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डबल इंजन वाली सरकार से राजस्थानी मायड़ भाषा मानता की बड़ी आस

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Satyarath
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संवाददाता:- सिरोही/राज.

डबल इंजन वाली सरकार से राजस्थानी मायड़ भाषा मानता की बड़ी आस

नेपाल और अमरिका में भी है राजस्थानी को मान्यता, पर राजस्थान में नहीं- करोड़ों लोगों की भाषा है राजस्थानी, इसके शब्दकोष में ढाई लाख शब्द- देश के साथ विदेशों में भी बोली जाती है हमारी भाषा- सबसे पहले नागौर से उठी थी आवाज, राज्य सरकार पिछले 21 वर्ष में केन्द्र सरकार को लिख चुकी 11 पत्र
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सिरोही। हमारी मातृभाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए पिछले 21 वर्ष से संघर्ष चल रहा है। राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए राजस्थानी लोग मांग कर रहे हैं। लेकिन सफलता आज भी नहीं मिल पाई है। पिछले 21 वर्षों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हो या फिर वसुंधरा राजे, केन्द्र सरकार को दोनों के कार्यकाल में पत्र लिखे गए। ऐसा भी नहीं है कि केन्द्र और राज्य में अलग-अलग पार्टी की सरकारें होने से यह कार्य नहीं हो रहा है, बल्कि कई बार दोनों स्थानों पर एक ही पार्टी की सरकारें थी, लेकिन राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित नहीं किया गया। अब एक बार फिर राजस्थान व केन्द्र में भाजपा की सरकार है, ऐसे में आशा जताई जा रही है कि जिस राजस्थानी भाषा को नेपाल और अमरिका में भी मान्यता है, उसे कम से कम राजस्थान में तो मान्यता मिलनी ही चाहिए।

करोड़ों लोगों की भाषा है राजस्थानी, स्वयं सरकार ने माना:-
राजस्थान सहित देश के हर राज्य के साथ विदेशों में भी राजस्थानी भाषा बोली और पढ़ी जाती है। राजस्थानी के शब्दकोष में ढाई लाख शब्द हैं और यह करोड़ों लोगों की भाषा है। राजस्थानी को नेपाल में संवैधानिक दर्जा है, जबकि अमरिका के हाउस ऑफ कांग्रेस (संसद भवन) में राजस्थानी भाषा को विदेशी भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है। साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने भी राजस्थानी भाषा को अन्य भाषाओं के समकक्ष मान्यता दे रखी है। राज्य सरकार की ओर से केन्द्र सरकार को लिखे गए अद्र्धशासकीय पत्रों में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने के लिए कई प्रकार की जानकारियों के साथ सिफारिश की गई थी, जिसमें बताया कि राजस्थानी करोड़ों लोगों की भाषा है, फिर भी राजस्थानी भाषा अपने ही घर में बेगानी है।

जानिए, राज्य सरकार ने कब-कब लिखे केन्द्र सरकार को पत्र:-
व्यापक एवं सुसमृद्ध भाषा राज्य सरकार के अनुसार वीरभूमि, राजस्थान प्राचीन, पौराणिक व धार्मिक गौरवशाली विरासत का पर्याय है। राजस्थान की भाषा भी समृद्ध है और यह प्राचीन ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत की स्वामिनी है। इस भाषा की प्रकृति साहित्यिक है और इसका विपुल साहित्य उपलब्ध है। राजस्थानी भाषा में विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली बोलियां यथा- हाड़ौती, वागड़ी, मेवाती, ढूंढाडी, मारवाड़ी, मालवी, शेखावाटी व बृज (पिंगल) आदि शामिल हैं। सरकार ने पत्रों में बताया कि राजस्थानी भाषा स्वयं में व्यापक एवं सुसमृद्ध भाषा है और इस पर विदेशों में भी शोध कार्य हो रहे हैं। राजस्थान के प्रवासी नागरिक देश-विदेश में स्थाई रूप से चले गए हैं, लेकिन वहां पर भी उनके सामाजिक परिवेश को यथावत रखने में राजस्थानी उनकी मायड़ भाषा के तौर पर आज भी उन्हें सम्बल प्रदान करती है। वे देश-विदेश में राजस्थान की संस्कृति, सभ्यता एवं गौरवशाली परम्परा को राजस्थानी भाषा के माध्यम से अद्यतन, निरन्तर जीवन्त रखे हुए है।

राजस्थानी का खुद का व्याकरण:-
राजस्थानी भाषा स्वतंत्र विशाल तथा विविध प्रकार के साहित्यिक स्वरूपों से सम्पन्न भाषा है। इसका अपना व्याकरण है। इस तथ्य को विश्व के प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिकों, विद्वानों तथा साहित्यकारों ने सहर्ष स्वीकार किया है। विख्यात इतिहास ग्रंथों व ज्ञान कोषों में इसकी विशिष्टता दर्शाई गई है। यह गुजरात, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश के साथ-साथ पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में भी बोली जाती है।

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