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मंडी-नवरात्रि के दौरान यहां आती है निसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए

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Ashok Pratap
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नवरात्रि के दौरान यहां आती है निसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए

मंडी

मंडी जिला के जोगिंदरनगर उपमंडल के तहत पड़ने वाली तहसील लड़भड़ोल मंदिर में यूं तो साल भर श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है, मगर नवरात्रि के दौरान यहां निसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए आती हैं। करीब 500 वर्ष पूर्व बने इस मंदिर में मां शारदा एक पिंडी के रूप में विराजमान हैं,जो उसके दरबार आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण करती है। इसे देवीमां का करिश्मा ही कहा जाएगा कि यहां उन दंपतियों को भी संतान प्राप्ति हुई है, । मंदिर के देखरेख और पूजा विधान की तमाम क्रियाएं भाटी समुदाय के ही लोग करते हैं जोकि राजा अकबर के वंशज बताए जाते हैं। इतिहासकार बताते हैं कि 16वीं शताब्दी में टोबा सिंह नामक व्यक्ति जंगल में प्राकृतिक तौर पर उगने वाली सब्जी तरड़ी लाने के लिए जंगल की ओर निकला। कई जगह तलाश करने के बाद भी जब उसे यह सब्जी नहीं मिली तो हताश होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। इतने में एक राहगीर बुजुर्ग ने उसे तलड़ी की संभावित जगह बताई। कुदाल से प्रहार करते ही पानी का फव्वारा निकला। दूसरा प्रहार किया तो दूध का फव्वारा फूट पड़ा। राहगीर बुजुर्ग ने टोबा सिंह को यह प्रक्रिया जारी रखने को कहा। तीसरा प्रहार किया तो वहां से खून का फव्वारा फूट पड़ा। डरे सहमें टोबा को स्वप्न में मां ने दर्शन दिए और कहा कि मैं शारदा हूं। जहां तुम तरड़ी लेने के लिए गए थे, वहां मैं जमीन में पिंडी के रूप में विराजमान हूं। मुझे वहां से निकालकर गांव की परिक्रमा करवाओ जहां मुझे उपयुक्त जगह लगेगी वहां मैं खुद विराजमान हो जाऊंगी। प्रात: होने पर उसने परिजनों और ग्रामवासीयों को स्वप्न की बात बताई तो जमीन से करीब 7 साल के कन्या के रूप में एक पिंडी निकली। ग्रामवासी पिंडी को पालकी में बिठाकर गांव में घुमाने लगे। पालकी जब कुएं के पास पहुंची तो कारदार पानी पीने के लिए नीचे उतरे तो पालकी वहीं रख दी। पानी पीकर जब वे पालकी को उठाने लगे तो पालकी तो उठी मगर पिंडी जमीन के नीचे जा चुकी थी। केवल अंशमात्र पिंडी ही जमीन पर ऊपर रही। अंशरूप पिंडी को मंदिर तक ले आए। पूजा अर्चना के लिए जम्मूकश्मीर के जम्मू संभाग से महाराजा अकबर के भाट ब्राहम्ण वंशजों को पूजा अर्चना के लिए बुलाया गया। अब भी यहां भाटियों के वंशज ही मंदिर की देखरेख का जिम्मा संभाले हुए हैं। सेन वंशजों की कुलदेवी: 17वीं शताब्दी में सेन वंशजों को मां सिमसा के चमत्कार का पता चला तो उन्होंने वहां जाने का फैसला किया। रानी के जिद करने पर उन्होंने मंत्रियों और दासियों सहित मां सिमसा के दरबार भेजा तो विश्राम हेतु रानी वटवृक्ष के नीचे विश्राम करते ही नींद आ गई। स्वप्न में उन्हें मां ने बादाम दिया और इसे 1 वर्ष तक न खाने की नसीहत दी। इसके फल स्वरूप रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तबसे माता सिमसा सेन वंश की कुलदेवी बन गई। ऐसे पहुंचा जा सकता है। बाक्स: ऐसे पहुंच सकते हैं : कांगड़ा से बस द्वारा 50 और जोगिंदर नगर से 20 किलोमीटर बैजनाथ और बैजनाथ से 35 किलोमीटर धर्मपुर मार्ग से सिमस गांव पहुंच सकते हैं। यहीं स्थित है मां सिमसा का मंदिर। मंदिर के वरिष्ठ पुजारी रंगीला राम(82वर्ष), सुरेश कुमार और विनोद कुमार ने बताया कि आज भी पूरे देश से निसंतान दंपत्ति मां शारदा के स्वरूप सिमसा देवी में मन्नत मांगने आते हैं और निसंतान दंपत्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है। महिलाएं उसी प्राचीन कुएं के पानी से स्नान करती हैं और सलिंदरा के तहत फर्श पर सो जाती हैं। स्वप्न में मिले फल के अनुरुप संतान प्राप्ति होती है। जबकि भिंडी जैसे फल या सब्जी मिलने पर बेटी की पूरी होती है। नवरात्रों के अवसर पर मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सराय का प्रबंध है। जरूरत पड़ने पर पुजारी अपने घरों में भी पनाह दे देते हैं। बहरहाल मां सिमसा का दरबार चमत्कार विज्ञान के इस युग में चुनौती बना हुआ है।

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