संवाददाता – अनुनय कु० उपाध्याय।
90 के दसक तक जन्म लिए बच्चे इसे जरूर जानते होंगे…
बिहार के सारण जिला स्थित मढ़ौरा बाजार से तकरीबन आधा किलोमीटर दूर सीधी सड़क पर आप जैसे ही बढ़ते हैं, एक पुरानी इमारत में मॉर्टन लिखा दिखता है। 90 के दशक तक पैदा हुए बच्चे इस नाम से बखूबी वाकिफ है। ये नाम मुंह में दूध, चीनी और नारियल के महीन बुरादे वाली टॉफ़ी की याद दिला देता है।
मॉर्टन टॉफी के बंद पड़े कैंपस में गार्ड का काम कर रहे कामाख्या सिंह याद करते हैं, “नारियल के बुरादे वाली कुकीज़ के अलावा लैक्टो और बॉन-बॉन की भी बहुत डिमांड थी। टॉफी की परत ऐसी थी कि दूसरी तरफ भी झलकती थी। थोड़ी-सी पारदर्शी थी।”
इस टॉफी फैक्ट्री में दस-ग्यारह साल की उम्र में दूध पहुंचाने वाले दीनानाथ राय कहते हैं, “दूध ले के जाते थे तो मुट्ठी भर कर टॉफ़ी मिलती थी। पूरे छपरा ज़िले में सीना तान कर चलते थे कि हम मढ़ौरा के है। अब तो फैक्टरी के साथ-साथ सारा गुमान भी ख़त्म हो गया है। भैंस पालना भी बंद कर दिये हैं”।
रोज़गार के अवसरों की कमी के कारण बिहार से लाखों लोग पलायन कर देश के अलग-अलग हिस्सों में रोजी कमाने जाते हैं। मढ़ौरा इसी कमी को पूरा करता था। लेकिन अब ये व्यवस्था की नाकामी और अदूरदर्शिता की मिसाल है।