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इंजीनियरिंग के इंजन को रिस्किलिंग की जरूरत (15 सितम्बर-इंजीनियर दिवस पर विशेष)

इंजीनियरिंग के इंजन को रिस्किलिंग की जरूरत (15 सितम्बर-इंजीनियर दिवस पर विशेष)

पलवल-14 सितंबर
कृष्ण कुमार छाबड़ा

मानव सभ्यता के विकास में इंजीनियरिंग क्षेत्र का अभूतपूर्व योगदान है। भारत के ढांचागत एवं आर्थिक विकास में भी इंजीनियरिंग ने बड़ी भूमिका निभाई है। देश की जीडीपी में आईटी और इंजीनियरिंग सेक्टर का हिस्सा 7.5 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, जो 5.4 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। यद्यपि दूसरी ओर, हर साल भारत में एक मिलियन से भी ज्यादा इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स पास होकर निकलते हैं, जिनमें से मुश्किल से मात्र 10 प्रतिशत को ही नौकरी मिल पाती है। यह विडंबना है कि जहां भारतीय इंजीनियर दुनिया भर की टेक कंपनियों में छाए हुए हैं, वहीं घरेलू स्तर पर बेरोजगारी की समस्या विकट होती जा रही है। इसका एकमात्र समाधान स्किल गैप को पाटकर इस चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है। यदि स्किल गैप खत्म कर बीटेक और एमटेक युवाओं को और अधिक उपयोगी बनाया जाए, तो वैश्विक अवसरों में भी भारतीय इंजीनियर्स की भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट्स के अनुसार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित क्षेत्र में भारत का 28 प्रतिशत वैश्विक टैलेंट पूल है, जो देश की जीडीपी वृद्धि को गति दे रहा है। आईटी सेक्टर अकेले 13 प्रतिशत जीडीपी में योगदान देता है। इंजीनियरिंग क्षेत्र ने इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन में क्रांति लाई है। इंजीनियरिंग रिसर्च एंड डेवलपमेंट (ईआरएंडडी) बाजार 2025 में 133.71 बिलियन डॉलर का होने का अनुमान है, जो 2030 तक 217.90 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।
नास्कॉम की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023-24 में टेक इंडस्ट्री ने 254 बिलियन डॉलर का राजस्व अर्जित किया, जो वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को मजबूत करता है। भविष्य में कंप्यूटिंग और एआई जैसे क्षेत्रों में भारत की भूमिका और बढ़ेगी। ब्लूमबर्ग के अनुसार, “भारत की 250 बिलियन डॉलर की टेक इंडस्ट्री आर्थिक विकास की रीढ़ है, जो 7.5 प्रतिशत जीडीपी में योगदान देती है।” इसी तरह, आईएमएफ का अनुमान है कि 2027 तक भारत की जीडीपी 5 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी, जिसमें इंजीनियरिंग का बड़ा योगदान होगा।
दुनिया भर में भारतीय इंजीनियरों की धमक साफ दिखती है। गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला और एडोब के शांतनु नारायण जैसे भारतीय मूल के इंजीनियर वैश्विक टेक कंपनियों का नेतृत्व कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में बसे 77.5 प्रतिशत भारतीयों के पास बैचलर डिग्री या उससे ऊपर की योग्यता है। भारत हर साल 1 मिलियन से ज्यादा इंजीनियर तैयार करता है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा पूल है। कैरनेगी एंडोमेंट की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 5 मिलियन प्रोग्रामर और पांच लाख एआई विशेषज्ञ हैं, जो एआई में वैश्विक नेतृत्व की क्षमता रखते हैं। बैंगलोर जैसे शहर वैश्विक टेक हब बन चुके हैं, जहां 68 प्रतिशत टेक हायरिंग दक्षिण भारत से होती है। भारतीय डेवलपर्स वैश्विक कंपनियों की पहली पसंद हैं, क्योंकि वे कुशल और लागत-प्रभावी हैं। लेकिन घरेलू स्तर पर तस्वीर अलग है। ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) के आंकड़ों के अनुसार, 2021 से भारत हर साल लगभग 1 मिलियन से अधिक इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स तैयार कर रहा है, लेकिन 2023-24 में यह संख्या 1.5 मिलियन तक पहुंच गई। हमारे यहां इंजीनियर तो तैयार हो रहे हैं, लेकिन स्किल गैप के कारण रोजगार की स्थिति चिंताजनक है। 2024 में 1 मिलियन से भी ज्यादा इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स में से केवल 10 प्रतिशत को नौकरी मिलने की उम्मीद रही। अनस्टॉप रिपोर्ट के अनुसार, 83 प्रतिशत इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स बिना जॉब या इंटर्नशिप के हैं। स्टेटिस्टा के आंकड़ों से 2024 में एम्प्लॉयबिलिटी 52.3 प्रतिशत थी, जो 2025 में थोड़ी बढ़ सकती है। नास्कॉम 2019 सर्वे में खुलासा हुआ कि 15 लाख ग्रेजुएट्स में से मात्र 2.5 लाख को जॉब मिली। आईटी सेक्टर में फ्रेशर्स की भर्ती 2022 में 6 लाख से घटकर 2023 में 2.5 लाख और 2024 में और कम हो गई। एमटेक ग्रेजुएट्स की स्थिति भी खराब है, जहां 37.9 प्रतिशत बेरोजगार हैं।
बेरोजगारी के मुख्य कारण स्किल्स की कमी है। ग्रेजुएट्स के पास डिग्री तो है, लेकिन इंडस्ट्री-रेडी स्किल्स नहीं। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना है कि इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स में 48 प्रतिशत बेरोजगारी है। शिक्षा और जॉब मार्केट में असंतुलन है। इस समस्या का समाधान अपस्किलिंग और रीस्किलिंग में है। शॉर्ट-टर्म प्रोग्राम्स से ग्रेजुएट्स को इंडस्ट्री-रेडी बनाया जा सकता है। इसके लिए अप्रेंटिसशिप, ऑन द जॉब ट्रेनिंग और शॉर्ट टर्म प्रोग्राम ही समाधान दिखाई देते हैं। स्किलिंग के साथ-साथ अपस्किलिंग, रिस्किलिंग, क्रॉस स्किलिंग बहुत आवश्यक है। देश में कौशल विकास को समर्पित संस्थानों को यह जिम्मा संभालना होगा। देश का पहला कौशल विश्वविद्यालय होने के नाते श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय ने यह पहल की है। रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे बीटेक और एमटेक पास युवाओं का स्किल गैप खत्म करने के लिए हमारे पास ठोस रणनीति है। इंडस्ट्री-इंटीग्रेटेड प्रोग्राम्स और शॉर्ट टर्म प्रोग्राम्स के माध्यम से इन युवाओं को इंडस्ट्री के हिसाब से तैयार किया जा सकता है। कई ऐसे सेक्टर हैं, जहां थोड़ी सी वेल्यू एडिशन से ही बेरोजगार इंजीनियर्स को रोजगार योग्य बनाया जा सकता है। यह सब चार से छह महीने के शॉर्ट-टर्म प्रोग्राम्स के जरिए सम्भव है। हमें यह याद रखना होगा कि इंजीनियरिंग भारत के विकास का इंजन है, लेकिन बेरोजगारी की समस्या को केवल अपस्किलिंग और रिस्किलिंग से ही हल किया जा सकता है। इस दिशा में अविलम्ब कार्य करने की आवश्यकता है।

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