न्यूज रिपोर्टर मिडिया प्रभारी मनोज मूंधड़ा बीकानेर श्रीडूंगरगढ़
पांच तत्वों में छिपा है हर रोग का ईलाज प्रकृति के पास है जानिए योग एक्सपर्ट ओम प्रकाश कालवा के साथ।
श्रीडूंगरगढ़ कस्बे की ओम योग सेवा संस्था के निदेशक योग एक्सपर्ट ओम प्रकाश कालवा ने सत्यार्थ न्यूज चैनल पर 51 वां अंक प्रकाशित करते हुए प्राकृतिक चिकित्सा में पंच तत्वों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया।
प्राकृतिक चिकित्सा (Naturopathy)
प्राकृतिक चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति को अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य की देखभाल करने, किसी भी बीमारी के लक्षणों को कम करने, शरीर की उपचार क्षमता को सहयोग देने तथा शरीर को संतुलित करने के लिए शिक्षित करना है, ताकि भविष्य में बीमारी होने की संभावना कम हो।
हमारा शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है। (Five elements)
1. अग्रि (Fire)- अंगुष्ठ (Thumb)
2. वायु (Air)-तर्जनी (Index finger)
3. आकाश (Sky) – मध्यमा (Middle finger)
4. पृथ्वी (Earth)- अनामिका (Ring finger)
5. जल (Water)-कनिष्ठा (Little finger)
पंच तत्व के असंतुलन से शरीर के अंदर विभिन्न प्रकार के रोग पैदा होते हैं। व्यक्ति अगर पंच तत्वों का संतुलन बनाना सीख जाए तो शरीर को सदैव स्वस्थ रख सकता है।
1.अग्नि तत्व की अधिकता
-त्वचा संबंधी रोग (खाज, खुजली, एग्जिमा, सोरायसिस), पेट की गर्मी बढ़ने से अम्ल पित्त हो जाता है, छाती में जलन, बवासीर, उच्च रक्तचाप, बुखार, क्रोध, मानसिक तनाव बढ़ना इत्यादि।
1.अग्नि तत्व की कमी
-शरीर में ठंडक, सर्दी, जुकाम, साइनस, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, निमोनिया, मानसिक रोग, अवसाद, ऊर्जा की कमी, स्मरण शक्ति कम होना, निम्न रक्तचाप, पेट की अग्रि मंद पड़ने से भोजन का पाचन ठीक से नहीं हो पाता, मधुमेह, मेटाबोलिज्म बिगड़ जाना, फैट जमा होना, मोटापा, इत्यादि।
2.वायु तत्व की अधिकता
-गैस संबंधी रोग, रक्त संचार में असंतुलन, जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, सर्वाइकल, साइटिका, मांसपेशियों का दर्द, हृदय की पीड़ा, हार्टअटैक, लकवा, पोलियो, पेट दर्द, इत्यादि।
2.वायु तत्व की कमी
-श्वास रोग, मानसिक तनाव, निराशा, कमजोर स्मरण शक्ति, मंद जठराग्रि, मानसिक रोग, स्रायु तंत्र के रोग इत्यादि।
3.आकाश तत्व की अधिकता
-सुनने व बोलने के रोग, गले के रोग, कफ रोग, कान दर्द, सुनाई कम देना, कानों के समस्त रोग, तुतलाना, आवाज बैठ जाना, छोटे बच्चों का देर से बोलना, गूंगे बहरे बच्चे पैदा होना, थायराइड के रोग, इत्यादि।
3.आकाश तत्व की कमी
-हड्डियां कमजोर होना, जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, कैल्शियम की कमी, इत्यादि।
4.पृथ्वी तत्व की अधिकता
-मोटापा, कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना, शुगर की अधिकता, शरीर में भारीपन, इत्यादि।
4.पृथ्वी तत्व की कमी
-खून की कमी, कमजोरी, हिमोग्लोबिन की कमी, विटामिन व खनिज तत्वों की कमी, हड्डियां व मांसपेशियों का कमजोर होना,बच्चों के शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न होना, कद न बड़ना, बालों का झड़ना,सफेद जल्दी होना,सर्दी, जुखाम अस्थमा,हर्निया, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना, इत्यादि।
5.जल तत्व की अधिकता
-शरीर में पानी का भरना (फेफड़ों पेट, मस्तिष्क, घुटनों), हाथ पैर में मोच आना, शरीर में कहीं सूजन आना, सर्दी, जुखाम, नाक व आंखों से पानी बहना, इत्यादि।
5.जल तत्व की कमी
-डिहाइड्रेशन, त्वचा में सूखापन, त्वचा के रोग, हाथ पैर की हड्डियां व होठों का फटना, त्वचा की कोमलता खत्म होना, चेहरे पर झुर्रियां पड़ना, दाग, धब्बे, पिंपल्स, बालों में रुसी डैंड्रफ, आंखों में सूखापन, गुस्सा आना, प्रजनन अंगों के रोग, ओवरी, गर्भाशय, मूत्र रोग, मूत्राशय में पत्थरी का बनना इत्यादि।
निवेदन
-ओम योग सेवा संस्था श्री डूंगरगढ़ द्वारा जनहित में जारी।