बलिदान – 28 अक्टूबर 1811
आज़ पुन्य तिथि है – इतिहास के पन्नों में खोए मराठा साम्राज्य के सर्वश्रेष्ठ योद्धा यशवंत राव होलकर
पलवल-28 अक्टूबर
कृष्ण कुमार छाबड़ा
इतिहास के पन्नों में खोए मराठा साम्राज्य के सर्वश्रेष्ठ योद्धा यशवंत राव होलकर (प्रथम) का जन्म 3 सितंबर 1776 को महाराष्ट्र के वाफ गांव में हुआ। देवी अहिल्याबाई होलकर के शासन के पश्चात होलकर साम्राज्य की बागडोर तुकोजीराव होलकर प्रथम ने संभाली। आपके 4 पुत्र थे। काशीराव, मल्हारराव, विठोजी और यशवंतराव। पिता के मार्गदर्शन में 1788 में उम्र के 12वें वर्ष में ही रणक्षेत्र का प्रशिक्षण शुरू कर दिया था।
श्रीमंत तुकोजीराव होलकर (प्रथम)की मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे श्रीमंत काशीराव होलकर ने राज्य की बागडोर संभाली। काशीराव के सम्बंध अपने भाइयों से अच्छे नहीं थे। काशीराव ने अपनी सुरक्षा के खातिर तत्कालीन सिंधिया नरेश दौलतराव सिंधिया से नजदीकियां बढ़ा ली। 14 सितंबर 1797 को सिंधिया के सेनापति मुज्जफर खां ने रात्रि के समय काशीराव के तीनों भाइयों मल्हारराव, विठोजी और यशवंतराव पर हमला कर दिया। इस हमले में मल्हारराव मारे गए। विठोजी और यशवंत राव घायल हो गए और ऐसी ही अवस्था में भागकर नागपुर पहुंचे। वहां उन्होंने भोसले की शरण ली। किंतु बाद में सिंधिया के दबाव के कारण रघुजी भोसले ने यशवंत राव को गिरफ्तार कर सिंधिया के पास भेजने की तैयारी कर ली। इसका पता चलते ही यशवंत राव चकमा देकर वहां से भाग निकले। यह समाचार फैलने पर यशवंत राव के पुराने विश्वस्त सहयोगी उनके साथ हो गए। दिनों दिन यशवंत राव की शक्ति बढ़ती गई।
यह वह दौर था जब यूरोपियन भारतीय राजाओं की सेनाओं में अपना प्रभुत्व जमाने मे लगे थे। ऐसा ही एक सेनानायक ड्यूडेन काशीराव होलकर की सेना में था। दिसंबर 1798 में ड्यूडेन को श्रीमंत यशवंत राव होलकर ने पराजित किया और राजधानी महेश्वर पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। 6 जनवरी 1799 को बड़े धूमधाम से यशवंत रावजी का नर्मदा किनारे महेश्वर में राज्याभिषेक हुआ। हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक वीर शिरोमणि छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद वह एक मात्र ऐसे योद्धा रहे जिन्होंने स्वयं का राज्याभिषेक करवाया और राजा बने। इसके बाद राज्य के अधिकांश वफादार सरदार उनके साथ हो गए।
महाराजा यशवंत राव होलकर मराठा साम्राज्य के सबसे बहादुर महान योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने मात्र 13 वर्ष की उम्र में पहला युद्ध लड़ा और विजयी हुए। उन्होंने 18 युद्धों में अंग्रेजों को हराया। वह भारत के एक ऐसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिनका सम्पूर्ण परिवार पत्नी तुलसा बाई, पुत्री भीमाबाई ओर पुत्र ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अंग्रेजों से युद्ध किया।
सन 1801 में उन्होने पेशवा बाजीराव द्वितीय तथा दौलतराव सिंधिया की सेना को युद्ध में हराया। देश धर्म के रक्षार्थ उन्होंने भारत के अन्य शासकों को एकजुट करने का और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का हरसंभव प्रयास किए। दुर्भाग्य से उनकी बात किसी ने नहीं मानी। अंत मे उन्होंने अकेले ही अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ने का निर्णय लिया।
8 जून 1804 को अंग्रेज जनरल वेलेसले ने लार्ड ड्यूक को लिखा कि यशवंत राव पर शीघ काबू करना आवश्यक है अन्यथा वे अन्य राजाओं के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत से उखाड़ फेंकेंगे। नवंबर 1804 में अंग्रेजों ने डीग पर हमला कर दिया। इस युद्ध में भरतपुर के महाराजा रणजीत सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजो के पसीने छुड़वा दिए। यही नहीं इतिहास के मुताबिक 300 अंग्रेजों की नाक भी काट डाली थी
अंग्रेजों की फुट डालो और राज करो की नीति के तहत अंग्रेजों द्वारा रणजीत सिंह को महाराजा यशवंत राव का साथ छोड़ने के लिए विवश किया गया और उन्होंने अंग्रेजों से हाथ मिला लिया। इसके बाद सिंधी ने महाराज यशवंत राव होलकर की बहादुरी और बढ़ते प्रभाव को देखते हुए उनसे हाथ मिला लिया। अंग्रेजों की चिंता बढ़ गई। लार्ड ड्यूक ने लिखा भी क़ि यशवंत राव होलकर की सेना को अंग्रेजों को मारने में आनंद महसूस हो रहा है।
परिस्थितियों को भांपकर अंग्रेजों ने फैसला किया कि महाराज यशवंत राव होलकर से संधि करना ही उचित होगा। अतः अंग्रेज बगैर शर्त संधि करने को तैयार हो गए। महाराज में संधि करने से इंकार कर दिया और सभी राजाओं को एकजुट करने में जुट गए। जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अंग्रेजों को मात देने को दूसरी चाल चली। उन्होंने1805 में अंग्रेजों से संधि कर ली। अंग्रेजों ने उन्हें स्वतंत्र शासक घोषित कर उन्हें उनके सारे क्षेत्र लौटा दिए।
सिंधिया से मिलकर महाराजा ने अंग्रेजों को खदेड़ने की एक और चाल चली लेकिन सफलता हाथ नहीं आई। फिर अकेले ही अंग्रेजों को मात देने की पूर्ण तैयारी में जुट गए। भानपुरा में गोला बारूद का कारखाना खोला। दिन-रात इसी मुहिम में मेहनत से लगे रहे। इससे उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। लक्ष्य प्राप्त करने के जुनून में उन्होंने अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया।
28 अक्टूबर 1811 में मात्र 35 साल की आयु में वे देवउठनी एकादशी के दिन वीरगति को प्राप्त हुए। इस तरह एक महान देशभक्त प्रथन स्वतंत्रता सेनानी का अंत हो गया। एक ऐसा शासक जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अकेले शंखनाद किया और आजीवन अंग्रेजों का अधिपत्य स्वीकार नहीं किया। वे भारत के ऐसे एकमात्र राजा थे, जिनके पास अंग्रेज शांति का समझौता लेकर पहुंचे थे। फिर भी उन्होंने अंग्रेजों को भारत से बाहर करने का संकल्प कभी नहीं छोड़ा। उनकी अकाल मृत्यु के कारण भारत ने एक ऐसा राजा खोया जो शायद भारत को गुलामी की जंजीरों से काफी पहले ही मुक्त कर देता। एक महान चक्रवर्ती महाराजा यशवंत राव होलकर इतिहास के पन्नों में कहीं खो गए। उनकी बहादुरी आज भी अनजानी बनी हुई है।
इतिहासकारों ने उन्हें भारत का नेपोलियन की संज्ञा दी है। राजस्थान कवि चेतकरण सादु द्वारा श्रीमंत महाराजा होलकर प्रथम की वीरता पर लिखी पंक्तियां-
हिंदवाणी हलकों हुवो
तुरनका रहो न तंत
अंग्रेज उछज कियो
जोख भियो जसवंत
अर्थात – हिंदुस्तान का एकमात्र रक्षक नहीं रहा। आज हिंदुस्तान का बल टूट गया। मुसलमान बादशाहों का राज तो पहले ही समाप्त हो गया था। श्रीमंत यशवंत राव की मृत्यु पर अंग्रेजों ने खुशियां मनाई थी।