सत्यार्थ न्यूज़ भीलवाड़ा
अब्दुल सलाम रंगरेज
शनिवार को रमजान का चांद दिखा, रोज शुरू
रमजान रहमत और बरकतों वाला महीना है -मौलाना शाह आलम-
भीलवाड़ा
शनिवार को माहे रमजान काचांद का दीदार होते ही मुस्लिम समुदाय का पवित्र माह शुरू हो गया। सभी मस्जिदों का दरगाहों पर लाइट एवं रोशनी से इबादतगाहे जगमगा उठी। रमजान में इबादत का काफी महत्व होता है। रमजान का महीना इबादत व रहमतों का महीना है। चांद दिखाई देने के साथ ही मस्जिदों में ईशा की नमाज के साथ ही तरावीह की नमाज शुरू हुई। बुजुर्गों,औरतों और बच्चों में रोजे रखने की खुशी नजर आई।
चांद का दीदार होते ही मुस्लिम समुदाय का पवित्र माह रमजान शनिवार से शुरू हो गया। रमजान का महीना सबसे पवित्र महीना माना जाता है। पूरे महीने मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं। रोजा रखने वाले व्यक्तियों की अल्लाह द्वारा उसके सभी गुनाहों की माफी दी जाती है। इसलिए प्रत्येक मुसलमान के लिए रमजान का महीना साल का सबसे विशेष माह होता है।
काछोला पेश इमाम शाह आलम ने बताया कि रमजान का महीना रहमतों का,व बरकतों वाला है।इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, रमजान का महीना खुद पर नियंत्रण एवं संयम रखने का महीना होता है। गरीबों के दुख-दर्द को समझने के लिए रमजान के महीने में मुस्लिम समुदाय द्वारा रोजा रखने की परंपरा है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, रमजान के महीने में रोजा रखकर दुनिया में रह रहे गरीबों के दुख-दर्द को महसूस किया जाता है। अपने आसपास रहने वाले परिवार कभी भूखा ना रहे।
रोजा आत्म संयम व आत्म सुधार का प्रतीक रोजे के दौरान संयम का तात्पर्य है कि आंख, नाक, कान, जुबान का भी रोजा रखा जाता है। क्योंकि रोजे के दौरान बुरा नहीं सुनना, बुरा नहीं देखना, बुरा नहीं बोलना और न ही बुरा एहसास किया जाता है। इस तरह से रमजान के रोजे मुस्लिम समुदाय को उनकी धार्मिक श्रद्धा के साथ-साथ बुरी आदतों को छोड़ने के अलावा आत्म संयम रखना सिखाते हैं। सारे बुरे विचार रोजे के दौरान मन से दूर हो जाते हैं।
अकीदतमंद रविवार को सेहरी खाने के बाद पहला रोजा रखेंगे। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, रमजान नौंवा महीना होता है। पूरे महीने को मुस्लिम पाक महीना मानते हैं। रोजा रखने के साथ रात में ईशा की नमाज के साथ तरावीह की नमाज पढ़ी जाती है। पांच वक्त की नमाज के साथ कुरान की तिलावत करते हैं।
रमजान का यह महीना तीन भागों में बंटा होता है। मतलब यह कि एक से लेकर दस दिनों तक रहमत का अशरा होता है, तो ग्यारह से लेकर बीस तक बरकत का और 21 से लेकर 30 रोजा तक मगफिरत होता है। रमजान में इबादत का काफी महत्व होता है। यही कारण है कि लोग इबादत के साथ-साथ जकात भी निकालते हैं। जकात का अर्थ होता है अपनी आय का दो अथवा ढाई प्रतिशत जरूरतमंदों में दान करना।