बरेली से यूसुफ़ खान की रिपोर्ट
आला हज़रत के तीन रोजा उर्स-ए-रज़वी की इस्लामिया मैदान में तैयारियां शुरू हो गई हैं। उर्स में शामिल होने के लिए साउथ अफ्रीका, आस्ट्रेलिया समेत कई देशों के मेहमान पहुचे।
29, 30 और 31 अगस्त को उर्स-ए-रज़वी दरगाह प्रमुख मौलाना सुब्हान रज़ा खान (सुब्हानी मियां), सज्जादानशीन हज़रत मुफ्ती अहसन रज़ा कादरी (अहसन मियां) की सरपरस्ती में मनाया जाएगा। दरगाह से जुड़े नासिर कुरैशी ने बताया कि देश-विदेश के उलेमा और अकीदतमंद दरगाह प्रमुख और सज्जादानशीन के संपर्क में हैं। उर्स में शामिल होने के लिए साउथ अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, मारीशस, दुबई, मिस्र, नेपाल, सऊदी अरब आदि से अकीदतमंदों के आने की सूचना दरगाह पर मिली है। उर्स स्थल इस्लामिया गेट की रंगाई पुताई के अलावा, आला हज़रत की लिखी किताबों लगने वाला बुक स्टाल आदि की तैयारी की जा रही है। उर्स की तैयारियों को लेकर लंगर कमेटियों की बैठक गुरुवार शाम 7 बजे दरगाह प्रमुख सुब्हानी मियां की सरपरस्ती, सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां की सदारत और सैय्यद आसिफ मियां की मौजूदगी में हुई।
विज्ञान समेत 55 विषयों में माहिर थे आला हजरत
आला हजरत को विज्ञान समेत 55 विषयों में महारथ हासिल थी। मुफ़्ती सय्यद अजीमउददीन अज़हरी ने बताया कि दुनिया की तकरीबन सौ यूनिवर्सिटी में आला हजरत की जिंदगी और खिदमात (कारनामों) पर शोध हो रहा है। जैसे-जैसे शोध आगे बढ़ रहे हैं, आपकी जिंदगी और इल्मी कारनामों के नई-नई बातें सामने आ रही हैं। दुनिया के बड़े-बड़े बुद्धिजीवी ये देख कर हैरान हैं कि इमाम अहमद रजा खां इतने विषयों में कैसे माहिर थे। आला हजरत ने साढ़े सात घंटे में कुरान ए पाक के 30 पारे याद कर लिए थे। दुनिया में एक वक्त ऐसा आया कि सिक्के कम होने लगे और करंसी यानी नोटों को बढ़ावा मिलने लगा। उस समय कई बड़े आलिमों ने नोटों का प्रयोग करना हराम बता दिया था। आला हजरत ने शरीयत की रोशनी में एक किताब लिखकर करंसी (नोटों) के प्रयोग को जायज बताया था।