अगर धरा ही नहीं रहेगी तो सब धरा रह जायेगा – सुबोध कुमार वर्मा
वृक्षों की जगह धरती के सीने में है कागजों में नहीं-सुबोध कुमार वर्मा
पर्यावरण की रक्षा का दायित्व सभी का है केवल सरकारी तन्त्र पर निर्भर रहना महज बेवकूफी है- सुबोध कुमार वर्मा
मिट्टी पानी और बयार की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक पौधारोपण करके कुदरत की अनमोल विरासत को संभालकर रखें- सुबोध कुमार वर्मा

वर्षों से प्रकृति के संरक्षण के सम्बन्ध में महज कागजी औपचारिकता को निभाने की परम्परा कोई नई बात नही है। प्रत्येक वर्ष पौधारोपण के नाम पर आंकड़ों का खेल खेलकर सरकारी प्रयासों की दुहाई दी जाती है। अगर वास्तव में ऐसा ही होता तो आज धरती वृक्षों से लवरेज हो गयी होती चारों तरफ हरियाली और पर्याप्त मात्रा में सभी को पीने के लिए स्वच्छ पानी मिलता सांस लेने को स्वच्छ वायु मिलती सामाजिक और प्राकृतिक पर्यावरण स्वस्थ होता लेकिन सत्यता ये है कि सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के नगाड़े के बावजूद आज धरती की हालत किसी से छिपी नहीं है। सच्चाई यही है कि आज मनुष्य की लालची भोगवादी प्रवृत्ति के कारण जल जंगल और जमीन खतरे में हैं। न तो पीने को शुद्ध पानी है और न ही सांस लेने के लिए शुद्ध वायु है कारण विकास के नाम पर प्राकृतिक जंगलों को काटकर उनके स्थान पर कंक्रीट के जंगलों को उगाने की परम्परा का अंधा-अनुसरण करना है। जीवन तो सामाजिक और प्राकृतिक व्यवस्था के साथ चलता है इसमें सन्तुलन अनिवार्य शर्त है सच है कि प्राकृतिक ताना-बाना बिगड़ते ही सामाजिक व्यवस्था स्वत: छिन्न-भिन्न हो जाती है।

यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। सच्चाई है कि मनुष्य का रहन-सहन और खान-पान उसकी सोच को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। कहावत है कि जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन और जैसा मन होगा वैसे ही विचार आयेंगे जैसे विचारों के साथ मनुष्य जिएगा वैसी उसकी सोच बनेगी और यही सोच उसके कर्म का निर्धारित करेगी। मनुष्य के कर्म से ही उसके भाग्य का उदय होता है और इन्हीं से उसका पतन भी होता है। मनुष्य तो सभी प्राणियों में सबसे बुद्धिमान है उसको अपने ज्ञान का उपयोग विवेक के साथ करते हुए सर्व मंगलमयी जनकल्याणकारी भावनाओं के साथ आगे बढ़ने का सतत् प्रयास करना चाहिए। ऐसा तभी संभव है जब मनुष्य का भोजन सात्विकता से परिपूर्ण हो। इसलिए मनुष्य खान पान और जीवन शैली में संयम और पवित्रता आवश्यक है। हमारे शास्त्रों में तो एक वृक्ष को दस पुत्रों के समान बताया गया है। ये दस पुत्र हैं प्राणवायु भूमि संरक्षण जल संरक्षण चारा-पाती जैविक खाद ईंधन-लकड़ी छाया फल-फूल औषधि और तेल सोचिए वृक्षों से ये सब दसों उत्पाद प्राकृतिक रूप से मुफ़्त में मिलना कोई सामान्य बात नही है यह असाधारण है। आज धरती के सीने में रासायनिक खाद डालकर उसकी उर्वरक शक्ति को नष्ट कर दिया गया है जो भी पैदावार हम ले रहे हैं उनमें खतरनाक रसायन पहले ही मौजूद हैं जो मनुष्य के जीवन के लिए ख़तरनाक हैं। गम्भीर बीमारी कब कैसे हो गयी इसका किसी को कुछ नहीं पता चल पाता। अत्यधिक पेड़ों के कटान के कारण वायुमंडल में मौजूद खतरनाक तत्व किसी भी प्राणी के स्वास्थ्य के लिए सही नहीं हैं। पुराने पेड़ों के कटान के कारण उन पर वास करने वाली पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियां आज विलुप्त हो चुकीं हैं। आखिर ये कैसा विकास है जो सभी के लिए खतरे की घंटी बन चुका है। इस विषय पर प्रत्येक व्यक्ति को आत्ममंथन करना चाहिए विचार करना चाहिए। हमको यह अच्छी तरह समझना चाहिए कि पर्यावरण की रक्षा का दायित्व सभी का है केवल सरकारी तन्त्र पर निर्भर रहना महज बेवकूफी है। इस धरती पर रहने वाले हरेक व्यक्ति का यह पहला काम है कि वह अधिक से अधिक पौधारोपण करते हुए उनकी रक्षा के लिए निरन्तर प्रयासरत रहे। जल और वायु तो जीवन के लिए अनिवार्य है यदि ये नही रहेंगे तो जीवन बचेगा कैसे इसलिए प्रकृति प्रदत्त जीवन की इस अनमोल विरासत को संभालकर रखना होगा। तभी बाकी तामझाम सही साबित हो सकेंगे वरना सब धरा रह जायेगा इस सच्चाई को नकारना अपने और अपनी भावी पीढ़ी के जीवन से खिलवाड़ करने जैसा है। धरती मां का हृदय तो विशाल है जो जिस भाव के साथ जैसा बोएगा वैसा ही काटेगा। जैसा बीज डालोगे प्रकृति वैसा ही वापस लौटा देगी। धरती माता आज मनुष्य के लालच की शिकार होकर मरणासन्न पड़ी है आपदाओं के माध्यम से बार बार सचेत कर रही है लेकिन बहरे कानों में ये आवाज़ कैसे आये जिनके कान सही हैं वो सुनकर भी बोल नहीं पाते इसलिए हमारे महापुरूषों विख्यात पर्यावरणविदों विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लम्बे समय तक समर्पित भाव से पहाड़ी और हिमालयी क्षेत्रों का भ्रमण किया और अध्ययन किया उन्होंने पहाड़ तथा हिमालय की पीड़ा को भलीभांति समझकर आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर हिमालयी क्षेत्रों के विकास के लिए सरकार से हिमालय नीति की मांग की। लेकिन लम्बे समय से सरकारों ने पहाड़ के विकास में उनके अनुभवों की अनदेखी की है। स्थानीय लोगों की स्थिति तथा उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विकास की नीति बनायी जायेगी तभी इसका लाभ मिल सकेगा। पहाड़ से तो हमारी संस्कृति जुड़ी हुई है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि वर्तमान समय में पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी दोनों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ये दोनों ही पहाड़ के काम नहीं आ रहे हैं। पहाड़ के विकास पर महज कागजी औपचारिकता पूर्ण करना सही नहीं है। क्योंकि देश का विकास पहाड़ के जीवनदायनी जल और जंगलों पर टिका हुआ है। अगर जंगल समृद्ध नहीं रहेंगे तो देश भी समृद्ध नही रह सकेगा। पूज्य गुरूदेव विश्वविख्यात पर्यावरणविद और चिपको आन्दोलन के प्रणेता पद्मविभूषण श्री सुन्दर लाल बहुगुणा जी अन्य प्रमुख पर्यावरणविदों के लम्बे अनुभव वैज्ञानिक अनुसंधान और आध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर हिमालय के विकास की नीति को लागू किया जाना चाहिए। हमें आस्था और विश्वास के साथ पहाड़ का स्थायी विकास करने के लिए हिमालय नीति को अपनाना चाहिए। पूज्य गुरुदेव श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी ने जनहित में पर्यावरण नीति बनाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को विवश कर दिया था आज इस नीति का अक्षरशः पालन किया जाना चाहिए तभी पर्यावरण संरक्षण की संकल्पना को बल मिलेगा और राष्ट्र विकास करेगा। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को रोकने के लिये सबको मिल कर कार्य करना होगा। साथ ही देश की सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिये वैचारिक क्रांति के साथ सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। मिलजुलकर बिना किसी भेदभाव के वृक्षों जल जंगल और जमीन की रक्षा करनी होगी ताकि जीवन सुरक्षित रह सके। पौधारोपण समस्त विश्व और मानव जाति की सच्ची सेवा का पवित्र साधन है आईये हम सब मिलकर अधिक से अधिक पौधारोपण करके अपने और अपने राष्ट्र के भविष्य को सुखद समृद्ध और खुशहाल बनायें तथा समस्त विश्व की शांति और खुशहाली में अपना योगदान दें। अगर धरा ही नहीं रहेगी तो सब धरा रह जायेगा यह बात सभी को ध्यान में रखनी होगी। यदि जीवन से मिट्टी पानी और हवा को निकाल दिया जाए तो मनुष्य के पास बचेगा क्या ? इस सवाल पर समाज में व्यापक चर्चा होनी चाहिए। प्रकृति के साथ महज़ कागज़ी औपचारिकता निभाने की रस्म बन्द होनी चाहिए। बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि मनुष्य ने लम्बे समय से लगातार प्रकृति की अनदेखी करते हुए अपने ज्ञान और विज्ञान से मात्र अपने लिए सुख और सुविधाओं में बढ़ोतरी करके स्वयं के जीवन से बहुत बड़ी खिलवाड़ कर ली है संकट में डाल लिया है। मनुष्य को याद रखना होगा कि वह धरती का मालिक नही सिर्फ एक मेहमान है।
सुबोध कुमार वर्मा प्रख्यात पर्यावरणविद/सामाजिक कार्यकर्ता)
सहयोगी विश्वविख्यात पर्यावरणविद और चिपको आन्दोलन के प्रणेता पद्मविभूषण पूज्य श्री सुन्दर लाल बहुगुणा जी।















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