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देश के लिए आत्मघाती है जंगल पर प्रहार – इकबाल खान

पर्यावरण सुरक्षा मामले में एनजीटी एवं सरकार को अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिए

बांदा। तेलंगाना राज्य के हैदराबाद यूनिवर्सिटी से स

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टे घने जंगल को काटकर उसके व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए किया जा रहे दुष्प्रयासों से हजारों पक्षी मोर हिरण सहित अन्य जीवों के आशियाने तो उजाड़ ही दिए गए ,साथ ही हैदराबाद के फेफड़ों के रूप में पहचाने जाने वाले गचीबोवली के कांचा जंगल के 100 एकड़ घने वनीय क्षेत्र को लगभग 30 से अधिक जेसीबी मशीन लगाकर दो दिनों की राष्ट्रीय अवकाश रात्रि में सपाट कर दिया गया। इरादा तो पूरे 400 एकड़ के घने जंगल को साफ करने का रहा है।यह अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सहित पूरे विश्व में पर्यावरण पर गहराते जा रहे संकट से बचाव के लिए आधिकारिक पौधारोपण के साथ नदी, झीलों, तालाबों को बचाने की बात की जा रही है तो वहीं दूसरी ओर इस समाज की कुछ षड्यंत्रकारी लोगो द्वारा पेड़ पौधों पक्षियों एवं वन्य प्राणियों सहित मानवीय सभ्यता की हत्या की जा रही हैं । यह देश एवं मानवीय सभ्यता के लिए आत्मघाती कदम है।जंगलों पर प्रहार को आत्मघाती कदम बताते हुए बुन्देलखण्ड क्षेत्र के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता,भारतीय मानवाधिकार उत्तर प्रदेश अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार इकबाल खान ने कहा है कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं द्वारा तीव्र विरोध किए जाने के बाद तेलंगाना हाईकोर्ट के द्वारा जंगल की कटाई एवं वहाँ के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है।फिलहाल संकट डाला हुआ नजर आ रहा है, लेकिन इस 400 एकड़ के घने वन क्षेत्र को लेकर पिछले 21 सालों से विवाद चल रहा है। मानव अधिकार कार्यकर्ता,वरिष्ठ पत्रकार इकबाल खान ने कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) एवं भारत सरकार द्वारा कड़े व ठोस कदम उठाते हुए देश के पर्यावरणीय सुरक्षा के प्रति अपनी नीतियों को स्पष्ट करना चाहिए।तुष्टीकरण एवं ढुलमुल नीतियों से पशु पक्षियों वन्य प्राणियों सहित मानवीय सभ्यता खतरे में पढ़ती जा रही है।मानव अधिकार कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार खान ने कहा कि आज से लगभग 85 साल पहले दूरदृष्टा महात्मा गांधीजी ने पर्यावरण सम्मत विकास (Sustainable Development) की बात की थी। जिसे भारत सहित पूरे विश्व में समय के साथ अपनाया गया और आज इन्हीं नीतियों पर अपने ही देश में कुठाराघात किया जा रहा है।भीषण गर्मी के इस दौर में पूरी दुनिया में पक्षियों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए सुरक्षित आशियाने और दाना- पानी की व्यवस्था की बात की जा रही है, तो वही मानवता विरोधी गतिविधियां का बेलगाम होते चले जाना बेहद चिंताजनक है। इस मुद्दे पर देश भर के हर प्रबुद्ध जन को एवं समाजसेवियों को राष्ट्रीय स्तर पर अपना विरोध दर्ज कराना ही चाहिए और देश के राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भेजा जाना चाहिए।

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