जीवन: अकेलेपन से एकांत की ओर एक यात्रा
आज का समाज बाहरी संबंधों और सतही संपर्कों से भरा है। यहां अकेलापन आम बात है लेकिन एकांत दुर्लभ। समाज हमें मिलना तो सिखाता है पर स्वयं से मिलना नहीं, जबकि एकांत वह दशा है जिसमें व्यक्ति स्वः से जुड़ता है और वही उसे समाज से बेहतर रूप से जुड़ने की शक्ति देता है।
मनुष्य का जीवन केवल बाहरी घटनाओं का सिलसिला नहीं है बल्कि यह गहन आंतरिक यात्रा भी है। यह यात्रा प्रारंभ होती है अकेलेपन से-एक ऐसा अनुभव जहां व्यक्ति स्वयं को भीड़ में भी अधूरा, टुकड़ों में बिखरा हुआ महसूस करता है परंतु यही अकेलापन धीरे-धीरे एकांत में रूपांतरित हो सकता है जहां व्यक्ति स्वयं से मिलने लगता है और स्वयं को पहचाने लगता है।
भीड़ दुनिया से जोड़ती है, एकांत आपको आपसे
अकेलापन क्या है?
अकेलापन वह स्थिति है जब व्यक्ति के पास भौतिक रूप से लोग हैं फिर भी वह अपने मन की बात, भावनाएँ, पीड़ा या सोंच किसी से साझा नहीं कर पाता। यह भावनात्मक रिक्तता है जैसे कोई शोरगुल भरे मेले में खड़ा हो लेकिन मन पूरी तरह से सुनसान हो। अकेलापन आमतौर पर एक नकारात्मक स्थिति मानी जाती है, जिसमें व्यक्ति खुद को सामाजिक, भावनात्मक या मानसिक रूप से कटा हुआ महसूस करता है। यह मनोवैज्ञानिक अवस्था कई कारणों से उत्पन्न हो सकती है, जैसे- सामाजिक अलगाव- परिवार, मित्र या समुदाय से दूरी या संबंधों का टूटना, अस्तित्व का संकट
आत्म स्वीकृति की कमी या तिरस्कार का अनुभव जैसे- रिश्तों में असफलता, दूसरों से अपेक्षा मिलना , आत्म संवाद की कमी
आधुनिक जीवन शैली जैसे- अत्यधिक डिजिटल कनेक्शन लेकिन भावनात्मक दूरी, व्यस्तता में संबंधों की उपेक्षा
मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ, जैसे:- डिप्रेशन, चिंता, तनाव, हीन भावना,
परिवर्तन के दौर, जैसे- स्थान परिवर्तन सेवानिवृत्ति, विधवा या विधुर हो जाना आदि।
एकांत क्या है?
एकांत अकेलेपन का विपरीत नहीं है बल्कि उसका परिष्कृत रूप है। यह वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति अकेला तो होता है पर अकेला महसूस नहीं करता। यह चयनात्मक अकेलापन है जिसमें व्यक्ति स्वयं को खोजता है, समझता है, आत्मबोध की ओर बढ़ता है। यह एक सकारात्मक स्थिति है जिसमें व्यक्ति जानबूझकर दूसरों से थोड़ा हटकर समय बिताना चाहता है ताकि वह स्वयं से जुड़ सके।
एकांत वह दर्पण है जिसमें आत्मा स्वयं को पहचानती हैं।
एकांत के कई कारण हो सकते हैं, जैसे-
आत्म- अवलोकन और आत्म विकास की चाह रचनात्मकता और ध्यान की जरूरत- लेखक कवि, कलाकार आदि एकांत में बेहतर सृजन करते हैं। ध्यान, साधना योग आदि के लिए एकांत आवश्यक है।
सामाजिक थकान- लगातार सामाजिक संपर्क से ऊब, मानसिक थकावट या एकांत में पुनः ऊर्जा संचयन करना।
दार्शनिक या आध्यात्मिक झुकाव- जीवन के सही प्रश्नों का उत्तर तलाशने की प्रक्रिया
निजी स्वतंत्रता और नियंत्रण- अपने समय या सोंच पर नियंत्रण की इच्छा
कबीर दास जी कहते हैं कि- ” जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहीं”
जब ‘मैं’ का अहंकार था तब ईश्वर नहीं दिखा लेकिन जब वह अहंकार चला गया तो भीतर ही ईश्वर मिल गया, यह एकांत का ही फल है।
यह यात्रा कैसे होती है?
यह यात्रा धीरे-धीरे होती है और इसके कुछ स्पष्ट चरण हो सकते हैं-
स्वीकृति: – सबसे पहले व्यक्ति अपने अकेलेपन को स्वीकार करता है। वह इससे लड़ता नहीं बल्कि समझने की कोशिश करता है।
मनन: – फिर वह आत्म चिंतन करता है अपनी भावनाओं को समझता है।
सृजन: – इस अवस्था में व्यक्ति लिखता है, गाता है, रचता है। क्योंकि एकांत में सृजन की ऊर्जा जन्म लेती है।
समाधान :- अंततः व्यक्ति स्वयं के समाधान पाने लगता है और दूसरों पर निर्भरता कम हो जाती है।
“अकेलापन डराता था तोड़कर
एकांत संवारता है जोड़कर” कबीर,सूर, तुलसी, बुद्ध, महावीर, रामकृष्ण परमहंस, प्रेमचंद, रविंद्रनाथ टैगोर, अनेक कलाकार, कवि, लेखक, संगीतकार आदि न जाने ऐसे कितने उदाहरण हैं जिन्होंने अपने एकांत में ही अनेक उत्कृष्ट विचारों, कलाओं, रचनाओं को जन्म दिया।
एकांत वह जगह है जहां विचार जन्म लेते हैं और आत्मा पुष्पित होती है।
जहां एक ओर अकेलापन इस संसार की सबसे बड़ी सजा है तो एकांत संसार का सबसे बड़ा वरदान। अकेलेपन में छटपटाहट है और एकांत में शांति। जब तक हमारी नज़र बाहर की ओर है तब तक हम अकेलापन महसूस करते हैं और जैसे ही नज़र भीतर की ओर मुड़ी तो एकांत का अनुभव होने लगता है।
यह जीवन और कुछ नहीं वस्तुत अकेलेपन से एकांत की ओर एक यात्रा ही है। ऐसी यात्रा जिसमें रास्ता भी हम हैं, राही भी हम और मंजिल भी हम ही हैं।
जीवन की सबसे मूल्यवान यात्रा बाहर से भीतर की ही तो है जहां अकेलापन पीड़ा नहीं बल्कि एकांत की प्रस्तावना बन जाता है। इस यात्रा में व्यक्ति धीरे-धीरे ‘भीड़’ से निकलकर ‘स्व’ और बढ़ता है। अकेलेपन से एकांत तक का यह सफर आत्म ज्ञान, आत्म स्वीकृति और अंततः आत्म संतोष की ओर ले जाता है। एक सूक्ति में कहें तो ‘अकेलापन वह अंधकार है जिसमें हम रोशनी खोजते हैं और एकांत वह रोशनी है जिसमें हम स्वयं को खोजते हैं’।
कभी ख़ुद से भी मिलने की फ़ुर्सत निकाला कर
जरा एकांत में चल थोड़ी राहत निकाला कर
वह जो ढूँढता है तू यहाँ सैकड़ों चेहरों में
ख़ुद के साये से भी थोड़ी मोहब्बत निकाला कर
डॉ मीनाक्षी गंगवार
प्रधानाचार्या
राजकीय बालिका हाईस्कूल सोहरामऊ उन्नाव