सवांददाता भारती लड्ढा जयपुर राजस्थान
सत्यार्थ न्यूज जयपुर/बाड़मेर -ऑन लाइन गेमिंग के दुष्परिणाम खत्म नहीं हो रहे है। जहां हाथ रखो वहां दर्द की घर-घर की इस कहानी में मां-बाप अब औलाद की करतूत को भुगत रहे है। दसवीं-ग्यारहवीं में आए विद्यार्थियों ने 10-10 लाख के कर्ज लिए है। कर्जा देने वाले दस का सैकड़ा व्याज चुकाने वाली गैंग है, जो ऐसे शिकार की तलाश में रहती है। दबंगई से चल रहे व्याज बट्टे के इस धंधे और ऑन लाइन गेमिंग के शिकारों का गठजोड़ होने से कई परिवार लुट रहे है।
जल्दी नहीं करते तकाजा
रुपया देने के बाद ये नाबालिगों से न तो तत्काल तकाजा कर रहे है और न ही उनके साथ व्यवहार खराब। उल्टा उनको मिलकर झांसे में लेते रहते हैं। जैसे ही यह कर्जा लाखों में पहुंचता है, वे उन पर हावी होने लगते हैं। फिर एक का कर्जा उतारने के लिए दूसरा पहुंच जाता है। नाबालिग यह सोचते हैं कि इसका कर्ज तो उत्तरा जबकि उन्हें यह मालूम ही नहीं चल रहा है। कि उन्हीं की गैंग का साथी है। ऐसे मामलों में जब कर्जा 10 लाख पार पहुंचता है, तब बात मां-बाप तक जा रही है। आलम यह है कि यह गैंग इन नाबालिगों से ब्याज और मूल मिलाकर वसूली तो कर ही रहे है, ऑन लाइन गेमिंग में इनकी लत को भी बिगाड़ रहे है।
दस का सैकड़ा ब्याज
बाजार में साहूकारी ब्याज डेढ़ और दो रुपए प्रति सैकड़ा लिया जाता है, जो बैंक से इतर है। लेकिन पिछले सालों से ब्याज के इस कारोबार की गैंग गांव- गांव खड़ी हो गई है। यह गैंग अब दस रुपए प्रति सैकड़ा का ब्याज उन नाबालिगों को अपने चक्कर में डालकर लेती है जिनको ऐश-शौक-मौज की लत लग रही है। इन लोगों के लिए ऑन लाइन गेमिंग एक बड़ा हथियार बन गया है। ऑन लाइन गेम खेलने वालों के पास रुपया परिवार से सीधा इतना नहीं आने पर ये इन लोगों से हजार-दो हजार से कर्जे की शुरूआत में पड़ रहे हैं और इसके बाद इस राशि को लाखों तक पहुंचा दिया है।
दर्ज नहीं हो रहे मामले
इन मामलों को पुलिस में दर्ज नहीं करवाया जा रहा है। माता-पिता घर परिवार की इज्जत को बचाने और सयाने होते बेटों की फिक्र कर मन मसोस कर कर्जे चुका रहे है। जुआरी की लत में पड़ रहे बच्चों की फिक्र लगातार परिवार को होने लगी है।
केस 1
बाड़मेर शहर के कल्याणपुर में एक कारोबारी का अच्छा कारोबार चल रहा है। उसने मिल्कियत भी अपने बूते बना ली लेकिन उसके बेटे को ऑन लाइन गेम की लत लग गई। बेटा पैसे वाला का था तो उसको उधार देने वाले दस सैकड़ा ब्याज के लोग मिल गए। उनको लगा यह राती-माती पार्टी है। बस फिर क्या था,मकान बेचकर कर्ज चुकाना पड़ा
केस 2
बाड़मेर ग्यारहवी में पढ़ने वाले शिव क्षेत्र के एक विद्यार्थी से जब 11 लाख का हिसाब लेकर मांगने वाले घर पहुंचे तो घरवालों की पांवों तले जमीन खिसक गई। अब मांगने वाले दबंग थे तो उनको यह सवाल किया कि इतने पैसे क्यों दिए? उन्होंने कहा हमें क्या मालूम, लिए ही क्यों? मां-बाप ने रुपया चुकाकर पिंड छुड़वाया।
केस 3
बाड़मेर शहर चाय की होटल चलाने वाले एक व्यक्ति का बेटा गेम खेलने के लिए पहले पचास हजार का कर्जदार हुआ। दस का सैकड़ा ब्याज का चक्कर शुरू हुआ तो अब रुपए उतारने के लिए भी उसको बार-बार यही लगा कि कहीं ये गेम लाखों देगा और झट से उतार दूंगा। रोज बढ़ते कर्ज से यह आंकड़ा 14 लाख पहुंच तो मां-बाप के सामने पोल खुली। अब गरीब मां-बाप पाई-पाई जोड़ा पैसा तो चुका ही रहे है, कर्जदारों के हाथ पांव भी जोड़ रहे हैं।
मोबाइल की लत से रखें दूर
मां-बाप बच्चों को मोबाइल की लत से अब दूर करना शुरू कर दें। मोबाइल देखने का नाबालिगों के लिए जरूरी हों तो एक समय निश्चिन किया जाए। इसमें संभव हों तो परिवार के सदस्य साथ में ही रहे। अकेले में बैठकर बच्चा मोबाइल देख रहा है तो ध्यान रखें और उससे सवाल करें कि क्या देख रहा है? मोबाइल हिस्ट्री डिलिट कर रहा है तो समझ लें कि कुछ न कुछ छुपा रहा है। परिवार को समय दें और बच्चों को इस खतरे की जानकारी देते हुए रोज बात करें जिससे उन्हें लगे कि यह गलत कार्य है। (गोविंद कृष्ण व्यास मनोवैज्ञानिक)