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शहर कालावाली की 14 वर्षीय अनन्य भक्त सीरत जैन बनीं बाल तपस्विनी अठाई व्रत की तपस्या से जैन समाज को मिला नई दिशा का संदेश

रिपोर्टर इंद्रजीत  कालावाली
जिला सिरसा

शहर कालावाली की 14 वर्षीय अनन्य भक्त सीरत जैन बनीं बाल तपस्विनी अठाई व्रत की तपस्या से जैन समाज को मिला नई दिशा का संदेश

महासाध्वी सर्वज्ञ प्रभा जी महाराज के सान्निध्य में हुआ विशेष तप समागम, समाज के गणमान्यजनों ने किया सम्मान
कालाँवाली 2अगस्त( )
जैन धर्म में तप को मोक्ष प्राप्ति के तीन प्रमुख मार्गों में एक माना गया है और इसी पावन सिद्धांत का पालन करते हुए कालांवाली की बालिका सीरत जैन ने मात्र 14 वर्ष की आयु में अठाई व्रत की कठिन तपस्या पूर्ण कर समाज के लिए प्रेरणादायी उदाहरण प्रस्तुत किया। इस अवसर पर हरियाना सिहनी, पजाब वीरांगना महासाध्वी श्री सर्वज्ञ प्रभा जी महाराज और महासाध्वी नमिता जी महाराज के पावन सान्निध्य में एक विशेष धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

तपस्या से खुलता है मोक्ष का द्वार: महासाध्वी सर्वज्ञ प्रभा जी महाराज

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए महासाध्वी श्री सर्वज्ञ प्रभा जी महाराज ने कहा कि जैन धर्म के अनुसार मनुष्य गति से मोक्ष प्राप्त करने के तीन मार्ग हैं — सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र। तप भी इसी सम्यक चरित्र का महत्वपूर्ण अंग है। उन्होंने कहा कि तप के द्वारा हम अपने संचित कर्मों की निर्जरा कर सकते हैं और मोक्ष का द्वार खोल सकते हैं। सीरत जैन ने जो साधना की है, वह न केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि समाज के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है।”
उन्होंने फरमाया कि मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ है। इस शरीर को पाने के लिए देवगण भी लालायित रहते हैं। इसलिए इस चातुर्मास काल में जप, तप और स्वाध्याय का संकल्प लेना चाहिए।
सीरत जैन — एक नई पीढ़ी के लिए बनी मिसाल
सूरज भान जैन परिवार की


प्रपोत्री एवं काका जैन की लाड़ली सीरत जैन ने तप की कठिन राह पर चलते हुए अठाई व्रत की तपस्या पूर्ण की, जिसमें 8 उपवास किए जाते हैं। यह व्रत जैन धर्म में अत्यंत कठिन और पुण्यकारी माना जाता है। बालिका सीरत जैन की इस साधना ने पूरे कालांवाली क्षेत्र में धार्मिक जागरूकता की लहर पैदा कर दी है। इस विशेष अवसर पर महासाध्वीजी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए यह भी कहा कि जो कार्य वयोवृद्ध साधक भी सोचकर पीछे हटते हैं, वह कार्य सीरत जैसी बालिका ने करके दिखाया है। यह पूरे जैन समाज के लिए गर्व की बात है। इससे हमें यह संदेश मिलता है कि आयु कोई बाधा नहीं, अगर संकल्प दृढ़ हो तो मोक्ष की राह सबके लिए खुली है।

समाज ने दी “बाल तपस्विनी” की उपाधि

इस महान तप के लिए जैन समाज की ओर से बालिका सीरत जैन को “बाल तपस्विनी” की उपाधि देकर विशेष रूप से सम्मानित किया गया। यह उपाधि न केवल एक पदवी है, बल्कि एक आदर्श का परिचायक है कि युवा पीढ़ी भी धर्म के गूढ़ मार्ग पर चल सकती है और समाज को सकारात्मक दिशा दे सकती है।
गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में हुआ भव्य कार्यक्रम
इस अवसर पर कालांवाली के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र के कई प्रमुख चेहरे भी उपस्थित रहे। एसएस जैन सभा के प्रधान संदीप जैन ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह अवसर समाज के लिए एक चेतना का संचार है। हमें इस तप की प्रेरणा से अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।
इस भव्य आयोजन में प्रमुख रूप से उपस्थित अतिथियों में
वार्ड 12 के पार्षद प्रतिनिधि दारा सिंह,
वार्ड 13 के पार्षद नितिन गर्ग अपनी धर्मपत्नी ललिता गर्ग के साथ,शीतला माता मंदिर कमेटी के प्रधान जोनी मुनीम,
मुनीम संगठन के प्रधान रितेश गोयल,चेयरमैन गोपाल कुंशल,आढ़ती संगठन के जिला प्रधान प्रदीप जैन साहित अनेक गणमान्य मौजूद थे।
सभी अतिथियों ने बालिका सीरत को आशीर्वाद देते हुए समाज में तप, धर्म और स्वाध्याय की संस्कृति को बढ़ावा देने का संकल्प लिया

चातुर्मास: साधना का सुनहरा अवसर
महासाध्वीजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा कि चातुर्मास का यह समय आत्म-शुद्धि,आत्म-अनुशासन और आत्म-संयम का श्रेष्ठ अवसर है। यह वह समय होता है जब साधक को अपने भीतर झांकने का अवसर मिलता है। तपस्या केवल शरीर को कष्ट देना नहीं, बल्कि आत्मा की ऊंचाइयों तक पहुंचने का एक साधन है। उन्होंने सभी श्रद्धालुओं को आग्रह किया कि आप भी सीरत जैसी बालिका से प्रेरणा लें और आयंबिल, उपवास, सामायिक जैसे व्रतों को अपने जीवन में अपनाएं। यही जीवन को सफल और मोक्षपथ पर अग्रसर करने का मार्ग है। इस मौके पर जैन एकता मंच जिला अध्यक्ष व एस एस जैन सभा कालावाली अध्यक्ष सन्दीप जैन नरेश गर्ग जैन राजेन्द्र जैन सुनील कुमार जैन प्यार लाल जैन तरुण जैन संजय जैन कविस गर्ग जैन पवन जैन महामंत्री राकेश कुमार जैन निर्माण जैन बवीता जैन सनजु जैन तनुजा जैन मालती जैन तनु जैन बबली गर्ग जैन आदि थे

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