भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के मद्देनजर बुधवार को पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया।
सं० – अनुनय कु० उपाध्याय का रिपोर्ट

यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की बैठक के दौरान लिए गए पाँच प्रमुख निर्णयों में से एक था।
सिंधु जल संधि क्या है?
सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल वितरण को निर्धारित करने के 19 सितंबर, 1960 को भारत और पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे। विश्व बैंक द्वारा आयोजित एक समझौते के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में इस पर हस्ताक्षर किए थे।
सिंधु जल संधि के निलंबन से ? पाकिस्तान पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
सिंधु नदी नेटवर्क, जिसमें झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलुज नदियाँ शामिल हैं, पाकिस्तान के प्रमुख जल संसाधन के रूप में कार्य करता है, जो करोड़ों की आबादी का भरण-पोषण करता है।
यह संधि पाकिस्तान को प्रभावित करेगी, क्योंकि कुल जल प्रवाह का लगभग 80% हिस्सा पाकिस्तान को प्राप्त होता है, जो पाकिस्तान में कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से पंजाब और सिंध प्रांतों में।
पाकिस्तान सिंचाई, खेती और पीने के पानी के लिए काफी हद तक इसी जल आपूर्ति पर निर्भर है।
कृषि क्षेत्र पाकिस्तान की राष्ट्रीय आय में 23% का योगदान देता है तथा इसके 68% ग्रामीण निवासियों का भरण-पोषण करता है।
सिंधु बेसिन प्रतिवर्ष 154.3 मिलियन एकड़ फीट पानी की आपूर्ति करता है, जो व्यापक कृषि क्षेत्रों की सिंचाई और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
जल प्रवाह में किसी भी प्रकार की रुकावट से पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा, जो उसकी अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आजीविका का एक महत्वपूर्ण घटक है।
जल की उपलब्धता में कमी से कृषि पर निर्भर ग्रामीण क्षेत्रों में फसल की पैदावार में कमी, खाद्यान्न की कमी और आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न होने की संभावना है।
पाकिस्तान पहले से ही भूजल की कमी, कृषि भूमि का लवणीकरण और सीमित जल भंडारण क्षमता जैसी गंभीर जल प्रबंधन समस्याओं का सामना कर रहा है।
देश की जल भंडारण क्षमता कम है, मंगला और तरबेला जैसे प्रमुख बांधों का संयुक्त जल भंडारण केवल 14.4 एमएएफ है, जो संधि के तहत पाकिस्तान के वार्षिक जल हिस्से का केवल 10% है।
इस निलंबन से गारंटीकृत अक्षा आपूर्ति में कटौती होने से ये कमजोरियां और बढ़ जाएंगी, जिससे पाकिस्तान के पास अपनी जल आवश्ववानाओं के प्रबंचब के स्दिान कम विकल्प बचेंगे।


















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