28 सितंबर विशेष
शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती
पलवल-28 सितंबर
कृष्ण कुमार छाबड़ा
28 सितम्बर को हर साल शहीद भगत सिंह की जयंती पूरे भारत में मनाई जाती है. शहीद भगत सिंह एक ऐसे स्वतंत्राता सेनानी थी जिन्होंने हंसते-हंसते देश के लिए अपने जान की करबानी दे दी थी. शहीद भगत सिंह के जयंती के अवसर पर पूरे देश में अलग-अलग जगहों पर उन्हें और उनके इस बलिदान को याद करते हुए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. यह दिन इतना खास होता है कि लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भगत सिंह द्वारा कहे गए कोट्स या फिर विचारों को भी शेयर करते हैं.
देश के नौजवानों की अगर बात करें तो उनके दिल में भगत सिंह को लेकर एक अलग ही भावना और इज्जत देखने को मिलती है. नौजवानों को उनकी बहादुरी, कारनामे और विचार काफी ज्यादा प्रभावित करते हैं. आज इस आर्टिकल में हम आपको शहीद भगत सिंह और उनके जीवन से जुड़ी कुछ बेहद ही रोचक बातें बताने जा रहे हैं. चलिए जानते हैं विस्तार से.
शहीद भगत सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायपुर जिले में हुआ था. इनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था.
सिर्फ भगत सिंह ही नहीं, बल्कि इनके पिता और चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह भी जानें-मानें स्वतंत्रता सेनानी थे.
भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई डीएवी हाई स्कूल लाहौर से की थी.
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में सभा के दौरान जो कुछ भी हुआ उसका काफी गहरा असर 12 वर्षीय भगत सिंह पर पड़ा. इसी दौरान उन्होंने यह कसम खायी कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ वह आजादी की लड़ाई लड़ेंगे.
इसके बाद भगत सिंह ने अपन पढ़ाई छोड़ दी और नौजवान भारत सभा की स्थापना की.
राजगुरु और सुखदेव के साथ मिलकर भगत सिंह ने काकोरी कांड को अंजाम दिया.
आगे चलकर उन्होंने 17 दिसंबर 1928 को राजगुरु के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे जेपी सांडर्स को मार डाला. इसमें उनकी सहायता चंद्रशेखर आज़ाद ने की थी.
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड में मौजूद ब्रिटिश इंडिया की इमरजेंसी सेंट्रल असेंबली के सभगार में अंग्रेजी हुकूमत को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे.
भगत सिंह का इंकलाब जिंदाबाद का जो नारा था वह सभी के बीच काफी जयदा पसंद किया गया और प्रसिद्ध हुआ.
7 अक्टूबर 1930 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी. इसके लिए 24 मार्च 1931 के दिन को चुना गया था.
फांसी की सजा तय होने के बावजूद भी अंग्रेजी हुकूमत उनसे इतना डरी हुई थी कि तय से तारीख से 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया