सांगली गणपती पंचायत संस्थान, जिसकी पर्यावरण पूरक गणेश उत्सव करने की सदियों की परंपरा है, आज मशहूर ‘चोर गणपति’ के आगमन और स्थापना से संस्थान के गणेशोत्सव की शुरुआत हुई ।आज महापूजा के बाद विदाई भी दी जाएगी. सांगली संस्थान के शासक श्रीमंत चिंतामनराव पटवर्धन ने इस ‘चोर गणपति’ को स्थापित करके पर्यावरण-अनुकूल गणेशोत्सव की शुरुआत की। इस गणेशोत्सव की खास बात यह है कि भाद्रपद शुद्ध प्रतिपदा को कागज की लुगदी से भगवान गणेश की मूर्ति बनाई जाती है। गणेशोत्सव से तीन दिन पहले हि यहा गणेश जी का आगमन होता है और गणेश भक्तों को पता ही नहीं चलता कि ये गणेश जी कब आए और कब चले गए । संस्थान के प्रबंधक जयदीप अभ्यंकर ने बताया कि गुप्त रूप से आने के कारण गणेश जी को ‘चोर गणपति’ के नाम से जाना जाने लगा। इस संस्थान ने शुरू से ही प्रकृति के साथ संवाद किया है और संस्थान के पूर्व शासक चिंतामनराव पटवर्धन द्वारा सांगली में पर्यावरण-अनुकूल गणेशोत्सव की अवधारणा स्थापित की है और पूरे राज्य में एक आदर्श स्थापित किया है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी संस्थान का गणेश महोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है संस्थान के गणेश मंदिर को आकर्षक विद्युत प्रकाश व्यवस्था की गई है और इस गणेश की स्थापना के बाद ही संस्थान का गणेशोत्सव सही मायने में शुरू होता है। संस्थान का गणेशोत्सव समारोह 7 तारीख से दरबार हॉल में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ शुरू हो रहा है।
‘चोर गणपती’ कि दो मूर्तीयो कि प्रतिष्ठापना की जाती है और यह मूर्तीया कागज कि लुगदी से बनाइ जाती है लगभग साडे तीन फिट कि यह एक जैसी दो मूर्तीया है । दोसो साल से यह परंपरा चली आ रही है । इन मूर्तिंयो को साल भर मे कभी छूआ नही जाता है बल्की साल मे एक बार उत्सव मे हि इन मूर्तिंयो पर रंग चढाये जाते है । मंदिर मे मुख्य मूर्ती है इस मूर्ती के आजू बाजू इन दो मूर्तीया रख कर इनको पूजा जाता है । और उत्सव के बाद इन मूर्तिंयो को फिर से सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है ।