सत्यार्थ न्यूज़ ब्यूरो भीलवाड़ा
अब्दुल सलाम रंगरेज
जन-जन की आस्था का केंद्र तिलस्वा महादेव का इतिहास-
सावन के दूसरे सोमवार को उमड़ी भीड़ किया जलाभिषेक-
भीलवाड़ा
भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया क्षेत्र में स्थित है तिलस्वा महादेव। यह है नगर ऐरू नदी के किनारे पर बसा हुआ है।
सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए भक्त मंदिरों में विशेष-पूजा अर्चना और दर्शनो के लिए पहुंचते हैं।हर शिव मंदिर में बोल बम के साथ ही हर-हर महादेव के जयकारे की गूंज सुनाई देती है।इस बीच भीलवाड़ा का तिलस्वां महादेव मंदिर भी काफी अनूठा है। तिल के समान स्वयंभू शिवलिंग यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं।
सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना का दौर जारी है। हर छोटे-बड़े शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की आस्था का अनूठा नजारा दिखाई देता है। इसी कड़ी में भीलवाड़ा के तिलस्वा महादेव मंदिर में भी हर दिन भक्तों का तांता लगा हुआ है।
आज सोमवार को भीलवाड़ा जिले के पूर्व जिला प्रमुख कन्हैयालाल धाकड़ ने उनके परिवार के साथ मंदिर में दर्शन किए और जलाभिषेक किया। और दूर-दूर से आने वाले भक्तजनों से संवाद किया।
सावन के महीने में विशेष तौर से 11 पंडित लगाए गए हैं ।
सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए भक्त मंदिरों में विशेष-पूजा अर्चना की जा रही हैं। लगातार हवन, पूजा, रामायण पाठ और मंत्र उच्चारण विशेष तौर से बुलाए गए पंडितों द्वारा किए जा रहे हैं।
यहां मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो तिल के समान है। भक्त भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर परिवार में सुख शांति समृद्धि की कामना करते हैं।जिले के ऊपर माल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध बिजौलियां उपखंड में अरावली पर्वत श्रृंखला के मध्य ऐरु नदी किनारे स्थित जन-जन की आस्था का केंद्र तिलस्वां महादेव मंदिर काफी अनूठा है। मान्यता है कि भगवान शंकर की पूजा करने व सामने स्थित कुंड में नहाने व उसकी मिट्टी लगाने से लाइलाज बीमारियों के साथ ही असाध्य चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है।
तिल के समान शिवलिंग होने से यहां का धार्मिक महत्व काफी है।
मंदिर के ठीक सामने विशाल गोलाकार कुण्ड बना हुआ है।मध्य में गंगा माता का मन्दिर हैं। यहां दर्शनार्थियों के स्नान के लिए चारों ओर घाट बने हुए हैं। मुख्य मंदिर के दोनों ओर गणेश व अन्नपूर्णा के मन्दिर हैं । मन्दिर के प्रवेश द्वार के समीप ही सभा मण्डप है।यहां रहने वाले रोगी सुबह-शाम भजन-कीर्तन करते हैं। यहां बने तीन विशाल सिंहद्वार भी आकर्षण के केंद्र हैं।
तिलश्वा नाम क्यों पड़ा-
तिल नाम के पीछे भी एक जनश्रुति है। माना जाता है कि मेनाल के राजा हवन को एक बार कुष्ठ रोग हो गया तो एक सिद्ध योगी ने उसे बिजौलियां के मन्दाकिनी महादेव के कुण्ड में स्नान करने का आदेश दिया ।जिससे सम्पूर्ण शरीर का कोढ़ तो मिट गया। लेकिन ‘तिल’ मात्र कोढ़ शेष रह गया। इस पर योगी ने राजा को यहां से थोड़ी दूर दक्षिण दिशा में स्थित जल कुण्ड में स्नान करने और वहां स्थापित शिवलिंग की पूजा करने का आदेश दिया।राजा के ऐसा करने पर ‘तिल’ मात्र कुष्ठ भी ठीक हो गया ।तभी से ‘तिलस्वां’ नाम का विख्यात हुआ और राजा ने यहां विशाल शिव मन्दिर का निर्माण करवाया।मान्यता है कि यहां के पवित्र कुण्ड में स्नान करने और यहां की मिट्टी जिसे स्थानीय भाषा में ‘केसर गार’ कहा जाता है का लेपन करने से असाध्य और दुष्कर रोग भी दूर हो जाते हैं।
यहां पर हर माह के अमावस्या को काफी दर्शनार्थी आते हैं और मेला भी भरता है।