Advertisement

चूड़ियाँ नारी के प्राण है –

www.satyarath.com

• चूड़ियाँ नारी के प्राण है –

www.satyarath.com

================

भारत के सभी प्रदेशों की नारियों को चूड़ियाँ अत्यंत प्रिय हैं। उत्तर प्रदेश में बालिकाओं के विवाह के अवसर पर हरे रंग की काँच की चूड़ियाँ पहनाई जाती हैं। ब्रज प्रदेश में विवाह के दिन सभी सुहागिन महिलाओं को चूड़ियाँ पहनाने की प्रथा आज भी प्रचलित है। हरी काँच की चूड़ियाँ पहनने से शीघ्र शुभ फल प्राप्त करने में सफलता मिलती है। देवियों को सदा सुहागिन मानकर विशेष अवसरों पर उनके लिए प्रथमतः चूड़ियाँ बाँध दी जाती हैं। पुत्र जन्म के अवसर पर भी हरी काँच की चूड़ियाँ पहनना शुभ माना जाता है।

करवा चौथ हरितालिका तीज, होली-दीवाली, भैया दूज आदि त्यौहारों पर नई सुंदर चूड़ियाँ पहनना सौभाग्य का सूचक होता है। सावन मास में तो चूड़ियों की बहार छा जाती है। हरियाली तीज पर बालिकाएँ, विवाहिता सभी रंगीन कामदार चूड़ियाँ पसंद करती हैं।ब्रज में कृष्ण-राधा के अगाध प्रेम को प्रकट करनेवाली ‘मनिहारी लीला’ अभिनीत की जाती है जिसमें राधा से मिलने हेतु कृष्ण मनिहारी का रूप धारण करके आवाज़ लगाते हैं- ‘कोउ चुरियाँ लेउजी चुरियाँ।’ बाद में उनका कृष्ण रूप प्रकट हो जाता है।

‘चूड़ियाँ टूटना’ कहना अमंगल माना जाता है। ‘चूड़ियाँ मौल गईं।’ टूटी चूड़ियों से बालिकाएँ काँच गरम करके मालाएँ बना लेती हैं और घेरा बनाकर खेल भी खेलती हैं। चंडीगढ़ के रॉकगार्डन में टूटी चूड़ियों का सुंदर उपयोग हुआ है।

आधुनिक काल में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने साकेत निवासिनी नारियों के मणिमय चूड़ियाँ पहनने का वर्णन किया है।

साकेत के प्रथम सर्ग में – चूड़ियों के अर्थ जो है मणिमयी, अंग ही कांति कुंदन बन गईं।कृष्णप्रेम दीवानी मीरा ने वैरागिन बनने पर सभी सौभाग्य और सौंदर्य वृद्धि के चिह्न मिटा दिए थे-

‘चूरियाँ फोरूँ माँग बखेरूँ, कजरा डारुँगी धोय रे

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!