सत्यार्थ न्यूज़ / मनीष माली की रिपोर्ट
साधना का पूर्ण विराम…..नगरवासियो ने धूमधाम के साथ की जैन संत की अंतिम विदाई
सुसनेर में दिगम्बर जैन संत ने संलेखना पूर्वक देह त्याग कर किया समाधिमरण
डोल यात्रा निकालकर त्रिमूर्ति मंदिर में किया अंतिम संस्कार, अंतिम यात्रा में उमड़े हजारो मुनिभक्त
सुसनेर /दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना यह भाऊ, देहांत के समय मे तुमको न भूल जाऊ, शत्रु अगर कोई हो संतुष्ट उनको कर दु, समता का भाव धर कर सबसे क्षमा कराऊ….समाधिमरण पाठ की ये पंक्तियां जैन सन्तो की साधना का अभिन्न अंग रहती है। इन पंक्तियों का अक्षरशः पालन करते हुए रविवार को नगर में दिगम्बर जैन संत पूर्वाचार्य श्री दर्शन सागर जी महाराज ने पुनः मुनि स्वरूप धारण कर संलेखना पूर्वक देह त्यागकर समाधि मरण को प्राप्त कर लिया। इसी के साथ एक महान साधक की साधना का भी पूर्ण विराम हो गया। सोमवार को नगरवासियों ने धूमधाम के साथ नगर में डोल यात्रा निकालकर जैन संत की अंतिम विदाई की। जैन संत की अंतिम विदाई में हजारों की संख्या में मुनिभक्तो का सैलाब उमड़ता नजर आया। डोल यात्रा में शामिल मुनिभक्त जब तक सूरज चांद रहेगा दर्शन सागर जी का नाम रहेगा,
हर माँ का बेटा कैसा हो, दर्शन सागर जैसा हो व आचार्य श्री के जयकारों को गूंज कर रहे थे। डोल यात्रा सुबह 9 बजे त्रिमूर्ति मंदिर से शुरू हुई जो नगर के प्रमुख मार्ग मैना रोड़, इतवारिया बाजार, सराफा बाजार, हनुमान छत्री चौक, शुक्रवारिया बाजार, स्टेट बैंक चौराहा, हाथी दरवाजा, पांच पुलिया, सांई तिराहा, डाक बंगला चौराहा से होते हुए पुनः त्रिमूर्ति मंदिर पहुँची। जहाँ विधिविधान से संत के पार्थिव शरीर का अग्नि संस्कार किया गया। बैंड बाजो के साथ सफेद वस्त्र पहनें पुरूष और केसरिया साड़ी पहनी महिलाएं हाथों में धर्म पताका लिए महामंत्र नवकार का जाप करते हुए यात्रा में शामिल हुए। नगरवासियों ने भी अपने प्रतिष्ठान बंद रख संत की देह त्याग के इस महोत्सव में शामिल होकर अपनी विनयांजलि प्रस्तुत की। क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों व समाज प्रमुखों ने इस यात्रा में अपनी उपस्थिति देकर संत को विनयांजलि अर्पित की है। इस अवसर पर मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, दिल्ली सहित अन्य राज्यों के विभिन्न गाँव-शहरों से बड़ी संख्या में मुनिभक्त संत के अंतिम दर्शन करने के लिए सुसनेर पहुँचे है।
मंत्रोच्चार के साथ पंचतत्व में विलीन हुई संत की पार्थिव देह
त्रिमूर्ति मन्दिर परिसर में पंडित नितिन झांझरी, शांतिलाल जैन, मुकेश जैन की मौजूदगी में विधिविधान के साथ उनकी जैन संत की देह का अंतिम संस्कार किया गया। हवन, पूजन, शांतिधारा व अभिषेक की विपरीत प्रक्रिया कर संत की पार्थिव देह को पंचतत्व में विलीन किया गया। बोली के माध्यम से पात्रो का चयन कर उनकी अंतिम क्रियाएं करवाई गई। मुखाग्नि के बाद उपस्थित जनों ने परिक्रमा कर अनजाने में हुई संत सेवा में चूक की क्षमा क्षमा याचना की गई।
कडकडाती ठंड की रात में समाज के युवाओ ने जुटा दी सारी व्यवस्था
संत के प्रति अपार स्नेह व भक्ति रखने वाले समाज के युवाओं ने कडकडाती ठंड में रातों रात सारी व्यवस्थाए कर देह त्याग के महोत्सव को सफल बना दिया। मंदिर परिसर सहित नगर में जगह-जगह संत के बैनर पोस्टर व धर्म पताकाओं से पूरा नगर संत की इस यात्रा की अगुवाई कर शामिल हुआ। संत की देह त्याग से पूरा क्षेत्र व मुनिभक्तों में शोक की लहर है वही संत के अंतिम समय संयम समता पूर्ण उत्कृष्ट समाधि मरण प्राप्त करने से काफी हर्ष है।
जैन परम्परा में महोत्सव माना जाता है देह का त्याग करना
संत की अंतिम विदाई कराने वाले प्रमुख पंडित नितिन झांझरी ने बताया कि अंत भला तो सब भला है। जैन परम्परा में मृत्यु को विजय माना जाता है। जब संत अपनी देह त्याग करते है तो इसे महोत्सव की तरह मनाया जाता है। जैन विद्वानों का मानना है कि शरीर नश्वर है, संसार असार है, मृत्यु शाश्वत सत्य है। इसलिए संसार और जन्म मरण के बन्धन से मुक्त होने के लिए साधना की जाती है। और साधना का पूर्ण विराम समाधि है। अंतिम समय मे जीव निर्मल भाव के साथ देह त्याग करता है तो उसको मुक्ति पथ प्राप्त होता है।