कुपोषण के कलंक को मिटा रहा आदिवासी किसान सुख लाल
कराहल रिपोर्टर अमित कुमार शर्मा
श्योपुर कराहल जिले का नाम लेते ही सहरिया आदिवासियों की दीन हीन दशा और उनके कुपोषित बच्चों की तस्वीरें हमारे सामने स्वतः आ जाती थीं। इस जिले की पहचान की कुपोषण से होती थी। कुछ समय से यहां की तस्वीर बदलने लगी है। इस बदलाव को लाने का श्रेय जाता है महात्मा गांधी सेवा आश्रम के कार्यकर्ताओं को, इन कार्यकर्ताओं के प्रयास और मेहनत को फलीभूत किया यहां के किसानों ने। श्योपुर जिले के कराहल ब्लाॅक के एक सैकड़ा गांवों में पोषण प्रबंधन को लेकर मल्टी सेक्टोरल एप्रोच के माध्यम से हस्तक्षेप कर किसानों को जागरूक किया जा रहा है। महात्मा गांधी सेवा आश्रम के परियोजना समन्वयक अनिल गुप्ता ने बताया कि हमने देखा कि कराहल ब्लाॅक में रहने वाले सहरिया आदिवासियों को इस बात का ज्ञान नहीं था कि उनके यहां जिस फसल की पैदावार होती है वह हमारे और बच्चों के लिए किस तरह के पोषण का काम करती है। हमने शुरूआत में उनके साथ बैठकों का आयोजन कर उनके साथ संवाद स्थापित करना शुरू किया। संस्था के एक कार्यकर्ता संदीप भार्गव का कहना है कि पहले तो लोग हमारे पास आने से ही घबराते थे। उन्हें लगता था कि हम उनकी रूचि या फायदे की बात न करते हुए अपने स्वार्थ की बात करेंगे। इसका एक प्रमुख कारण शिक्षा का अभाव और भाषा का भेद भी था। लेकिन संस्था के कार्यकर्ताओं के सतत प्रयासों से सहरिया आदिवासी किसानों में जागरूकता आना शुरू हुई। कार्यकर्ताओं ने सहभागी सीख एवं क्रियान्वयन की नीव अपनाते हुए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और केन्द्रों की भी इस प्रक्रिया में जोड़ा।आश्रम के कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया कि हम कौन-कौन सी फसलें, फल, सब्जी और पोषण वाली चीजें उगा सकते है तो पहले मुझे भरोसा नहीं हुआ कि इस पथरीली जगह पर यह कैसे संभव है, लेकिन जब किया तो समझ आया कि सही मार्गदर्शन और मेहनत से कुछ भी संभव है।
सुखलाल आज लगभग 10 गावों के किसानों को लाभान्वित कर रहे है। इन्होने अपने यहां लगभग पांच किस्मों के नीबू, चार किस्मों के अमरूद, दो किस्मों के टमाटर, तीन तरह के पपीता, आंवला, सौंफ, अजवायन, धनिया, आलू व अन्य सभी तरह की सब्जियां लगाकर रखीं है। सुखलाल के यहां से आसपास के किसान मुफ्त में कोई भी पौधा ले जा सकते हैं साथ ही उन पौधों और सब्जियों के गुण भी जान सकते हैं। सुखलाल ने अपने यहां किसान पाठशाला खोलकर रखी है। उनकी पत्नि ने बताया कि अब हमें ना तो बाजार से कोई सब्जी खरीद कर लानी पड़ती है और ना ही अनाज। उन्होंने बताया कि गांधी सेवा आश्रम के कार्यकर्ताओं ने हमें कई ऐसी सब्जियों के बीज उपलब्ध कराए जिनकी जानकारी और उपयोग हमें मालूम नहीं था। चुकंदर, बेलुआ और कांकेरा की फली सहित कई अन्य बीज हैं। सुखलाल के फाॅर्म हाउस में मुर्गा की कड़कनाथ किस्म, मछली भी है। वे अपनी किसी भी फसल या सब्जी में केमिकल कीटनाशक का उपयोग न करते हुए प्राकृतिक रूप से स्वयं कीट नाशक तैयार करते हैं। सुखलाल के चेहरे पर एक स्वावलंबी किसान की झलक तो मिलती ही है साथ ही आत्मनिर्भर भारत के किसान का आत्मविश्वास भी दिखता है। आज वे अपने परिवार के लिए अनाज और सभी तरह की सब्जियों की पैदावार तो करते ही हैं साथ ही तेल के लिए सरसों, दाल और फल भी उनके खेतों में 12 महीनें रहते हैं। उनके खेत ही उनकी आय का प्रमुख स्त्रोत है।