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जिला कलक्टर की नम्रता वृष्णि की दूसरी बड़ी कार्यवाही, 300 करोड़़ से ज्यादा का जमीन घोटाला उजागर ,पढ़े पूरी खबर

सत्यार्थ न्यूज श्रीडूंगरगढ -सवांददाता ब्यूरो चीफ

जिला कलेक्टर नम्रता वृष्णि के कार्यकाल में जमीनों के फर्जीवाड़े को लेकर दूसरी बड़ी कार्यवाही की गई। पहले ग्रामीण क्षेत्र में कलेक्टर के निर्देशन में बड़ी कार्यवाही की गई थी इसके बाद अब बीकानेर शहर में जमीन के फर्जीवाड़े का बड़ा खेल सामने आया है। इस कार्यवाही से हड़कंप मच गया। दरअसल, कई साल पुराना मामला अब सामने आया है। ये पट्टे 55 साल पुराने हैं। लेकिन जिस रजिस्टर में इनकी एंट्री है वो साल भर पुराना है। ये सारे पट्‌टे यूआईटी से भी पहले के हैं, जब सिटी इंप्रूवमेंट कमेटी शहर की जिम्मेदारी संभालती थी। तब पट्‌टों की एंट्री रजिस्टर में होती थी। 1970 के सारे रजिस्टर जर्जर हो चुके हैं, लेकिन जिस रजिस्टर में 40 पट्टे दर्ज किए गए उसके पन्ने और स्याही नई है। यहां तक कि दस्तखत के ऊपर दस्तखत किए गए। पट्टों में जो मिसल यानी दस्तावजों की जो चेन बताई गई वह बीडीए के दस्तावेजों से मैच नहीं हो रही। फर्जीवाड़े वाली इन प्लॉट की कीमत 300 करोड़ रुपए से ज्यादा आंकी जा रही है। कमेटी की सिफारिस पर बीडीए ने एफआईआर दर्ज करवाई है। बीडीए की पकड़ में ये मामला अप्रैल में आया था। उसके बाद बीडीए ने कलेक्टर के सामने सारे तथ्य रखे। कलेक्टर ने बीडीए सचिव कुलराज मीणा, निगम उपायुक्त यशपाल आहूजा, एडीएम सिटी रमेश देव, प्रोग्रामर यतिन सोइन, अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारी अश्विनी कुमार आचार्य और अभिलेखागार विभाग के निदेशक नितिन गोयल की एक कमेटी बनाई। कमेटी से रजिस्टर, जमीन और पट्टों की सत्यता जांचने के लिए कहा। 30 जून को कमेटी ने रिपोर्ट तैयार कर बीडीए कमिश्नर और कलेक्टर को सौंपी। कमेटी ने साफ कहा कि 1970 से पहले के रजिस्टर में दर्ज पट्टों वाला रजिस्टर ना तो इतना नया हो सकता है। ना ही लिखावट नई हो सकती है। रजिस्टर पर क्रमांक नंबर भी नहीं। कई जगह सील नहीं है। इन 40 पट्टों की बीडीए के पास तो मिसल यानी चेन तो है, मगर रजिस्टर में दर्ज मिसल से मेल नहीं खाती। ऐसे में ये पट्टे फर्जी हैं। इस रजिस्टर से लेकर पट्टों की फोरेंसिक जांच होनी चाहिए। इसके लिए एफआईआर करानी अनिवार्य है।

एक अतिक्रमण हटाते वक्त मिला गड़बड़ी का सुराग

इतने बड़े खेल की शुरुआत एक मामूली से अतिक्रमण को हटाते वक्त हुई। दरअसल शहर में एक अतिक्रमण हटाने के लिए बीडीए का दल पहुंचा। वहां पर काबिज एक व्यक्ति ने सीईसी यानी सिटी इंप्रूवमेंट कमेटी जो यूआईटी बनने से पहले थी, के नाम का पट्टा दिखाया। बीडीए हैरान हो गया कि इतना पुराना पट्टा। दल ने अधिकारियों को सूचित किया। अधिकारियों ने उस पट्टे की छानबीन की तो फर्जी रजिस्टर में उसका नाम देखा। तब उस रजिस्टर में दर्ज सारे पट्टों को देखा। तब लगा ये तो पूरा रजिस्टर ही फर्जी बनाया गया। करीब 65 से 70 साल पुराना रजिस्टर और उसका पन्ना नया। स्याही भी ताजी। सीईसी के विकास अधिकारी के हस्ताक्षर के ऊपर हस्ताक्षर। लिखावट भी नई। तब मामला कलेक्टर को बताया और उसके बाद कमेटी ने एक-एक कर सारी परतें उखाड़ दी।

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