हर्षल रावल
04 नवंबर, 2024
सिरोही/राज.
राजस्थानी भाषा का संपूर्ण और भौगोलिक इतिहास, लेकिन आज राजस्थानी लोग संवैधानिक मान्यता के लिए तरस रहे हैं।
देश में अभी तक राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पायी है।
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सिरोही। देश में ससस्त भाषाऔं में राजस्थानी भाषा पुरानी हैं। जबकि करीब 10 करोड़ राजस्थानी लोग बोलते हैं।
भारत देश स्वतंत्र होकर भी आज भी लोग राजस्थानी भाषा को तरस रहे हैं। राजस्थानी भाषा को अभी तक मान्यता नहीं मिल पाई है।
मान्यता के ये होंगे फायदे:-
राजस्थानी को मान्यता मिलते ही प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्तम नंबर जुड़ जाएंगे, जिसका फायदा सीधे-सीधे स्थानीय राजस्थानी उठा सकेंगे। अभी हमारे यहां जब आईएएस, आईआरएस की भर्ती परीक्षा होती है तो उसमें हिंदी के 100 नंबर होते हैं, जिसका फायदा उप्र, बिहार, नई दिल्ली, मध्यप्रदेश, हरियाणा के लोग को अधिक होता है। इस कारण हमारे यहां होने वाली परीक्षाओं में आधे से अधिक अफसरों का चयन दूसरे प्रदेशों से हो जाता है।
स्कूलों में राजस्थानी को पढ़ाने के लिए विषय विशेषज्ञों की भर्ती होगी। अभी कुछ ही स्कूलों में राजस्थानी के शिक्षक हैं, जिनके रिटायर होते ही वह पद समाप्त किया जा रहा है।
राजस्थान विधानसभा में सर्वसम्मति से संकल्प भी किया जा चुका है। पारित राजस्थान भाषा की मान्यता को लेकर वर्ष 2003 में विधानसभा में सर्वसम्मति से संकल्प भी पारित किया जा चुका है। “आपणो राजस्थानी, आपणी राजस्थानी” के संस्थापक हरीश हैरी ने बताया कि इसके पश्चात में एकबारगी मामला मान्यता शीघ्र मिलने तक पहुंच गया था। लेकिन इसके पश्चात फिर मामला अधर में अटक गया था। अब फिर इस मांग को लेकर कवायद तेज की गयी है। ताकि इस भाषा को शीघ्र से शीघ्र मान्यता दिलवाई जा सके। सिरोही जिले से हर्षल रावल का कहना है कि इसके लिए वे राजस्थानी लोगों का फिर एक बार का सहयोग लेकर शीघ्र ही राज्य व केंद्र सरकार से राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने की गुहार लगाएंगे।
अमेरिका और नेपाल में मान्य है राजस्थानी:-
अमेरिका में जब बराक ओबामा राष्ट्रपति थे, तब व्हाइट हाऊस में राजकीय सेवा के लिए होने वाली अफसर/कर्मचारियों के भर्ती के दौरान राजस्थानी भाषा को विशेष योग्यता में सम्मिलित किया गया था। हमारे पड़ोसी देश नेपाल में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। हनुमानगढ़ जिले के नोहर निवासी हेमराज तातेड़ नेपाल के कंचनपुर क्षेत्र से सांसद चुनाव जीत नेपाल संसद पहुंचे थे। तब उन्होंने राजस्थानी भाषा में केंद्रीय मंत्री पद की शपथ ली थी।
इसी प्रकार हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के सिंध प्रांत की स्कूलों के पाठ्यक्रम में आज भी राजस्थानी व्याकरण काे सम्मिलित किया गया है। जबकि हमारे भारत देश में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता की प्रतिक्षा है।
हर्षल रावल ने कहा कि राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर अपने स्तर पर लगातार प्रयासरत है। इसके लिए मामला तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री व गृह राज्य मंत्री तक भी पहुंचाया जाएगा। लेकिन सरकारी स्तर पर विफलता के चलते आज भी इस भाषा को संवैधानिक दर्जा नहीं मिल पाया है।
राजस्थानी लोगों ने कही बार नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया गया। इसमें प्रदेश के सांसद-विधायक भी सम्मिलित हुए थे। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में मान्यता देने का आश्वासन दिया था।
अंग्रेज शासन काल में भाषा को मान्यता:-
अंग्रेजों ने दे रखी थी मान्यता जार्ज ग्रिर्यर्सन ने भारतीय भाषाओं के सर्वेक्षण में प्रदेश की भाषा राजस्थानी बताई। अंग्रेजों ने सन् 1909 में द इंडियन एंपायर (इंपीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया) में राजस्थानी भाषा आवश्यक बताया था। इसका अर्थ जो भी अधिकारी राजस्थान में रहेगा, उसे राजस्थानी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक था, वरना वह यहां सेवा नहीं दे सकता था।
सरकार राजस्थानी भाषा में योगदान पर पद्मश्री दे रही:-
केंद्र सरकार ने राजस्थानी भाषा में उल्लेखनीय योगदान देने पर राज्य के पांच लोगों को पद्मश्री से सम्मानित किया है।
हम 78 वर्ष से मांग कर रहे, इधर 42 वर्ष में 8 अन्य भाषाओं को दिया संवैधानिक दर्जा। आठवीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त 22 भाषाएं हैं। इनमें से 14 भाषाएं- असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, मराठी, मलयालम, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और उर्दू प्रारंभ से है। 1967 में सिंधी, 1992 में काेंकणी, मणिपुरी, नेपाली और 2004 में बोड़ो, डोगरी, मैथिली, संथाली को संवैधानिक भाषाओं का दर्जा दिया गया।
राजस्थानी में एक दौहा हैं:-
“राजस्थानी रै बिनां, क्यांरो राजस्थान।।”
राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा न मिलने से यहां के रहवासी को अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा हैं। अब राजस्थानी लोगों को आवाज बुलंद करने की आवश्यकता हैं।