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राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता और प्रदेश में राजभाषा का दर्जा आखिर कब तक मिलेगा?

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Satyarath
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संवाददाता:- हर्षल रावल सिरोही/राज.

राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता और प्रदेश में राजभाषा का दर्जा आखिर कब तक मिलेगा?


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सिरोही। राजस्थान की सात करोड़ से अधिक आबादी और लाखों प्रवासी राजस्थानियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए संसद में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता प्रदान किए जाने और प्रदेश में राजस्थानी राजभाषा का दर्जा आखिर कब तक मिलेगा? यह यह प्रश्न आज हर किसी राजस्थानी के दिल में उभर रहा हैं।
पिछले दिनों जयपुर के राजस्थान इंटरनेशनल सेन्टर में आयोजित माणक अलंकरण समारोह में केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली तथा भाजपा विधायक गोपाल शर्मा और पद्मश्री से अलंकृत चन्द्र प्रकाश देवल आदि की उपस्थिति में यह मामला प्रमुखता से उभरा था। पद्मश्री चन्द्र प्रकाश देवल और वरिष्ठ पत्रकार तथा दैनिक जलते दीप एवं राजस्थानी भाषा की इकलौती पत्रिका माणक के प्रधान संपादक ने पदम मेहता ने राजस्थानियों के दर्द को बखूबी ढंग से रखा तथा यह भी बताया कि देश की कई ऐसी भाषाओं को संवैधानिक मान्यता मिल चुकी है, जिनको बोलने वाले राजस्थानी भाषा के मुकाबले बहुत ही कम हैं।


केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की मांग संबंधी मामले की गंभीरता को मानते हुए कहा कि यह मांग कई वर्षों से जन भावनाओं के अनुरूप जाहिर तौर पर उठाए जा रही हैं और इसके पूर्ण होने तक चलती रहेगी। उन्होंने बताया कि भारत सरकार के स्तर पर भी राजस्थानी के साथ ही भोजपुरी और भोती को मान्यता देने का मामला काफी आगे बढ़ा था। लेकिन पूर्ण नहीं हो सका, लेकिन किसी को भी इसे निराश नहीं होना चाहिए। अभी भी सभी के सहयोग से इसके उत्तम परिणाम आ सकते हैं।
शेखावत ने सधे हुए ढंग से मारवाड़ी भाषा में कहा कि प्राथमिक शिक्षा की पढ़ाई मातृभाषा राजस्थानी में लागू करने के मामले में राजस्थान सरकार को ही तत्काल पहल करनी चाहिए। शेखावत ने राजस्थानी भाषा के लिए पदम मेहता के जुनून की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने इसे जीवन का मिशन बना दिया है। संसद और राजस्थान विधानसभा का कोई सत्र ऐसा नहीं होता जिसमें वे अपने तथ्यों से भरे पत्र के माध्यम से सांसदों और विधायकों को राजस्थानी भाषा के पक्ष में आवाज उठाने तथा मान्यता दिलाने की बात कहे बिना नहीं रहते हैं। उनका धैर्य, संयम और गंभीर प्रयास अभिनंदन योग्य हैं।
पद्मश्री चन्द्र प्रकाश देवल ने तों यहां तक कहा कि यदि केन्द्र और राजस्थान सरकार राजस्थानी भाषा को अनुमोदित करती है तो वे अपने अन्य सहयोगियों की मदद से राजस्थान विधानसभा में 25 अगस्त 2003 में पारित संकल्प पत्र में शामिल राजस्थान के विभिन्न अंचलों की राजस्थानी बोलियों एवं भाषाओं पर आधारित सिलेबस तैयार करने की जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं। हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्व विद्यालय की कुलपति प्रो सुधि राजीव ने भी घोषणा की है कि वे विश्वविद्यालय की आगामी गवर्निंग बॉडी की बैठक में राजस्थानी भाषा में जर्नलिज्म कोर्स आरंभ करने का प्रस्ताव रखेगी।
वर्तमान में संसद में लोकसभा और राज्यसभा एवं राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र चल रहें हैं। ऐसे में यह उपयुक्त समय हैं, जब राजस्थान के सांसदगण और विधायक गण इस मामले को प्राथमिकता से उठा कर राजस्थानी भाषा को उसका वास्तविक सम्मान दिलवाएं। मेहता ने इस आशय का पत्र मय प्रमाणिक जानकारी के साथ सभी सांसदों और विधायकों को भेज करोड़ों राजस्थानियों की इस पीड़ा को उन तक पहुंचाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा के सामने सामूहिक प्रयास से राजस्थानी भाषा को अपना मान सम्मान और हक हकूक दिलाने का अनुरोध किया हैं। दरअसल राजस्थानी भाषा को लेकर कतिपय लोगों को भ्रम है कि इसकी लिपि क्या होंगी और राजस्थान के विभिन्न अंचलों में बोली जाने वाली भाषाओं को एकीकृत कैसे किया जायेगा? जबकि इसका जवाब राजस्थान विधानसभा में करीब 22 वर्षों पहले पारित संकल्प पत्र में ही निहित है जिसमें कहा गया है कि राजस्थानी भाषा की लिपि देवनागरी में ही रहेंगी, राजस्थान के हर अंचल ही नहीं हर जिलों में बोली जाने वाली भाषा को भी संकल्प पत्र में राजस्थान के हर अंचल की भाषा को समान रूप से शामिल किया गया है। सर्व शिक्षा अभियान के दौरान राजस्थान के हर अंचल की भाषा की पुस्तकों में लिखी रचनाओं का प्रयोग सफलता पूर्वक किया जा चुका है। राजस्थानी गीतों और संगीत का स्वरूप भी वैसा ही है, जिसमें हर अंचल की भाषा और बोलियों का प्रयोग हो रहा हैं।
राजस्थानी भाषा को समर्पित पदम मेहता ने सदैव के प्रकार राज्य के सांसदों और विधायकों को पत्र लिखें है। अपने पत्र में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को डेढ़ सौ से भी अधिक विधायकों द्वारा पत्र जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा लिखे पत्र की प्रतिलिपि के साथ संविधान के अनुच्छेद 245 के अन्तर्गत राजस्थानी भाषा को राजस्थान में राजभाषा का दर्जा प्रदान किया जाना चाहिए। राजस्थानी भाषा को संवेधानिक मान्यता दिलाने और भारत सरकार द्वारा लागू की गई नई शिक्षा नीति के अनुरूप प्राथमिक शिक्षा की पढ़ाई मातृभाषा राजस्थानी भाषा में प्रदान करवाने की बात कही है। साथ ही लिखा है कि अन्य प्रदेशों के भांति संविधान और राजस्थानी भाषा के पक्ष में विस्तार से इसके पक्ष में तथ्यात्मक जानकारियां देते हुए इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग उठाने का आग्रह किया हैं। उन्होंने प्रदेश के विधायकों को मारवाड़ी में लिखे पत्र में राजस्थानी भाषा को मान्यता देने और भारत सरकार द्वारा लागू की गई नई शिक्षा नीति के अनुच्छेद 245 के अनुरूप प्राथमिक शिक्षा की पढ़ाई मातृभाषा राजस्थानी में तत्काल लागू करने करने के लिए राजस्थान सरकार से आग्रह करने तथा वर्तमान बजट सत्र में ही इसकी घोषणा कराने का प्रयास करने को लिखा हैं।
राजस्थानी भाषा के लिए किए जा रहें इन अनवरत प्रयासों से अब यह आशा की जा रही है कि राजस्थान की वर्तमान भजन लाल सरकार प्राथमिक शिक्षा की पढ़ाई मायड़ भाषा राजस्थानी में लागू करने के लिए करोड़ों राजस्थानियों की आशाओं के अनुरूप तत्काल कोई निर्णय लेंगी। इसी प्रकार केन्द्र की मोदी सरकार भी राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने के विषय को लेकर अब बिना देरी किए कोई सही निर्णय लेंगी।

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