श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर में सैकड़ो सालों बाद पहली बार शिखर पर होगा लाखो का स्वर्ण कलश स्थापित
कभी जीर्णशीर्ण परिसर में पीपल के नीचे विराजते थे हनुमानजी, अब बन चुका है भव्य मंदिर
सत्यार्थ न्यूज ब्यूरो चीफ
मनोज कुमार माली
सुसनेर, सोयत कला
सुसनेर नगर की मोक्ष दायिनी कंठाल नदी और इतवारीया श्मशान के किनारे स्थित नगर कोट की दीवारों से घिरा नगर का खेड़ापति हनुमान मंदिर मठ नगर स्थापना से पहले का होकर कई सालों पुराना है। श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर मठ समिति के अध्यक्ष रामसिंह काँवल एवं वरिष्ठ सदस्य टेकचंद गहलोत, गोविंद राठौर, संजय तिवारी एवं रामु सोनी ने बताया कि करीब एक हज़ार ज्यादा वर्ष पुराने इस मंदिर में जन सहयोग से पहली बार साढे सात लाख की लागत से निर्मित स्वर्ण कलश की स्थापना आगामी 16 नवम्बर से 20 नवम्बर तक चलने वाले स्वर्ण कलश प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के माध्यम से विधि विधान एवं हवन, यज्ञ, पूजा एवं महाआरती के साथ कि जाएगी। साथ इस अवसर पर पूरे क्षेत्र के हनुमान भक्तों का अन्न कूट महोत्सव भी प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी इसी अवधि में सम्पन्न होगा
* इस मंदिर का सेवा कार्य करने वाले गिर परिवार की 15 वीं पीढ़ी के दीपक गिर बताते हैं कि यह मंदिर पहले नगर की सीमा से बाहर होकर हनुमान गढ़ी था, जो उनके पूर्वजों द्वारा बनाए गए मठों में से एक है। पहले जीर्णशीर्ण परिसर में हनुमानजी विराजते थे। अब इस स्थान पर भव्य मंदिर बन चुका है
नगर के इतिहासकार 82 वर्षीय रामप्रताप भावसार सुसनेरी बताते हैं- जैसा उन्होंने सुसनेर के इतिहास में उल्लेख किया उसके अनुसार आज से आठ दशक पूर्व जीर्णशीर्ण परिसर में एक पीपल के पेड़ के नीचे हनुमान प्रतिमा स्थित थी। साथ ही आम, शहतूत, जामुन, बिल्बपत्र, पीपल के पेड़ मौजूद थे। पीपल के पेड़ के नीचे से ही निकले पीपलेश्वर महादेव है। पीपल का पेड़ तो खत्म हो गया लेकिन जीर्णोद्धार के बाद आज भी कई पेड़ों को संरक्षित रखा हुआ है। प्राचीन समय में साधु-संतों का ठहराव का स्थान रहे इस मंदिर में धुनी भी है। मंदिर की देखरेख पहले गिर परिवार के पास थी लेकिन अब ट्रस्ट इसका संचालन करता है। ट्रस्ट के अध्यक्ष रामसिंह कांवल के अनुसार मंदिर काफी प्राचीन है। इसकी प्राचीनता का अंदाजा तो उन्हें नहीं लेकिन अब इसकी जिम्मेदारी ट्रस्ट संभालता है। मंदिर के पीछे खोखली माता का स्थान है जिसकी मान्यता है कि यहां कि मिट्टी से खांसी की बीमारी खत्म होती है
एक-एक रुपया जोड़ किया मंदिर जीर्णोद्धार
काफी प्राचीन और जीर्णशीर्ण मंदिर का जीर्णोद्धार पूरे नगर के जनसहयोग से किया गया है जो आज भव्य रूप ले चुका है। नगर में दान पेटी के माध्यम से एक-एक रुपया इकट्ठा किया गया और दानदाताओं के सहयोग से इसका निर्माण हुआ। इसमें धर्मशाला व शिखर निर्माण सहित अन्य कार्य हुए। अब मंदिर में दान के अतिरिक्त धर्मशाला और दानपेटी की आवक से कार्य होते हैं। युवाओं के व्यायाम के लिए व्यायामशाला भी है। मंदिर में नगरवासियों की काफी आस्था है तो कई चमत्कारिक घटनाएं भी जुड़ी हैं
सबसे बड़े अन्नकूट में नहीं होता डिस्पोजल का उपयोग
क्षेत्र का सबसे बड़ा अन्नकूट यहां नवम्बर माह में दीपावली के बाद तीसरे सप्ताह में होता है जिसमें पूरे क्षेत्रवासियों को निमंत्रण दिया जाता है। करीब 25 सालों से प्रत्येक पूर्णिमा को जागरण का आयोजन किया जाता है तो वर्षभर के लिए प्रतिदिन अलग-अलग व्यक्ति की ओर से रामायण का पाठ किया जा रहा है। इस बार ये अन्नकूट महोत्सव 20 नवम्बर को आयोजित होगा। समिति द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक का बहिष्कार करते हुए भोजन के दौरान अन्नकूट में डिस्पोजल गिलास का उपयोग नहीं किया जाता है। इस अवसर पर खेडापति हनुमानजी का आकर्षक श्रृंगार किया जाएगा। उसके बाद सुंदरकांड पाठ और शाम के समय आरती कर 56 भोग लगाकर के अन्नकुट महोत्सव का शुभारंभ होगा। आगामी 16 से 20 नवम्बर को आयोजित होने वाले स्वर्ण कलश एवं अन्नकूट महोत्सव में सभी क्षेत्र की धर्मप्राण जनता से सपरिवार उपस्थित होकर महाप्रसादी ग्रहण करने का आग्रह श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर समिति के वरिष्ठ सदस्य पूर्व विधायक राणा विक्रमसिंह, समिति के अध्यक्ष रामसिंह कांवल, लोकतंत्र प्रहरी संघ जिला संयोजक कैलाश बजाज, टेकचंद गेहलोत, मार्केटिंग अध्यक्ष लक्ष्मणसिंह कांवल, दिलीप जैन, विष्णु भावसार, नगर परिषद अध्यक्ष प्रतिनिधि राहुल सिसोदिया, गोविंद सोनी, बालकिशन भावसार, गोविंद राठौर, आनंदीलाल सिसोदिया, रामु सोनी, संजय तिवारी, दीपक भावसार, दीपक गिरी, घनश्याम अग्रवाल, गिरधर सोनी आदि ने किया है
ये हुएं विकास कार्य, अब जल्दी प्रवेश द्वार भी तैयार होगा
मंदिर के जीर्णोद्धार कार्य के चलते मंदिर अभी तक लाखो रूपयो की लागत से मंदिर में विकास कार्य हो चुके है। जनहित के अलावा पूर्व विधायक राणा विक्रमसिंह ने भी यहां अपनी विधायक निधि से अपने कार्यकाल में प्रतिवर्ष 5 लाख की राशि दी गयी थी। जिससे इसमें मंदिर का शिखर, धर्मशाला, परिसर, किलेनूमा दीवार, सामुदायिक भवन, भोजनशाला, मंदिर के बाहर सुरक्षा की दृष्टी से बाउन्ड्रीवाल आदि शामिल है। अब विकास कार्यो की अगली कडी में मंदिर के बाहर ही 15 लाख रूपये की लागत से प्रवेश द्वार का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। स्वर्ण कलश एवं अन्नकूट महोत्सव के दौरान इसका भी विधिवत शुभारंभ किया जाएगा