बरेली से यूसुफ़ खान की रिपोर्ट
क्यों मनाई जाती है ईद-मिलाद-उन-नबी, जानें पैगंबर मुहम्मद साहब की पैदाईश से जुड़ा इतिहास
क्या आपको पता है ईद आने वाली है? नहीं बकरा ईद और मीठी ईद के अलावा भी एक ईद होती है और यह बहुत खास है। ईद-मिलाद-उन-नबी की खासियत के बारे में आज जानते हैं।
इस्लामिक कैलेंडर में एक ऐसा दिन भी आता है जिसे पैगंबर मुहम्मद साहब की पैदाईश के तौर पर मनाया जाता है। यही दिन है ईद-मिलाद-उन-नबी। इसी दिन पैगंबर साहब को अल्लाह ने ज़मीन पर उतारा था। यह इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल में मनाया जाने वाला त्योहार है और इसे भी ईद की तरह ही पाक माना जाता है।
अधिकतर लोग बकरा ईद और मीठी ईद के बारे में जानते हैं, लेकिन आपको बता दें कि इस्लामिक धर्म मे यह भी बहुत ख़ास दिन माना जाता है।
2024 मे ईद-मिलाद-उन-नबी कब है
इस साल यह 16 सितंबर को मनाई जाएगी। इसे पूरी दुनिया के सुन्नी मुसलमान मनाते हैं। इस्लामिक कैलेंडर की डेट हर साल बदल जाती है इसलिए हर साल इस त्योहार की तारीख भी बदल जाती है।
सुन्नी मुसलमानों के लिए यह दिन 12वी रबी-उल-अव्वल को मनाया जाता है!
ईद-मिलाद-उन-नबी क्यों मनाई जाती है
ईद-मिलाद-उन-नबी को सबसे पहले 12वें रबी-उल-अव्वल में मनाया गया था। यह 632ई. में पैगंबर मुहम्मद के विसाल के बाद मनाया जाता था, लेकिन 13वीं सदी के बाद इसे विसाल की जगह पैगंबर साहब के यौमे विलादत् के रूप में मनाया जाने लगा।
आप यूं समझ लीजिए कि इस दिन को पैगंबर साहब के खास दिन के तौर पर माना जाने लगा और इस दिन उनकी सिखाई हुई बातों पर अमल किया जाता है। इस्लाम धर्म के लिए यह पाक दिन होता है जिसमें पैगंबर साहब की बातों से प्रेरणा ली जाती है और खुशियां मनाई जाती हैं।
यह भी बता दें कि भले ही इसे इस्लामिक त्योहार माना जाता है, लेकिन हर मुस्लिम समुदाय इसे नहीं मानता है। कुछ देवबंदी, वहाबी, एहले हदीस यह भी समझते हैं कि पैगंबर मुहम्मद साहब का जन्मदिन इस्लामिक नियमों के हिसाब से नहीं मनाया जाना चाहिए। इसे बिद्दत माना जाता है। बिद्दत का मतलब कुछ नया करने से है जिसे अल्लाह के नियमों के हिसाब से शामिल नहीं किया गया और कुरान के हिसाब से यह गलत है।
देवबंदी, एहले हदीस और वहाबी नियमों को मानने वाले लोग यही मानते हैं कि मिल वालिद या ईद-ए-मिलाद को पैगंबर साहब के समय नहीं मनाया जाता था और इसलिए यह गलत है।
ईद-मिलाद-उन-नबी का इतिहास
फातिमी खिलाफत 909 से 1171 ईस्वी में शिया इस्लाम विचारधारा को मानने वाला मिस्र का साम्राज्य था। फातिमी खिलाफत ने ही इसे 10वीं सदी में पहली बार त्योहार का दिन माना था जो बाद में 13वीं सदी तक पूरी दुनिया में फैल गया था।
इस दिन जुलुस निकले जाते है, लोग अपने घरों को सजाते है, पैगंबर साहब के द्वारा बताए गए रास्ते पर कैसे चलना है ये बताया जाता है, नमाज़े पढ़ी जाती है। शुरुआती दौर में इसे सिर्फ फातिमी खिलाफत द्वारा ही मनाया गया, लेकिन अब इस त्योहार को दुनिया के हर देश मे बहुत ही अदब और एहतराम के साथ मनाया जाता है और इसमें जुलूस निकाला जाता है और कुछ लोग इस दिन ज़ाकत देने को अच्छा मानते हैं।जगह-जगह सबीले लगाई जाती है जहां लोगों को खाना खिलाना अच्छा माना जाता है।
ईद मिलाद उन नबी का महत्व
जहां तक इसके महत्व की बात है, तो सुन्नी मुसलमान ईद-मिलाद-उन-नबी को पैगंबर मुहम्मद साहब की जिंदगी और उनकी विरासत का सम्मान करने का दिन मानते है। पैगंबर मुहम्मद साहब अल्लाह के आखिरी रसूल थे और कुरान में उन्होंने कई शिक्षाए दी है। इस दिन उन्हीं को दोहराया जाता है। इसीलिए सुन्नी मुसलमान इस दिन को बहुत महत्वपूर्ण दिन मानते है!