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लिखमादेसर में तिवाड़ी परिवार द्वारा आयोजित शिव महापुराण कथा के तीसरे दिन शिवेन्द्राश्रमजी महाराज ने सम्पूर्ण सती चरित्र का वर्णन बताया देखें शानदार आयोजन की फ़ोटो वीडियो सहित खबर

सत्यार्थ न्यूज श्रीडूंगरगढ़-सवांददाता ब्युरो चीफ रमाकांत

क्षेत्र के गांव लिखमादेसर में जगदीश प्रसाद पुत्र जयचन्द राम तिवाड़ी परिवार द्वारा आयोजित श्री शिव महापुराण कथा के तीसरे दिन कथा में भगवान शिव और माता सती का विवाह प्रसंग सुनाया। इस अवसर पर पंडितों द्वारा जयचंदराम तिवाड़ी समस्त परिवार द्वारा भगवान शंकर और शिव महापुराण की विधिवत पूजा अर्चना करवाने उपरांत कथा आरंभ करवाई। इस दौरान कथा वाचक शिवेन्द्राश्रमजी महाराज ऋषिकेश वालों ने तीसरे दिन भगवान शिव और माता सती के विवाह को कथा सुनाते हुए कहा कि पुराणों के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थी प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएं जन्मी और वीरणी से साठ कन्याएं। राजा दक्ष की पुत्री ‘सती’ की माता का नाम था प्रसूति। यह प्रसूति स्वायंभुव मनु की तीसरी पुत्री थी। सती ने भगवान शिव से विवाह किया। रुद्र को ही शिव कहा जाता है और उन्हें ही शंकर। पार्वती शंकर के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। पुत्र गणेश, कार्तिकेवय और पुत्री वनलता। जिन एकादश रूद्रों की बात कही जाती है वे सभी ऋषि कश्यप के पुत्र थे उन्हें शिव का अवतार माना जाता था। मां सती ने एक दिन कैलाशवासी शिव के दर्शन किए और उनको भगवान शिव से प्रेम हो गया । लेकिन ब्रम्हा जी के समझाने उपरांत सप्रजापति दक्ष की इच्छा से सती ने भगवान शिव से विवाह किया । दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा। फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। दक्ष ने पुत्री के आने पर उपेक्षा का भाव प्रकट किया और शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती बर्दाश्त नहीं कर पाई और इस अपमान की कुंठावश उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। यह खबर सुनते ही शिव ने वीरभद्र को भेजा,जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ने तांडव नृत्य किया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए। इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए। कथा के तीसरे दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं भीड़ उमड़ी।

नोट- कस्बें में कथा में आने जाने के लिए कालूबास पाराशर जी मन्दिर के पास से निःशुल्क बस की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई है।

बस के लिए संपर्क करे-98308 85194
(सीताराम) बस रवाना का समय 11 बजे

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