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सनातनियों के देश में गायों की दुर्दशा , सर्दी, गर्मी, बरसात में तड़प तड़प कर मर रही है गो माता

बरेली रायसेन मध्य प्रदेश से संवाददाता तखत सिंह परिहार की रिपोर्ट सिलवाह

सनातनियों के देश में गायों की दुर्दशा , सर्दी, गर्मी, बरसात में तड़प तड़प कर मर रही है गो माता


सनातन पंरपरा में गाय का बहुत ज्यादा पूजनीय माना गया है। मान्यता है कि जिस घर में गाय रहती है, उस घर के सभी वास्तु दोष दूर हो जाते हैं ।
हिंदू धर्म में गाय की पूजा सनातान काल से चली आ रही है. भविष्य पुराण के अनुसार गाय में तीनों लोक के तीन कोटि देवी-देवता निवास करते हैं. भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापरयुग में अपना बहुत समय गाय के साथ बिताया और लोगों को गाय की पूजा और सेवा के लिए प्रेरित किया.
सनातन परंपरा में तमाम तरह के दान को महादान बताया गया है. इसमें गोदान का बहुत ज्यादा महत्व है. गरुण पुराण के अनुसार वैतरणी को पार करने के लिए गोदान का महत्व बताया गया है.
पृथ्वी पर गाय ही एकमात्र जानवर है, जिसे माता कहकर बुलाया जाता है. जानवरों में सबसे पवित्र मानी जाने वाली गाय को कामधेनू के समान सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला बताया गया है.
हिंदू धर्म में गाय के गोबर को बहुत ज्यादा पवित्र माना गया है. यही कारण है कि किसी भी पूजन कार्य में जमीन को लीप कर शुद्ध करने के लिए गाय के गोबर का प्रयोग किया जाता है. वहीं गोमूत्र का प्रयोग पंचामृत बनाने के लिए किया जाता है. साथ ही साथ गोमूत्र का प्रयोग आयुर्वेद में औषधि बनाने के लिए किया जाता है.
गाय का सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि ज्योतिष महत्व भी है. ज्योतिष के अनुसार 09 ग्रहों की शांति के लिए गाय की पूजा विशेष रूप से लाभदायी है. यदि आपकी कुंडली में मंगल अशुभ है तो लाल रंग की गाय की सेवा से शुभ फल की प्राप्ति होती है. इसी प्रकार बुध की शुभता पाने के लिए गाय को हरा चारा डालने से लाभ मिलता है. शनि संबंधी दोष को दूर करने के लिए काले रंग की गाय की सेवा और दान अत्यंत फलदायी होता है.
‘कामधेनु’ जैसी मुकद्दस गाय के धर्मपारायण देश भारत में हरदम प्रकृति की दुधारू गाय के पालने से मोहभंग होना तथा गौधन की दुर्गति का कारण पश्चिमी शिक्षा व तहजीब का प्रभाव है, यह मंथन का विषय है…

‘आपके गोविंद सा कोई गौपालक खोजति हनु। ‘ मैं सुभद्रा, सुंदा, कपिला, सुरभि, नंदन वना कान्हा की प्रिय ‘पद्मा’ अब बेसहरा स्ट्रीट, चौक विज्ञापन पर आशियाना तलाशती हूं’। शायद बेसहारा में दार-दार की जगहें लालची अपमान हो रहे गौधन के दिल की यही आवाज होगी, मगर सदकों पर किस्मत तलाश रहे बेजुबान गोवंश की जुवान को समझेगा कौन ? अगर माँ के बाद किसी दूध की महिमा और महत्व है, तो वह केवल गाय का दूध है ।
इसी अनादिकाल से भारतीय संस्कृति में एकमात्र गाय को ‘गौमाता’ का दर्जा प्राप्त है । कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला पर्व ‘गोपाष्टमी’ गौधन को समर्पित है । मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने गौचारण लीला की शुरूआत की थी । चन्द्रवंशीय क्षत्रिय श्रीकृष्ण गोपाल बने । गोरक्षक के रूप में श्रीकृष्ण का नाम ‘गोविंद’ लिया गया है । ‘गावो ममग्रत: सन्तुगावो मे सन्तु पृष्ठत: गावों मे हृदय सन्तु गवा मध्ये वसाम्यहम्’ यानी मेरे आगे, पीछे और हृदय में स्थित रहे, हृदय के बीच ही मैं सदा निवास स्थान पर हूं । गाँव के संदर्भ में श्रीकृष्ण के प्रसंग का उल्लेख ‘भविष्यपुराण’ के उत्तरपर्व में हुआ है। धार्मिक ग्रंथों में जमदग्नि, सिद्धार्थ, असीत और गौतम जैसे महान ऋषियों के आश्रमों में नंदा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला जैसे गौओं का उल्लेख मिलता है। सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद, उपनिषद और पुराणों में ऋषियों ने गौधन की महिमा को लिपिबद्ध करके दुनिया को गाय के समग्र गुणों से परिचित कराया था। मगर ऋषि-मुनियों द्वारा गौधन के सन्दर्भ में ज्ञान और उपदेशों को भारत में तिलांजलि दी जा चुकी है ।
आचार्य रजनीश द्विवेदी
लेखक एवं चिंतक
यह लेखक के निजी विचार है

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