मीडिया को संवैधानिक दर्जा: ठगी और प्रदूषण से मुक्ति का एकमात्र मार्ग
हरिशंकर पाराशर

आज के दौर में पत्रकारिता का स्वरूप इतना जटिल हो चुका है कि उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। एक ओर जहां सच्ची पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानी जाती है, वहीं दूसरी ओर फेक न्यूज, सनसनीखेज रिपोर्टिंग और व्यावसायिक हितों से प्रभावित कंटेंट ने इसे प्रदूषित कर दिया है। ठगी के रूप में फैल रही गलत सूचनाएं समाज को विभाजित कर रही हैं। ऐसे में, क्या केवल सरकारी मान्यता ही पत्रकारिता की जीवनरेखा है? बिल्कुल नहीं। सरकारी मान्यता कई बार सेंसरशिप का हथियार बन जाती है, जो स्वतंत्र पत्रकारिता को बाधित करती है। इसके बजाय, एक स्थायी समाधान की जरूरत है: मीडिया को संवैधानिक निकाय का दर्जा प्रदान करना। यह न केवल ठगी और प्रदूषण को समाप्त करेगा, बल्कि पत्रकारिता को मजबूत और जवाबदेह बनाएगा।
वर्तमान में, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) एक वैधानिक निकाय है, जो मीडिया की नैतिकता और मानकों को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। लेकिन इसकी शक्तियां सीमित हैं। यह शिकायतों पर कार्रवाई तो कर सकता है, लेकिन दंडात्मक उपायों में कमजोर है। फलस्वरूप, कई मीडिया संस्थान बेधड़क होकर गलत रिपोर्टिंग करते रहते हैं। यदि पीसीआई को संवैधानिक दर्जा मिल जाए, तो यह सर्वोच्च न्यायालय या चुनाव आयोग की तरह स्वतंत्र और शक्तिशाली हो जाएगा। इससे मीडिया पर राजनीतिक दबाव कम होगा और स्व-नियमन की व्यवस्था मजबूत होगी।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए। सबसे पहले, एक ‘मीडिया कमीशन ऑफ इंडिया’ की स्थापना की जाए। यह कमीशन देश के सभी मीडिया संस्थानों—चाहे वे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल या क्षेत्रीय हों—के साथ राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करे। इन चर्चाओं में पत्रकारों, संपादकों, मालिकों और आम नागरिकों की राय ली जाए। कमीशन को मीडिया के वर्तमान चुनौतियों, जैसे फेक न्यूज, पेड न्यूज, क्रॉस-ओनरशिप और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के नियमन पर फोकस करना चाहिए। यह प्रक्रिया पारदर्शी और समावेशी होनी चाहिए, ताकि कोई भी तबका खुद को अलग-थलग महसूस न करे।
चर्चाओं के आधार पर, सरकार को संसद में एक बिल पेश करना चाहिए, जो प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को संवैधानिक निकाय में अपग्रेड करे। इस बिल में निम्नलिखित प्रावधान शामिल किए जाएं:
1. *स्वतंत्रता की गारंटी*: मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) के तहत संरक्षण, लेकिन दुरुपयोग पर सख्त दंड।
2. *नियमन तंत्र*: फेक न्यूज और ठगी के लिए जुर्माना, लाइसेंस रद्दीकरण और आपराधिक मुकदमों की व्यवस्था।
3. *समावेशिता*: कमीशन में पत्रकारों, कानूनी विशेषज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और तकनीकी विशेषज्ञों का प्रतिनिधित्व।
4. *डिजिटल मीडिया का समावेश*: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी इस दायरे में लाना, क्योंकि आज की ठगी का बड़ा हिस्सा यहीं से फैलता है।
5. *शिक्षा और प्रशिक्षण*: पत्रकारों के लिए अनिवार्य नैतिक प्रशिक्षण और प्रमाणीकरण, लेकिन सरकारी हस्तक्षेप के बिना।
यह अपग्रेडेशन न केवल मीडिया को प्रदूषण से मुक्त करेगा, बल्कि जनता का विश्वास भी बहाल करेगा। याद रखें, पत्रकारिता समाज का आईना है। यदि यह धुंधला हो गया, तो पूरा समाज अंधेरे में भटक जाएगा। सरकार को इस दिशा में तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए, क्योंकि विलंब से ठगी और प्रदूषण और गहरा होगा।
(यह लेख मूल रूप से तैयार किया गया है और किसी भी कॉपीराइट मुद्दे से मुक्त है। इसे अखबार में प्रकाशन के लिए प्रेषित किया जा सकता है।)


















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