• संजा माता के स्वरूप देखने को मिलता हैतो सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में ही।
सुसनेर : भारत में भारतीय संस्कृति के स्वरूप लुप्त होने की कगार पर परंतु आज भी कुछ ग्रामीण स्तर पर या परंपरा स्वरूप चली आ रही है सुसनेर नगर के आसपास ग्रामीण क्षेत्र में संजा देखने को मिलीं जिसे आज भी ग्रामीण स्तर पर समझाया जा रहा है परंतु यह परंपरा शहरी इलाकों में देखने को नहीं मिलती।
भारत में भारतीय संस्कृति के अनुरूप मनाए जाने वाला लौकिक पर्व पूर्णीमा से प्रारंभ होकर अमावस्या तक 16 दिन श्राद्ध पक्ष में घर घर मनाए जाने वाला पर्व आज डीजिटल इंडिया की तरह प्रिंटेड हो गया लेकिन ग्रामीण इलाकों में अलौकिक पर्व संजा आज भी अपनी भारतीय संस्कृति को जीवित रखते हुए गोबर से नन्ने नन्ने कोमल हाथों से बालिकाओं द्वारा संजा बनाकर नित्य पुजने का क्रम जारी है। एवं नित्य रात्रि को नई नई आकृति में विलुप्त हहोती कलाओं परंपरा को जीवित रख संजा बना कर गीत संजा तू थारे घर जा थो थारी बाई मारेगा कुटेगा डेयरी में ड़चौकेगा ऐसी मालवी भाषाओं में गायी जाती है व बच्चों द्वारा नन्हे नन्हे हाथों से गोबर से श्राद्ध पक्ष के प्रथम दिन से दीवारों पर लीपापोती कर नाना प्रकार की कलाकृतियां बनाकर झुंड के झुंड में संजा माता का पूजन कर प्रसाद वितरण करने का पर्व 10 सितंबर शनिवार से प्रारंभ हो गया यह कम क्रम 16 श्राद्ध के दिनों पर अलग-अलग प्रकार से गोबर से बनाकर आस्था व श्रृद्धा के साथ मना कर माता का पूजन कुंवारी कन्याओं द्वारा किया जा रहा है। जो यह क्रम सर्व पितृ अमावस्या तक मनाया जाएगा।