न्यूज रिपोर्टर मीडिया प्रभारी मनोज मूंधड़ा बीकानेर श्रीडूंगरगढ़
व्यक्ति के प्राणों को सुरक्षित करता है प्राणायाम जानिए
योग एक्सपर्ट ओम प्रकाश कालवा के साथ।
श्रीडूंगरगढ़। कस्बे की ओम योग सेवा संस्था के निदेशक योग एक्सपर्ट ओम प्रकाश कालवा ने सत्यार्थ न्यूज चैनल पर 55 वां अंक प्रकाशित करते हुए बताया। व्यक्ति के प्राणों को सुरक्षित करता है प्राणायाम के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा।प्राणायाम का योग में बहुत महत्व है। आदि शंकराचार्य श्वेताश्वतर उपनिषद पर अपने भाष्य में कहते हैं, “प्राणायाम के द्वारा जिस मन का मैल धुल गया है वही मन ब्रह्म में स्थिर होता है। इसलिए शास्त्रों में प्राणायाम के विषय में उल्लेख है।” स्वामी विवेकानंद इस विषय में अपना मत व्यक्त करते हैं,”इस प्राणायाम में सिद्ध होने पर हमारे लिए मानो अनंत शक्ति का द्वार खुल जाता है। मान लो, किसी व्यक्ति की समझ में यह प्राण का विषय पूरी तरह आ गया और वह उस पर विजय प्राप्त करने में भी कृतकार्य हो गया तो फिर संसार में ऐसी कौन-सी शक्ति है,जो उसके अधिकार में न आए? उसकी आज्ञा से चन्द्र-सूर्य अपनी जगह से हिलने लगते हैं, क्षुद्रतम परमाणु से वृहत्तम सूर्य तक सभी उसके वशीभूत हो जाते हैं, क्योंकि उसने प्राण को जीत लिया है। प्रकृति को वशीभूत करने की शक्ति प्राप्त करना ही प्राणायाम की साधना का लक्ष्य है।”
प्राणायाम योग के आठ अंगों में से एक है।
अष्टांग योग में आठ प्रक्रियाएँ होती हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, तथा समाधि । प्राणायाम = प्राण + आयाम । इसका शाब्दिक अर्थ है – प्राण या श्वसन को लम्बा करना या फिर जीवनी शक्ति को लम्बा करना । प्राणायाम का अर्थ कुछ हद तक श्वास को नियंत्रित करना हो सकता है, परन्तु स्वास को कम करना नहीं होता है। प्राण या श्वास का आयाम या विस्तार ही प्राणायाम कहलाता है। प्राणायाम प्राण-शक्ति का प्रवाह कर व्यक्ति को जीवन शक्ति प्रदान करता है।
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है-
चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत्यो गी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायुं निरोधयेत्॥२॥(अर्थात प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल हो जाता है और योगी स्थाणु हो जाता है। अतः योगी को श्वांसों का नियंत्रण करना चाहिये।
यह भी कहा गया है-
-यावद्वायुः स्थितो देहे तावज्जीवनमुच्यते।मरणं तस्य निष्क्रान्तिः ततो वायुं निरोधयेत् ॥
(जब तक शरीर में वायु है तब तक जीवन है। वायु का निष्क्रमण (निकलना) ही मरण है। अतः वायु का निरोध करना चाहिये।)
प्राणायाम दो शब्दों के योग से बना है-
(प्राण+आयाम) पहला शब्द “प्राण” है दूसरा “आयाम”। प्राण का अर्थ जो हमें शक्ति देता है या बल देता है।
प्राणायाम के बारे में बहुत से ऋषियों ने अपने-अपने ढंग से कहा है लेकिन पतञ्जलि का प्राणायाम सूत्र महत्वपूर्ण माना जाता है जो इस प्रकार है-तस्मिन सतिश्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः॥ इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार होगा- श्वास प्रश्वास के गति को अलग करना प्राणायाम है।
घेरन्ड संहिता के अनुसार –
सहित: सूर्यभेदश्च उज्जायी शीतली तथा ।भस्त्रिका भरमारी मूर्च्छा केवली चाष्टकुम्भका:।।घेरन्ड संहिता के अनुसार प्राणायाम के आठ भेद बताए गए है सहित सूर्यभेदी, उज्जायी, शीतली, भस्त्रिका भ्रामरी,मूर्च्छा और केवली
सावधानियाँ
-सबसे पहले तीन बातों की आवश्यकता है,विश्वास,सत्यभावना,दृढ़ता। करने से पहले हमारा शरीर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए।सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए। प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा। प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें। हर साँस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए। जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये। ‘यदि आँप्रेशन हुआ हो तो, छः महीने बाद ही प्राणायाम का धीरे-धीरे अभ्यास करें।हर साँस के आने जाने के साथ मन ही मन में ओम् का जाप करें।
निवेदन
-ओम योग सेवा संस्था श्री डूंगरगढ़ द्वारा जनहित में जारी।