नई दिल्ली:-जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में जमकर तनाव पैदा हो गया है. भारत ने पाकिस्तान पर कूटनीतिक प्रहार करते हुए सिंधु जल संधि को तोड़ दिया है. इसके बाद पाकिस्तान के बीच तनाव और बढ़ गया, जिसके बाद पाकिस्तान ने इसे एक्ट ऑफ वॉर यानी ऐलान-ए -जंग बताया. लेकिन भारत को इन सबसे कहां फर्क पड़ने वाला. भारत ने एक लेटर पाकिस्तान को लिखा और सारी जानकारी, वजह बता दी. समझें पूरा मामला.
भारत ने लिखा लेटर
भारत ने गुरुवार को औपचारिक रूप से पाकिस्तान को पत्र लिखकर सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित रखने के अपने निर्णय की जानकारी दी और कहा कि इस्लामाबाद ने संधि की शर्तों का उल्लंघन किया है. जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देबाश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव को पत्र लिखा है. जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देबाश्री मुखर्जी द्वारा पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैयद अली मुर्तजा को लिखे पत्र में कहा गया है, “भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि सिंधु जल संधि 1960 को तत्काल प्रभाव से स्थगित रखा जाएगा.”
आतंकवाद बड़ा आधार
पत्र में लिखा है, “किसी संधि का सद्भावपूर्वक सम्मान करना संधि का मूलभूत आधार है. लेकिन इसके बजाय हमने देखा है कि पाकिस्तान द्वारा भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर को निशाना बनाकर सीमा पार से आतंकवाद जारी है.”पत्र में आगे कहा गया है कि इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न सुरक्षा अनिश्चितताओं ने संधि के तहत भारत के अधिकारों के पूर्ण उपयोग को सीधे तौर पर बाधित किया है. पत्र में कहा गया है, इसके अलावा पाकिस्तान ने संधि के तहत कोई खास बातचीत में समर्थन नहीं किया. जबकि इसके लिए भारत ने कई बार अनुरोध किया था. इस प्रकार संधि का उल्लंघन किया है.”
लेटर में क्या लिखा है:-
भारत सरकार की तरफ से पाकिस्तान सरकार को दिए गय नोटिस में कहा गया है कि जिसमें संधि के अनुच्छेद XII (3) के तहत सिंधु जल संधि 1960 में संशोधन की मांग की गई है. इस लेटर में उन मुद्दों का हवाला दिया गया है जिसके चलते समझौते पर दोबारा विचार करने की आवश्यकता है. संधि के बाद से अब तक जनसंख्या में काफी बदलाव हुआ है. ऐसे में कुछ बदलाव करने जरूरी हो जाते हैं.इसलिए भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि सिंधु जल संधि 1960 को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाता है.
सिंधु जल रोका तो एक्ट ऑफ वॉर होगा
इस्लामाबाद में नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (NCS) की 24 अप्रैल को बैठक हुई. जिसके बाद पाकिस्तान ने कहा कि अगर भारत सिंधु जल समझौते को रोकता है तो इसे एक्ट ऑफ वॉर यानी जंग की तरह माना जाएगा.
65 साल बाद सिंधु जल संधि को तोड़ा
दशकों पुरानी संधि को निलंबित करने का निर्णय जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद लिया गया है, जिसमें मंगलवार को 26 लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकतर पर्यटक थे. भारत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को निशाना बनाकर पाकिस्तान द्वारा जारी सीमा पार आतंकवाद सिंधु जल संधि के तहत भारत के अधिकारों में बाधा डालता है. 1960 में हस्ताक्षरित इस संधि के तहत पूर्वी नदियां सतलुज, ब्यास और रावी भारत को तथा पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम और चिनाब पाकिस्तान को आवंटित की गयी.
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने वीजा किया रद्द
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने कई कड़े नीतिगत कदमों की घोषणा की है. सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने सिंधु जल संधि को फिलहाल रोकने और पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा सेवाओं को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का निर्णय लिया है. साथ ही, नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास में कर्मचारियों की संख्या 55 से घटाकर 30 कर दी गई है. विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को बताया कि भारत द्वारा पाकिस्तानी नागरिकों को जारी किए गए सभी मौजूदा वैध वीजा 27 अप्रैल 2025 से रद्द कर दिए जाएंगे. पाकिस्तानी नागरिकों को जारी किए गए मेडिकल वीजा केवल 29 अप्रैल 2025 तक वैध होंगे. वर्तमान में देश में मौजूद सभी पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा की संशोधित अवधि समाप्त होने से पहले भारत छोड़ देना होगा. वहीं, भारतीय नागरिकों को पाकिस्तान की यात्रा से बचने की सख्त सलाह दी गई है. साथ ही, वर्तमान में पाकिस्तान में मौजूद भारतीय नागरिकों को भी जल्द से जल्द स्वदेश लौटने की सलाह दी गई है.
भारत ने दुनिया के 20 देशों के राजनयिकों को पहलगाम हमले के बारे में बताया
वहीं भारत ने गुरुवार को करीब 20 देशों के शीर्ष राजनयिकों को पहलगाम हमले और भारत के रुख के बारे में जानकारी दी. इन देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, यूरोपीय संघ, इटली, कतर, जापान, चीन, जर्मनी, फ्रांस, इंडोनेशिया, मलेशिया, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात और नॉर्वे शामिल हैं. इनके राजनयिकों को साउथ ब्लॉक स्थित विदेश मंत्रालय में बुलाया गया था.
पहलगाम हमले में 26 पर्यटकों की मौत
आपको बता दें, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. इस हमले में 26 पर्यटकों की जान चली गई, जिनमें 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक शामिल थे, जबकि कई लोग घायल हुए है. लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ नाम के आतंकी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. ऐसे में इस घटना के बाद भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक बार फिर तनाव का दौर शुरू हो गया है.
पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में पाकिस्तान सिंधू जल समझौते से पीछे हटा तो पाकिस्तान ने इसे अपने देश के खिलाफ युद्ध करार दिया. जवाबी एक्शन में पीएम शहबाज शरीफ ने भरत के साथ साल 1971 के युद्ध के बाद हुए शिमला समझौते सहित तमाम द्विपक्षीय समझौतों को सस्पेंड कर दिया है.
अब मन में यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर यह शिमला समझौता क्या है और इस्से पीछे हटने से पाकिस्तान को क्या फायदा होगा. शिमला समझौते से पीछे हटकर पाकिस्तान ने अपने ही पैर पर कुलहाड़ी मारने से ज्यादा कुछ नहीं किया है. चलिए हम आपको इसके बारे में विस्तार में बताते हैं.
शिमला समझौता क्या है?
शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच जुलाई 1972 में बांग्लादेश को अलग देश बनाने के तुरंत बाद भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने इसपर साइन किए थे. इस समझौते के तहत कहा गया कि दोनों देश जम्मू-कश्मीर विवाद को द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से बिना किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के हल करेंगे. इस समझौते में नियंत्रण रेखा यानी LoC को सम्मान देने और इसे बदलने के लिए बल प्रयोग से बचने पर सहमति बनी थी. दोनों देश एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करेंगे और आपसी हितों के लिए सहयोग बढ़ाएंगे. समझौते ने 1971 युद्ध के दौरान पकड़े गए युद्धबंदियों की रिहाई और युद्ध से उत्पन्न अन्य मुद्दों को हल करने की रूपरेखा भी प्रदान की.
समझौता रद्द कर शहबाज ने PM मोदी को दिया बड़ा मौका
ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान ने इस समझौते से पीछे हटकर अपने ही पैर पर कुलहाड़ी मार ली है. ऐसा इसलिए क्योंकि समझौते के तहत यह भी कहा गया है कि दोनों देश LoC को सम्मान करेंगे और इसे बदलने के लिए बल प्रयोग नहीं करेंगे. पाकिस्तान ने अब खुद इस समझौते को सस्पेंड कर दिया है. ऐसे में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी POK को वापस पाने के लिए भारत अब पूरी तरह से स्वतंत्र है. पीएम मोदी पहले भी कई बार कह चुके हैं कि पूरा कश्मीर भारत का है. पाकिस्तान ने इसपर अवैध कब्जा किया है. भारत POK को भारत में वापस जोड़ने के लिए प्रतिबंद्ध है. ऐसे में अब भारत चाहे तो बिना किसी कानूनी अड़चन के बल प्रयोग कर पूरे कश्मीर को एक करने के अपने प्लान पर खुलकर काम कर सकता है.
भारत को क्या मिलेगा?
शिमला समझौता रद्द होने से भारत को कई रणनीतिक लाभ हो सकते हैं. पहला LoC की कानूनी पाबंदियां खत्म होने से भारत नई रणनीतियां बना सकता है. दूसरा आतंकी हमलों का जवाब देने के लिए भारत को सैन्य विकल्प खुले मिलेंगे. जो अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन नहीं कहलाएगा. तीसरा भारत की मजबूत वैश्विक स्थिति के चलते उसे अमेरिका, यूरोप, और इजरायल जैसे देशों का समर्थन मिल सकता है.
पाकिस्तान की चुनौतियां
पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द कर कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश कर सकता है. लेकिन ‘दुनिया पाकिस्तान के आतंकवाद समर्थन के नैरेटिव से थक चुकी है.’ विश्लेषकों का मानना है. उसकी खराब वैश्विक छवि और कमजोर अर्थव्यवस्था इसे और मुश्किल में डाल सकती है. चीन के सहयोग की उम्मीद भले हो लेकिन भारत की रणनीतिक साझेदारियां इसे कमजोर कर सकती हैं.
LoC पर बढ़ेगा तनाव?
शिमला समझौता रद्द होने से LoC की स्थिरता खतरे में पड़ सकती है. दोनों देश इसे स्थायी सीमा नहीं मानेंगे. जिससे घुसपैठ और सैन्य झड़पों का खतरा बढ़ेगा. यह भारत-पाक रिश्तों को और अस्थिर कर सकता है. शिमला समझौता रद्द होने से भारत को रणनीतिक लाभ मिल सकता है जबकि पाकिस्तान की कूटनीतिक और आर्थिक मुश्किलें बढ़ेंगी. दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ना तय है लेकिन वैश्विक समीकरण भारत के पक्ष में हैं.