सवांददाता मीडिया प्रभारी मनोज मूंधड़ा बीकानेर श्रीडूंगरगढ़
घेरंड सहिंता में योग को सबसे बड़ा बल मानते हुए तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के लिए इसका उपदेश दिया गया है घेरण्ड मुनि : कालवा
श्रीडूंगरगढ़ कस्बे की ओम योग सेवा संस्था के निदेशक योगाचार्य ओम प्रकाश कालवा ने सत्यार्थ न्यूज चैनल पर 68 वां अंक प्रकाशित करते हुए घेरण्ड संहिता के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया। घेरण्ड-संहिता हठयोग के तीन प्रमुख ग्रन्थों में से एक है। अन्य दो ग्रन्थ हैं – हठयोग प्रदीपिका तथा शिवसंहिता। इसकी रचना १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में की गयी थी। हठयोग के तीनों ग्रन्थों में यह सर्वाधिक विशाल एवं परिपूर्ण है। इसमें सप्तांग योग की व्यावहारिक शिक्षा दी गयी है। घेरण्ड-संहिता सबसे प्राचीन और प्रथम ग्रन्थ है,जिसमे योग की आसन,मुद्रा,प्राणायाम, नेति,धौति आदि क्रियाओं का विषद् वर्णन है। इस ग्रन्थ के उपदेशक घेरण्ड मुनि हैं जिन्होंने अपने शिष्य राजा चंडकपालि को योग विषयक प्रश्न पूछने पर उपदेश दिया था।
घेरण्ड संहिता में योग का स्वरूप-
घेरण्ड संहिता में योग को सबसे बड़ा बल मानते हुए तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के लिए इसका उपदेश दिया गया है । इस ग्रन्थ में घेरण्ड मुनि द्वारा शरीर को घट की संज्ञा दी गई है, इसलिए इसे “घटस्थ योग” के नाम से भी जाना जाता है । घेरण्ड संहिता को सप्तांग योग भी कहा जाता है क्योंकि इसके सात (7) अध्यायों में योग के सात अंगों की चर्चा की गई है।जो इस प्रकार हैं – षट्कर्म,आसन,मुद्रा,प्रत्याहार,प्राणायाम ध्यान समाधि।
घेरण्ड संहिता में संतुलित यौगिक आहार की अवधारणा
अनुवाद:“नपा हुआ आहार वह भोजन होता है जो शुद्ध, मीठा, समृद्ध होता है, आधा पेट खाली छोड़ता है,और देवताओं के प्रति प्रेम के साथ खाया जाता है”
निवेदन
ओम योग सेवा संस्था श्री डूंगरगढ़ द्वारा जनहित में जारी।