विश्व युद्ध.. हाल ही में जर्मन सरकार द्वारा गोपनीय दस्तावेज़ों के लीक होने से एक भयावह योजना का खुलासा हुआ है. यह दस्तावेज़ इस बात की पुष्टि करते हैं कि जर्मनी ने संभावित तीसरे विश्व युद्ध की स्थिति में यूरोपीय देशों के रक्षा गठबंधन, NATO, के तहत 8 लाख सैनिकों की तैनाती की योजना बनाई है. इनमें अमेरिकी सैनिक भी शामिल होंगे, और यह योजना मुख्य रूप से रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले को बढ़ाने और परमाणु धमकियों के बीच तैयार की गई है.
जर्मन अखबार Frankfurter Allgemeine Zeitung के अनुसार, यह रिपोर्ट “ऑपरेशन डॉयचलेण्ड” नामक एक 1,000 पन्नों की योजना का हिस्सा है, जो युद्ध की स्थिति में जर्मनी के नागरिकों और सैन्य ठिकानों की सुरक्षा के उपायों को निर्धारित करती है. दस्तावेज़ों में यह स्पष्ट किया गया है कि जर्मनी ने अपनी रणनीतिक सैन्य तैयारियों को बढ़ाते हुए विभिन्न सार्वजनिक भवनों और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए उपायों का प्रस्ताव किया है. इसके अतिरिक्त, नागरिकों को युद्ध की स्थिति में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए तैयार रहने की सलाह दी गई है, जैसे कि डीजल जनरेटर और पवन टर्बाइन की स्थापना.
ऑपरेशन डॉयचलेण्ड और जर्मनी की सैन्य तैयारियां
ऑपरेशन डॉयचलेण्ड की योजना में यह भी प्रस्तावित किया गया है कि जर्मनी के भीतर सैन्य वाहनों को सुरक्षित रूप से और तेज़ी से तैनात किया जा सके. इसमें अनुमानित 200,000 सैन्य वाहनों को जर्मनी की सीमा के भीतर से गुज़रते हुए यूक्रेन तक भेजने की योजना है, ताकि युद्ध के समय ज़रूरत पड़ने पर NATO की मदद की जा सके.
इस योजना में सिर्फ सैन्य तैयारियाँ ही नहीं, बल्कि नागरिकों के लिए भी निर्देश दिए गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी सरकार ने अपनी जनता को आपातकालीन स्थिति के लिए तैयार रहने के लिए कहा है. नागरिकों को सुझाव दिया गया है कि वे स्वच्छता और आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं, जैसे कि इमरजेंसी लाइटिंग, स्वच्छ पानी का भंडारण, और ऊर्जा उत्पादन के वैकल्पिक उपायों का इंतज़ाम. इसके अलावा, स्वीडन और नॉर्वे जैसे अन्य यूरोपीय देशों ने भी अपनी जनता को इस प्रकार के दिशा-निर्देश जारी किए हैं.
रूस का परमाणु धमकी और जर्मन प्रतिक्रिया
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी परमाणु नीति में हाल ही में एक बड़ा बदलाव किया है. उन्होंने कहा कि अब रूस परमाणु हथियारों का उपयोग केवल अन्य परमाणु शक्तियों के खिलाफ नहीं, बल्कि गैर-परमाणु, “सामान्य” हथियारों के खिलाफ भी कर सकता है. पुतिन का यह बयान एक गंभीर खतरे का संकेत है, जो रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है. पुतिन की इस धमकी के बाद, जर्मन विदेश मंत्री एनेलिना बेरबॉक ने कहा कि उनका देश रूस की इस नई नीति से डरने वाला नहीं है और वे अपनी सुरक्षा बढ़ाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे.
बेरबॉक ने आगे कहा, “पुतिन ने हमारा डर खेलने की कोशिश की है, लेकिन हम इस डर से मुक्त होकर अपनी सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करेंगे.” उन्होंने यह भी कहा कि 2014 में क्रीमिया के अतिक्रमण के बाद जर्मनी को यह सीखना चाहिए था कि रूस की धमकियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता.
अन्य यूरोपीय देशों का भी समर्थन
जर्मनी की सैन्य तैयारियों का असर सिर्फ जर्मनी तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य यूरोपीय देशों ने भी इस खतरे को गंभीरता से लिया है. स्वीडन और नॉर्वे जैसे देशों ने अपनी जनता के लिए पेम्फलेट्स और ब्रोशर जारी किए हैं, जिनमें बताया गया है कि युद्ध की स्थिति में नागरिकों को क्या कदम उठाने चाहिए. यह कदम यूरोप में बढ़ते युद्ध के खतरे और रूस की परमाणु नीति के बदलाव के संदर्भ में उठाए गए हैं.
यूक्रेन युद्ध और अंतरराष्ट्रीय दबाव
रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है. हाल ही में, अमेरिकी सरकार ने यूक्रेन को लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों की आपूर्ति करने का निर्णय लिया है, जिससे युद्ध का स्वरूप और भी गहरा हो सकता है. इस निर्णय के बाद रूस ने उत्तर कोरिया से सहायता प्राप्त करने का अनुरोध किया है, जिसमें कम से कम 10,000 सैनिकों की मदद की बात सामने आई है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेन्स्की ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से हाल ही में बैठक की थी और कहा कि उन्हें विश्वास है कि ट्रंप की जीत से युद्ध जल्दी समाप्त हो सकता है. ज़ेलेन्स्की का मानना है कि ट्रंप की “शक्ति के माध्यम से शांति” की नीति के कारण रूस को संघर्ष समाप्त करने के लिए दबाव महसूस होगा.
युद्ध की आशंका और यूरोप का भविष्य
यूरोपीय देशों की ये तैयारियाँ इस बात का संकेत हैं कि वे युद्ध के खतरे को गंभीरता से ले रहे हैं. रूस की परमाणु नीति में बदलाव, यूक्रेन में अमेरिकी मदद और जर्मनी की सैन्य रणनीतियाँ सभी इस बात की पुष्टि करती हैं कि यूरोप में एक बड़े युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कूटनीति और बातचीत के माध्यम से इस संकट का हल निकाला जा सकता है, लेकिन इसके लिए वैश्विक नेतृत्व को एकजुट होकर ठोस कदम उठाने होंगे.
इस समय यह कहना मुश्किल है कि युद्ध का अंत कैसे होगा, लेकिन यूरोपीय देशों द्वारा उठाए गए कदम यह दर्शाते हैं कि वे इस संकट के लिए पूरी तरह से तैयार हैं और भविष्य में किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए उनके पास एक मजबूत योजना है.