अंकुर कुमार पाण्डेय
रिपोर्ट सत्यार्थ न्युज वाराणसी
वाराणसी कभी पूर्वांचल में दशकों तक किया राज, अब जनाधार से गायब हुए वामदल
वाराणसी। एक दशक तक चुनावी रण में अपना परचम लहराने वाले कॉमरेडों का वक्त अब समाप्त हो चुका है। कभी वाराणसी के कोलअसला विधानसभा में कॉमरेडों का वर्चस्व हुआ करता था। कोलअसला अब पिंडरा बन चुका है। यहां दशकों तक चहुंओर दिखाई देने वाले लाल झंडा, लाल टोपी और कॉमरेड अब नजर नहीं आते। कहना गलत नहीं होगा कि समय समय की पराकाष्ठा पर चढ़कर लाल सलाम के नारे को अब भगवा ने अपनी आगोश में ले लिया है।पिंडरा अब पूरी तरह से भगवामय हो गया है। कॉमरेड अब यहां यदा कदा नजर तो आते हैं, लेकिन वह ‘गेहूं में घून’ जितना ही हैं। कॉमरेडों का इससे बुरा हश्र तो शायद इससे पहले इतिहास में यूपी में नहीं हुआ था। ऐसा क्या हुआ कि लगातार 9 बार इस इलाके से परचम लहराने वाले कॉमरेड ऊदल के बाद से इस इलाके से वामपंथियों की लालिमा फीकी पड़ती चली गई। अब यह पार्टी पूरी तरह से सियासी मैदान से गायब हो चुकी है पूर्वांचल की बात करें तो वाराणसी समेत पूरे पूर्वांचल में कॉमरेडों का दबदबा था। इसमें खासकर आध्यात्मिक नगरी काशी में इनकी तूती बोलती थी। सी.पी.एम., CPI से कई नेता लोकसभा चुनाव लड़े और जीतकर संसद पहुंचे। इतना ही नहीं, विधानसभा में भी इनका दबदबा कायम था। लेकिन कहते हैं न कि राजनीति में कुर्सी किसी की सगी नहीं होती, वही हाल इन वामदलों का हुआ। वर्ष 1998 के बाद से पूर्वांचल में वाम दलों का अस्तित्व समाप्त होने लगा। अब वर्तमान में न तो इनका कैडर सक्रिय है और न ही चुनावों में कोई टिकट मांगता है। इनके कार्यालयों पर भी सियापा ही पसरा रहता है। दशकों के चुनावी इतिहास में कम्युनिस्ट पार्टी खासकर हिंदी भाषी बेल्ट में अर्श से फर्श तक पहुंच गई है। घोसी सीट पर 18 वर्ष तक वामदलों का कब्जा पूर्वांचल के घोसी सीट पर वामदल का 1962 से लेकर 1980 तक कब्जा रहा। 1962 में सीपीआई के जय बहादुर सिंह संसद में पहुंचे। इसके बाद इस सीट पर 1980 तक कम्युनिस्ट नेता झारखंडे राय का कब्जा रहा। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूर्वांचल में वामदल का जनाधार क्या था। कोलअसला विधानसभा सीट पर रहा आठ बार सीपीआई का कब्जा रहा है। तत्कालीन कोलअसला अब पिंडरा विधानसभा सभा सीट पर सीपीआई के ऊदल ने लगातार आठ बार जीत दर्ज की। वहीं शहर दक्षिणी से 1967 में कम्युनिस्ट दिग्गज नेता रूस्तम सैटिन विधायक चुने गये थे। 1998 के बाद से सियासत से बाहर होने लगी कांग्रेस बात 1967 के चुनाव की करें तो वाराणसी लोकसभा सीट पर माकपा से प्रत्याशी सत्यनाराण सिंह ने कांग्रेस के दिग्गज नेता रघुनाथ सिंह को मात देकर लाल झंडा लहराया था। इसके बाद वामदल वाराणसी की सीट पर काबिज नहीं हो सकी, हां लेकिन इतना है कि 1998 तक ये पार्टी वाराणसी में नंबर दो पर रही। 1991 में राज किशोर लड़े और दूसरे स्थान पर रहे, 1998 में सीपीएम से दीनानाथ यादव लड़े और दूसरे स्थान पर रहे। वहीं बात गाजीपुर लोकसभा सीट की करें तो 1967 और 71 में सीपीआई के सरजू पांडेय ने दो बार जीत दर्ज की। गाजीपुर से ही 1991 में सीपीआई के विश्वनाथ शास्त्री ने जीत दर्ज की थी। 2014 में घोसी से सीपीआई के अतुल अंजान चुनाव लड़े लेकिन उन्हें मात्र 18112 वोट मिले थे।