गंजबासौदा
जिला ब्यूरो संजीव शर्मा
,मां नर्मदा का सपूत आज नर्मदा की गोद में चिर समाधि में बिलीन हो गया ।
गंजबासौदा मध्य प्रदेश के जाने-माने संत श्री श्री 108 श्री वीरेंद्र पुरी महाराज उर्फ श्री राम बाबा का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया श्री राम बाबा की जीवन भर नर्मदा जी की परिक्रमा ही करते रहे उन्होंने देश के विभिन्न प्रदेशों की अनेकों यात्राएं की भारतवर्ष के तमाम प्रदेशों में उनके हजारों अनुयाई है बीकानेर के संत श्री सरजू दास जी महाराज उनके प्रति बताया कि एमपी के परम् तपस्वी संत शिरोमणि परम पूजनीय परमहंस श्री राम बाबा जी के देवागमन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ। आज संपूर्ण सनातन धर्म ने एक युग पुरुष को खो दिया है, जिनका जीवन धर्म, तपस्या और सेवा का प्रतीक रहा।
उनकी प्रेरणादायी शिक्षाएँ और सत्कर्म सदैव हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देंगे।
महाराज जी ने अपने जीवन में मानवता की सेवा और समाज को दिशा देने का महान कार्य किया।
श्री रघुनाथ जी से प्रार्थना है कि वे पूज्य महाराज श्री राम बाबा जी को अपने श्री चरणों में स्थान दे
महाराज जी के परम भक्त बिलासपुर से पधारे वरुण शखा जी ने उनके प्रति कहा कि
आपने ही हमे सिखाया है शोक, प्रशोक से परे रहना। सतत जीवन में रत रहना। वर्तमान में रहना। अनंत से तादात्म बनाना। सब में सब देखना। सब में सब को पूजना। सब में सब को मानना। अंश-अंश में परमात्म को पाना। खोजना खुद को हर जगह। बाहर की बंद करना अंदर की खोलना। हर घड़ी में परम चेतना का चिंतन करना। परहित के लिए पूरी शक्ति से जुट जाना। फिर न सोचना न
समझना न पछताना, कुछ किया है न ऐसा मान लेना। सबके लिए सब कुछ करना और परम चेतना के चरणों में रख देना। न यह में उलझना न वह में फंसना। सत्य को सिर्फ और सिर्फ सत्य को साधना। निर्भीक, निडर अपनी राह पर चलना। कृतज्ञ रहना। करते हुए करने के अहम भाव से मुक्त रहना। समदरसी रहना। सबमें सम देखना। चलते ही रहना। अच्छा-बुरा का विश्लेषण त्यागकर आगे बढ़ते जाना। अच्छा करते जाना। न कभी कल्पना करना, न काश ऐसा होता कहना न कभी थकान से मिश्रित अफसोस जताना, न यूं कभी मुंह से निकालना कि ऐसा होता तो ऐसा हो जाता है या यह ऐसे होता तो वैसे होता या इसे ऐसे करते तो वैसे हो जाता, इन सबसे पूरी तरह से परे रहना आपने ही सिखाया भगवन। और भी अनेक बातें जो भगवान आपने सिखाई। आपने जनाई।
एक दिन अस्पताल में रहते हुए आपने पूछा था, तुम्हे क्या मिला? मैं भावुक था। कैसे बताता क्या मिला? जो मिला वह न बयां किया जा सकता न लिखा जा सकता। इतना मिला, इतना मिला जितना मिलने की मेरी औकात नहीं। क्षमता नहीं। हैसियत नहीं। धारिता नहीं। योग्यता नहीं। जो मिला है, वह मिला है सूत्र। फॉर्मूला। जीवन को समझने का एकल तरीका। यानि हजार काम एक नाम। एक-एक समस्या या जीवन की दुविधा के हल की बजाए हल का महासूत्र मिला। अनुकूल को अनुकूल समझना हर किसी को आता है, प्रतिकूल को भी अनुकूल समझना आपने ही सिखाया है। यही महासूत्र है जीवन का। इस सूत्र पर 1 फीसद भी चल पाए तो दुविधा, दर्द, दुख, संताप शब्दकोष के अनयूज्ड वर्ड्स भर रह जाएंगे। मैं नहीं कह सकता कि यह हो पाया, किंतु आपका आशीष है। आपके मुझ पर यकीन से जन्मा आत्मबल है। परमात्मा श्रीराम बाबाजी हनुमानजी आपकी कृपा से सब हो रहा है और होता रहेगा।
आपके शरीर के घटते स्वास्थ से मन थोड़ा चिंतित और उदास है। आपकी रिक्ति की कल्पना हमसे अधमों से होती नहीं है। अधम जो ठहरे। लाख सिखाया आपने। फिर याद आता है आपका निर्मोह निर्देश। निर्मोह पाठ। निर्मोह आनंद का रहस्य। तब हम एकांत में एकाकार होकर यथा-तथा साक्षी हो जाते हैं। आत्मा यानि हम अमर हैं की अवधारणा प्रबल होती है। शरीर के आने-जाने, घटने, बढ़ने की प्रक्रिया से परे। आज इस खोल में कल उस खोल में, परसों यहां, अगले दिन वहां। चौरासी पहियों की चकरघिन्नी। चलते रहेंगे। जन्म-जन्मों तक यात्रा ही यात्रा। परंतु ये गुरुवर कैसे कहा जाए कि आपकी रिक्ति सामान्य होगी।
मैं नहीं, सब उदास हैं। कई रो रहे हैं। कइयों को आशंकाएं घेर रही हैं। मैं भीतर से खुद को बांध रहा हूं। आपकी दी शिक्षाओं को अपनाने की कोशिश कर रहा है। समझने की कोशिश कर रहा हूं, किंत चमड़े के नैन मेरे भी हैं। इनमें अश्रु नलियां मेरे भी हैं। नमी और धार इनमें भी हैं। मेरी पत्नी शिवांगी आपके दैहिक अच्छे स्वस्थ के लिए चिंतित है। व्यथित है। पूरा परिवार। बड़े भाई मणिकांतजी निरंतर, निर्बाध सहजभाव से भावुक हैं। पिता पूछते हैं, अब कैसी ही तबियत। ससुरजी आपके हर भाव से परिचित हैं, किंतु वे भी अब चिंतित हो चले हैं। सभी गुरुभाइयों की आंखें नम हैं।
चैतन्य हनुमानजी के रूप में मुझे परमहंस श्रीराम बाबाजी के दिव्य स्वरूप दिखते हैं। गुरु पूर्णिमा को स्पष्ट किया। आपने कहा आपका शरीर हनुमानजी नहीं है। किंतु भगवन यथार्थ रूप में हनुमानजी का शरीर हनुमानजी कहां होता है? हनुमानजी का भी तो दिव्य रूप ही हनुमानजी होता है। इस दिव्य रूप में ही हनुमानजी प्रकट होते हैं। आप भी भगवान उसी दिव्य रूप में हैं।
मुंडरी मध्य प्रदेश से पधारे संत श्री परसराम दास जी महाराज ने इसे कभी पुरी ना होने बाली बताई की महाराज जी के निधन से संत एवं सनातन संस्कृति को जो छती हुई है उसे कभी भी पूरा नहीं किया जा सकता है आज पूर्ण सम्मान के साथ श्री दादाजी महाराज उर्फ श्री राम बाबा जी को मां नर्मदा की गोद में जल समाधि दे दी गई। जल समाधि देने के बाद महाराज जी के भक्तों का रो-रो कर बुरा हाल था