मोहम्मद गुलजार एकता चौक नर्मदा पुरम मध्य प्रदेश
मृतक व्यक्ति का कानूनी प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता, खासकर तब जब मृतक की पत्नी, बेटा और बेटी सहित प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी जीवित हों।
जस्टिस मनोज कुमार गर्ग की पीठ एक किरायेदार बेदखली मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्रतिवादी द्वारा ट्रायल ऑर्डर के एक आदेश के खिलाफ एक पुनरीक्षण याचिका दायर की गई थी। ट्रायल कोर्ट ने मृतक वादी के कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा प्रतिस्थापन के लिए आवेदन को स्वीकार कर लिया था और प्रतिवादी द्वारा दायर मामले को समाप्त करने के लिए आवेदन को खारिज कर दिया था।
प्रतिवादी-याचिकाकर्ता का मामला यह था कि कानूनी प्रतिनिधियों के प्रतिस्थापन के लिए आवेदन केवल मृतक की पत्नी, बेटे और बेटी द्वारा दायर किया गया था, जबकि मृतक की चार बहनों को भी उसके कानूनी प्रतिनिधि होने के कारण मामले में पक्षकार/प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए था। यह भी तर्क दिया गया कि वाद संपत्ति एक पैतृक संपत्ति होने के नाते, मृतक की बहनें भी सह-साझेदार होने के नाते कानूनी प्रतिनिधि थीं।
न्यायालय ने विचारणीय न्यायालय के निष्कर्षों को ध्यान में रखा तथा पुष्टि की कि बहनों को कानून के अनुसार मृतक का कानूनी प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता तथा केवल पत्नी, पुत्र और पुत्री को ही वह अधिकार मिल सकता है, जिनका मामले में अभियोग रिकॉर्ड पर लिया जा सकता है।
न्यायालय ने विचारणीय न्यायालय की राय से सहमति जताते हुए कहा कि यह पूरी तरह कानून के अनुरूप है। न्यायालय ने सीपीसी की धारा 2(11) के तहत “कानूनी प्रतिनिधियों” की परिभाषा का उल्लेख किया, जो यह निर्धारित करती है कि जो व्यक्ति कानून के अनुसार मृतक व्यक्ति की संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है, वह कानूनी प्रतिनिधि की श्रेणी में आता है।
इस प्रावधान की पृष्ठभूमि में न्यायालय ने माना कि,
“वर्तमान मामले में, अनिवार्य रूप से वादी की संपत्ति का प्रतिनिधित्व उसके प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों द्वारा किया जाएगा, जो निर्विवाद रूप से उसकी पत्नी, पुत्र और पुत्री होंगे। याचिकाकर्ता के विद्वान वकील कानून के किसी भी प्रावधान की ओर संकेत नहीं कर सके, जो बहनों को कानूनी प्रतिनिधि होने का प्रावधान करता हो, भले ही मृतक वादी के प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी जीवित हों।”
इसके अलावा, बहनों के पैतृक संपत्ति में सह-भागी होने और इसलिए कानूनी प्रतिनिधि होने के तर्क पर, न्यायालय ने कहा कि किरायेदार के पास इस पर बहस करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि इसे केवल पीड़ित कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा ही उठाया जा सकता है।
तदनुसार, पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: श्रीमती खेरुनिसा बनाम जय शिव सिंह एवं अन्य।
साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (राजस्थान) 213
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Rajasthan High Court legal representative
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