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उत्तराखंड समेत चार राज्यों में हिमनदों से बाढ़ के खतरे को कम करने को 150 करोड़ की मंजूरी

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पारुल राठौर हरिद्वार

उत्तराखंड समेत चार राज्यों में हिमनदों से बाढ़ के खतरे को कम करने को 150 करोड़ की मंजूरी

राष्ट्रीय हिमनद झील विस्फोट बाढ़ जोखिम शमन परियोजना के कार्यान्वयन के लिए केंद्र की पहल

हरिद्वार सांसद ने संसद में उठाया हिमालयी क्षेत्रों में हिमनदों से बाढ़ के खतरे का सवाल

हरिद्वार से भाजपा सांसद और पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लोकसभा में गृह मंत्री से तारांकित प्रश्न संख्या 440 के जरिए उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्यों में हिमनदों की झील फटने से आने वाली बाढ़ से होने वाली हानि को कम करने से संबंधित सवाल उठाया। इसके जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्री नित्यानंद राय ने लिखित जवाब में बताया कि केंद्र सरकार ने 150 करोड़ के वित्तीय परिव्यय के साथ राष्ट्रीय हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ) जोखिम शमन परियोजना(एनजीआरएमपी) के चार राज्यों उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम और अरुणांचल प्रदेश में कार्यान्यवन के लिए मंजूरी दे दी है।
हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सरकार से सवाल पूछा कि सरकार की पर्यटन पर निर्भर क्षेत्रों सहित स्थानीय समुदायों पर हिमनद की झील के फटने से आने वाली बाढ़ (जीएलओएफ) की संभावित घटनाओं के आर्थित दृष्टि से पड़ने वाले प्रभाव का किस प्रकार आकलन करने और उसे कम करने की योजना है। क्या भविष्य में जीएलओएफ संबंधी जोखिमों का सामना करने वाले अन्य हिमालयी राज्यों या क्षेत्रों में भी इसी तरह के शमन उपायों को लागू करने की योजना है?
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्री नित्यानंद ने लिखित जवाब में बताया कि केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ग्लेशियर झीलों और जल निकायों के जल प्रसार क्षेत्रों में सापेक्ष परिवर्तन का पता लगाने के साथ ही निगरानी महीनों के दौरान काफी हद तक फैल गए क्षेत्रों की पहचान में सक्षमता के लिए 902 ग्लेशियर झीलों और जल निकायों की निगरानी कर रहा है।
उन्होंने बताया कि जोखिम शमन परियोजना का उद्देश्य हिमनद झील विस्फोट बाढ़ से जुड़े जोखिमों को, खासकर उन क्षेत्रों में जो ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए अतिसंवेदशील है, कम करना है। जीएलओएफ और इसी तरह की घटनाओं के कारण जीवन का हानि को रोकना और आर्थिक नुकसान व महत्वपूर्ण अवसंरचना ढांचे के नुकसान को कम करना भी जीएलओएफ का उद्देश्य् है। साथ ही अंतिम मील कनेक्टिविटी के आधार पर प्रारंभिक चेतावनी और निगरानी क्षमताओं को मजबूत किया जा रहा है। स्थानीय स्तर के संस्थानों और समुदायों को सुदृढ़ करते हुए स्थानीय स्तर पर जीएलओएफ जोखिम में कमी और शमन में वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं को मजबूत करना, जीएलओएफ जोखिम को कम करने और शमन हेतु स्वदेशी ज्ञान और वैज्ञानिक कटिंग एज शमन उपायों का उपयोग करना है।


सरकार द्वारा अनुमोदित एनजीआरएमपी के घटकों में से एक है जीएल-ओएफ निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (ईडब्ल्यूएस) जिसमें रिमोट सेंसिंग डेटा, निगरानी के लिए सामुदायिक भागीदारी, चेतावनी-प्रसार शामिल है। किसी भी जीएलओएफ की घटना के मामले में स्थानीय समुदायों को पूर्व चेतावनी प्रदान करने के लिए सिकिक्म के अलावा सी-डेक, इसरो और अंतरिक्ष उपयोग केंद्र अहमदाबाद के सहयोग से और भी स्वचालित मौसम केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई गई है। वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान जो ग्लेशियरों की निगरानी करता है और उन कारको का व्यापक विशलेषण करता है जो खतरों और उससे जुड़े डाउनस्ट्रीम जोखिमों को ट्रिगर करते हैं। वाडिया ने उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के लिए ग्लेशियर झीलों की सूची तैयार की है। जिसमें उत्तराखंड की 1266 झीलों (7.6 वर्ग किमी) और हिमाचल की 958 झीलों (9.6 वर्ग किमी) की पहचान की गई है।
केंद्रीय राज्यमंत्री ने बताया कि सीडब्ल्यूसी ने ग्लेशियर झीलों के जोखिम सूचकांक के लिये मानदंड को अंतिम रुप दे दिया है। जो जीएलओएफ की स्थिति में विफलता की संभावना और उनके द्वारा होने वाले संभावित नुकसान के आधार पर ऐसी झीलों का पहचान करने और उन्हें रैकिंग देने के लिए एक संरचित दृष्टिकोण अपनाता है। एनडीएमए के तहत आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर एक समिति (सीओडीआरआर) भी गठित की है। इसमें 6 हिमालयी राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य हितधारकों के प्रतिनिधि शामिल है। यह समिति इन झीलों का सीधे आकलन करने और ईडब्ल्यूएस-अन्य संरचनात्मक और गैर संरचनात्मक उपायों की स्थापना के संदर्भ में व्यापक शमन रणनीति तैयार करने को अभियान भेजने के लिए उच्च जोखिम वाले ग्लेशियर झीलों के एक समूह की पहचान की है।
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने बताया कि अक्टूबर 2023 में तीस्ता-3 जल विद्युत बांध ढहने के बाद सीडब्ल्यूसी ने जीएलओएफ के प्रति संवेदनशील सभी मौजूदा और निर्माणाधीन बांधों की बाढ़ की डिजाइन का समीक्षा करने का फैसला किया है। जिससे संभावित अधिकतम बाढ़-मानक संभावित बाढ़ और जीएलओएफ के संयोजन के लिए उनकी पर्याप्त स्पीलवे क्षमता सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा अपने जलग्रहण क्षेत्रों में ग्लेशियर झीलों वाले सभी नए बांधों के लिए जीएलओएफउ अध्ययन अनिवार्य कर दिया है।

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