सत्यार्थ न्यूज़ भीलवाड़ा
रिपोर्टर अब्दुल सलाम रंगरेज
8 जुलाई से इस्लामी नव वर्ष शुरू_
17 जुलाई को निकलेंगे ताजिए_
भीलवाड़ा__ 8 जुलाई से इस्लामी नव वर्ष मोहर्रम का महीना शुरू हो गया है। काछोला मस्जिद के पेश इमाम हाफिज मोहम्मद रजा ने बताया कि मोहर्रम का महीना हजरत हसन हुसैन की याद दिलाता है। जो इस्लाम के लिए शहीद हो गए थे।
उन्होंने बताया कि यजीद ने जब लोगों पर जुल्म करना शुरू कर दिया और अपने आप को खलीफा मानने लगा तब हजरत इमाम हुसैन ने उसे खलीफा मानने से इनकार कर दिया। तब यजीद के जुल्म और बढ़ने लगे।हजरत इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ 2 मोहर्रम को कर्बला पहुंचे ।उनके काफिले में छोटे-छोटे बच्चे, औरतें और बूढ़े भी थे।
9 मोहर्रम की रात हुसैन ने रोशनी बुझा दी और कहने लगे, ‘यजीद की सेना बड़ी है और उसके पास एक से बढ़कर एक हथियार हैं। हुसैन ने कहा जो भी जाना चाहे जा सकता है।
10 मुहर्रम की सुबह हुसैन ने नमाज पढ़ाई. तभी यजीद की सेना ने तीरों की बारिश कर दी. सभी साथी हुसैन को घेरकर खड़े हो गए और वह नमाज पूरी करते रहे।
इसके बाद दिन ढलने तक हुसैन के 72 लोग शहीद हो गए, जिनमें उनके छह महीने का बेटा अली असगर और 18 साल का बेटा अली अकबर भी शामिल था। बताया जाता है कि यजीद की ओर से पानी बंद किए जाने की वजह से हुसैन के लोगों का प्यास के मारे बुरा हाल था।प्यास की वजह से उनका सबसे छोटा बेटा अली असगर बेहोश हो गया. वह अपने बेटे को लेकर दरिया के पास गए। उन्होंने बादशाह की सेना से बच्चे के लिए पानी मांगा, जिसे अनसुना कर दिया गया।यजीद के हुक्म से देखते ही देखते उसने तीन नोक वाले तीर से बच्चे की गर्दन को लहूलुहान कर दिया। नन्हे बच्चे ने वहीं दम तोड़ दिया। हुसैन की गर्दन जब जमीन पर गिरी तो वह सजदे में थे।
कर्बला की जंग में हुसैन का पूरा परिवार शहीद हो गया था। मुहर्रम महीने के 10वें दिन को आशुरा कहते हैं. बाद में मुहर्रम का महीना गम और दुख के महीने में बदल गया.
मुहर्रम खुशियों का त्योहार नहीं बल्कि मातम और आंसू बहाने का महीना है।हुसैन की शहादत को याद करते हुए जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है।