पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,पुनरपि जननी जठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे,कृपयाऽपारे पाहि मुरारे ॥२१॥ – आदि गुरू शंकराचार्य
भावार्थ: बार बार जन्म लेना और बार-बार मृत्यु को प्राप्त होना, बार-बार माता के गर्भ में निवास करना यही चक्र चलता रहता है। संसार के इस चक्र से छुटकारा पाना और उससे मुक्त होना अत्यंत कठिन है। हे मुरारी आप ही कृपा करें और मुझे भवसागर से पार कराइए।