अमरपाटन प्राइवेट स्कूल के संचालक के द्वारा छात्र छात्राओ के साथ व्यापक रूप से धोखा दिया जा रहा है
मध्य प्रदेश शासन व शिक्षा विभाग का आदेश को ना मानकर अपना आदेश लागू करते है अमरपाटन नगर पंचायत के भीतर इंग्लिश मिडियम स्कूल करीब डेढ दर्जन के करीब है और आठ से नौ इंग्लिश मिडियम की हाई स्कूल है इसमे से कुछ ऐसी हाई स्कूल है जिसमे छात्रो की संख्या हजार से उपर है जैसा की मध्य प्रदेश शासन का आदेश है चाहे सरकारी हो या इंग्लिश चाहे हिन्दी एनसीइआर टी किताब ही चलनी चाहिए लेकिन इंग्लिश मिडियम के संचालक के द्वारा शासन का आदेश ना मानकर निजी कंपनी की किताब चलाते है जोकि इंग्लिश मिडियम की किताब पहली से पांचवी तक पांच हजार और आठवी तक आठ हजार तक है यह किताबे निजि पब्लिकेशन से स्कूल मै सप्लाई करते है और जो विधालय से अटैच दुकान है यहां पर ये किताब मिलती है इसका कमीशन 50 से 60% किताब का कमीशन स्कूल के संचालक के द्वारा ले लिया जाता है कमीशन मै कंपनी वाला या बेंचने वाला वो पाते है इस प्रकार से निजि विधालय के संचालक छात्र छात्राओ के अभिभावक को जोंक की तरह चूसते है दूसरी ओर ड्रेस शिक्षा विभाग के नियम अनुसार होना चाहिए लेकिन स्कूल के संचालक के द्वारा अमरपाटन मै एक नामी कपडा विक्रेता है बही व्यापारी तय कर्ता है प्राइवेट विधालय मै कौन सी स्कूल का ड्रेस कैसा हो यह व्यापारी तय करता है जो ड्रेस की कीमत पांच से छः सौ होनी चाहिए उस ड्रेस को व्यापारी द्वारा 1500 से 2500 तक दिया जा रहा है इस तरह से शिक्षा विभाग का निर्देश नाम का होता है यह दुकान दार तय करता है आधा कमीशन दुकान दार को दिया जाता है और आधा पैसा व्यापारी रखता है नाम को तो यह है की मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग का नियम चलना चाहिए लेकिन शिक्षा विभाग का नियम नाम मात्र का है मध्य प्रदेश शासन का शक्त आदेश था की शासन द्वारा निर्धारित किताब चलना चाहिए लेकिन निजि विधालय के संचालक कोई नियम नही मानते अगर अमरपाटन के किसी भी स्कूल की जांच की जाए सभी स्कूलो मै निजी पुस्तक पाई जाएगी लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारी को भारी कमीशन दिया जाता है जिसके चलते शिक्षा विभाग के अधिकारी निजि स्कूल के संचालक के सामने नतमस्तक है इस प्रकार से शासन के नियम की धजजिया उडाई जा रही है और अभिभावक को स्कूल के संचालक द्वारा लूटा जा रहा है कुछ अभिभावक द्वारा मैहर कलेक्टर एवं शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी से मांग की जाती है की निजि विधालय की जांच की जाए जिससे दूध का दूध पानी का पानी हो