मंजूर कर लिए गए, जबकि टेंडर प्रक्रिया पूरी तरह नहीं अपनाई गई। कई ठेकेदारों ने फर्जी दस्तावेज लगाकर टेंडर हासिल किए, लेकिन निर्माण विभाग के अधिकारियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
अब सवाल उठ रहा है कि जब टेंडर प्रक्रिया में इतनी गड़बड़ी हो रही थी, तो निर्माण विभाग के इंजीनियरों को इसकी जानकारी क्यों नहीं थी? इस वजह से विभाग के अधिकारियों पर भी मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं।

पहले भी सामने आ चुका है टेंडर पूलिंग का मामला
यह पहली बार नहीं है जब नगर निगम में टेंडरों को लेकर गड़बड़ी सामने आई हो। कुछ समय पहले निर्माण विभाग के इंजीनियरों की मिलीभगत से टेंडर पूलिंग का मामला उजागर हुआ था। नगर आयुक्त के आदेश पर 35 निर्माण कार्यों के टेंडर रद्द कर दोबारा प्रक्रिया कराई गई थी। इससे निगम के इंजीनियरों और ठेकेदारों में हड़कंप मच गया था।

आउटसोर्स कंप्यूटर ऑपरेटरों पर उठे सवाल
नगर निगम के विभिन्न विभागों में लगभग 50 आउटसोर्स कंप्यूटर ऑपरेटर तैनात हैं, जो कई महत्वपूर्ण कार्यों को संभाल रहे हैं। इनमें से कुछ पर गोपनीय जानकारियां लीक करने के आरोप भी लग चुके हैं। हाल ही में इनकी भर्ती प्रक्रिया पर भी सवाल उठे थे, जहां कई ऑपरेटर बिना हिंदी टाइपिंग और डेटा एंट्री का ज्ञान लिए ही बहाल कर दिए गए। बाद में दोबारा परीक्षा कराई गई तो पांच ऑपरेटर फेल हो गए थे। इसके बावजूद नगर निगम के महत्वपूर्ण कार्य इन्हीं ऑपरेटरों के जिम्मे बने हुए हैं।

अब क्या होगा
नगर आयुक्त द्वारा जांच के आदेश दिए जाने के बाद अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि इस फर्जीवाड़े में और कौन-कौन शामिल है। क्या केवल एक कंप्यूटर ऑपरेटर की बर्खास्तगी से मामला खत्म हो जाएगा, या फिर निर्माण विभाग के बड़े अधिकारियों पर भी गाज गिरेगी? जांच रिपोर्ट आने के बाद ही स्पष्ट होगा कि नगर निगम में टेंडर घोटाले के पीछे कौन-कौन जिम्मेदार है।

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