कौन सा आसन किस रोग में करें जानिए
योग एक्सपर्ट ओम कालवा के साथ।
न्यूज रिपोर्टर मनोज मूंधड़ा बीकानेर श्री डूंगरगढ़
श्री डूंगरगढ़। कस्बे के राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त योगगुरू ओम प्रकाश कालवा ने जानकारी देते हुए बताया। आज की इस खबर में 92 योगासनो के बारे में विस्तृत चर्चा करते हुए कहा की प्रत्येक आसन का अभ्यास अनुभवी योग प्रशिक्षक की देखरेख में ही करें क्योंकि गलत आदतों, गलत आहार व्यवहार तथा प्रारब्ध कारणों से शरीर के अंदर अनेक रोग पैदा हो जाते है उनके निवारण हेतु इन सभी विशेष आसनों के बारे में कालवा जी बताते हैं कि ये आसन बहुत ही कारगर साबित होंगे।
1. पद्मासन – मन की शांति, मन को एकाग्र करने के लिए, यौन रोग, हर्निया, वीर्यदोष, आँख, आंमवात जठराग्नि, वातव्याधि, अजीर्ण, आँतों के रोग, ब्रह्मचर्य, बवासीर आदि।
2. शवासन – उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अनिद्रा, सिरदर्द, शारीरिक थकावट, तनाव, तुतलाहट, मानसिक थकान, आदि।
3. अश्वासन मोटापा, बवासीर, कमर दर्द, कब्ज, नाभि टलना, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, तनाव, शारीरिक थकावट आदि।
4. उत्तानपादासन – मोटापा, बवासीर, नाभि टलना, गर्भाशय दोष, घुटने का दर्द, सायटिका, हार्निया, पेटदर्द, श्वास रोग, आँत उतरना, गैस, कमर दर्द, टाँगों की दुर्बलता, कब्ज, और मोटापा कम करने के लिए हृदय, श्वास रोग, अतिसार, दस्त आदि।
5. पवनमुक्तासन – मोटापा, गैस, यकृत, गठिया, शुगर, हल्का पेट दर्द, तनाव आँतों के रोग, अम्लपित्त, सियाटिका, चर्बी कम करना, तिल्ली, प्लीहा, पर प्रभाव स्लिप डिस्क, हृदय, गर्भाशय, कटि पीडा, स्त्रीरोग, आदि।
6. पश्चिमोत्तानासन – अजीर्ण, मोटापा, कब्ज, मदाग्नि, मधुमेह, आमवात, कृमि, दोष, हार्निया, पौरुष शक्ति, वीर्य दोष, बौनापन, बवासीर, गठिया, जठराग्नि, कद, पृष्ठभाग की मांसपेशिया आदि।
7. चक्रासन- मोटापा, कमर दर्द, कब्ज, मधुमेह, नाभि टलना, आमवात, कृमि दोष, गर्भाशय रोग, बौनापन, कटिपीडा, श्वास रोग, सिरदर्द, नेत्र रोग, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, रीड की हड्डी, गर्भाशय, जठर, आँत आदि।
8. सर्वांगासन – अनिद्रा, बवासीर, गैस, नेत्ररोग, वीर्यदोष, सूजन, गला, यकृत, खाँसी, मोटापा, दुर्बलता, कृमि, गर्भाशय दोष, फेफडे, कद वृद्धि, दमा, उदर, हर्निया, हल्का पेट दर्द, बाल सफेद, पिट्यूटरी ग्रंथि, अजीर्ण-बदहजमी, जुकाम, तिल्ली-प्लीहा, पांडु रोग, तनाव, मंदाग्नि, कब्ज, कुष्ठ, शुक्रग्रंथि, एड्रिनल ग्रंथि, थायरायड आदि।
9. हलासन – मोटापा, अनिद्रा, कब्ज, दमा, मधुमेह, गला, यकृत, तनाव, गर्भाशय दोष, पांडु, बौनापन, दुर्बलता, पौरुष शक्ति, बौनापन, जुकाम, कंठमाला, अजीर्ण, मंदाग्नि, खांसी, गुल्म, वात, कब्ज, बुढापा, जुकाम, तिल्ली-प्लीहा, मानसिक रोग, हृदय रोग, थायरायड, डायबिटीज, स्त्रीरोग, मेरूदण्ड, अग्नाशय, रीढ, अग्नाशय, रीड की हड्डी, आदि। सावधानी बढी तिल्ली, यकृत, उच्च रक्तचाप, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, मेंरूदण्ड मे टीवी वाले न करे।
10. मत्स्यासन – बवासीर, अजीर्ण-बदहजमी, जुकाम, पैर, दमा, गला, सर्वाइकल व स्लिप डिस्क, मंदाग्नि, यकृत, फेफडे, गठिया, तनाव, मासिकधर्म, बाल सफेद, नाभिटलना, कब्ज, गठिया, मंदाग्नि, हार्निया, आँतों के रोग, थायरॉयड, पैराथायरॉयड, एड्रिनल ग्रंथि विकार आदि।
11. मयूरासन – मोटापा, अजीर्ण-बदहजमी, कृमि, पांडु, मंदाग्नि, कब्ज, गैस, आमवात, जठराग्नि, बवासीर, तिल्ली, यकृत, गुर्दे, अमाशय, अग्नाशय, मधुमेह आदि।
12. उष्ट्रासन – कमरदर्द, मोटापा, गैस मंदाग्नि, दमा, गला, सर्वाइकल व स्लिप डिस्क, फेफडे, गठिया, नेत्र रोग, पांडु, बौनापन, सियाटिका, श्वसन तंत्र, थायरॉयड आदि।
13. वज्रासन – गैस, मंदाग्नि, मधुमेह, फेफडे, पांडु (पीलिया), साईटिका, वीर्य दोष, अपचन, अम्लपित्त, कब्ज आदि।
14. सुप्त वज्रासन – गला, सर्वाइकल, स्लिप डिस्क, गठिया, मासिकधर्म, कमर दर्द, कब्ज, थायराइड, गले के रोग दमा, तनाव, पौरूष-शक्ति, खाँसी, पेट, बडी ऑत, नाभि, गुर्दों के रोग बवासीर, फेफडे, आदि।
15. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन – कमरदर्द, अजीर्ण बदहजमी, मधुमेह, आमवात, कृमि, फेफडे, पौरुष शक्ति, कब्ज, सायाटिका, वृक्कविकार, सर्वाइकल व स्लिप डिस्क, रक्त संचरण, उदरविकार, आँत, पृष्ठदेश आदि।
16. गौमुखासन – दमा, फेफडे, कमरदर्द, हृदय दुर्बलता, गठिया, सर्वाइकल व स्लिप डिस्क, सन्धिवात, मधुमेह, यकृत, हृदय रोग, अनिद्रा, रीढ का टेढापन, गुर्दे, स्वप्नदोष, गर्दन तोड बुखार, बहुमूत्र अंडकोष वृद्धि, आंत्र वृद्धि, बहुमूत्र, धातुरोग तथा स्त्री रोग आदि।
17. भुजंगासन – अजीर्ण, बदहजमी, मंदाग्नि, मधुमेह, नाभि टलना, सर्वाइकल, व स्लिपडिस्क, गला, यकृत, गर्भाशय दोष, पांडु, तिल्ली-प्लीहा, खाँसी, बौनापन, कमरदर्द, दमा, कटिवात, जांघों का दर्द मासिक धर्म, कुबडापन आदि।
18. शलभासन – कब्ज, मंदाग्नि, यकृत, रीढ तथा कमर का दर्द, अजीर्ण, दुर्बलता, मेरूदण्ड के निचले भाग, सियाटिका का दर्द आदि।
19. नौकासन – मोटापा अजीर्ण-बदहजमी, मधुमेह, नाभि टलना, हृदय, फेफडे, आमाशय, अग्नाशय आँत, यकृत आदि।
20. धनुरासन – मोटापा, कमरदर्द, वीर्यदोष, गठिया, नाभि टलना, बौनापन, शारीरिक थकावट, तनाव, अजीर्ण-बदहजमी, सायटिका, गैस, गुर्दे, सर्वाइकल, स्पॉण्डलाइटिस, उदर, आदि।
21. गरुडासन – गठिया, घुटने का दर्द, हर्निया, सायटिका, अण्डकोष वृद्धि, पौरुष ग्रंथि, मूत्ररोग, गुर्दे, मोटापा, गुप्त रोगों में, हाइड्रोसिल, बवासीर, हाथ पैर की अन्य विकृति आदि। (सूरज निकलने के बाद, सूरज डूबने से पहले, समय- 15-60 मि०)
22. योगमुद्रासन – (1,2) मोटापा, अनिद्रा, बवासीर, गैस अजीर्ण-बदहजमी, वीर्य दोष, यकृत, गठिया, हल्का पेट दर्द, पौरुष शक्ति, कब्ज, फेफडे संबधी रोग, प्लीहा उदर, डायबिटीज, जठराग्नि, माईग्रेन आदि।
23. शीर्षासन – अनिद्रा, वीर्यदोष, जुकाम, मधुमेह, सूजन, खाँसी, कृमि, बाल सफेद, तनाव, गर्भाशय दोष, शिरपीडा, कान, आँख, नेत्र रोग, मोटापा, सिर के बाल उडना, झुर्रियां पडना, वीर्यपात, पिट्युटरी एवं पीनियल ग्रंथि, मेधा-स्मृति, प्रमेह, नपुंसकता, थायरॉयड, अमाशय, आँत, वेरिकोज वेन्स, कब्ज, हार्निया, यकृत, आदि।
24. ताडासन – बौनापन, सर्वाइकल, स्लिप डिस्क, कद आदि।
25. उत्कटासन – कमरदर्द, सूजन, कब्ज, गठिया, हार्निया, पथरी, घुटने का दर्द, सायाटिका, बेरी-बेरी, ब्रह्मचर्य, बवासीर आदि ।
26. अर्धकूर्मासन – अजीर्ण, कमरदर्द, उदररोग, आँव, अग्न्याशय, आदि।
27. शशकासन – कमरदर्द, तिल्ली, प्लीहा, पाचन शक्ति, थायरॉयड, स्त्रीरोग, हृदयरोग, तनाव, मानसिक रोग गर्भाशय आँत, यकृत अग्न्याशय, गुर्दो, मोटापा आदि।
28. जानुशिरासन – (महामुद्रा) अजीर्ण, आँतों के रोग, कटिवात, मधुमेह, जांघो के रोग, तिल्ली, प्लीहा, पांडुरोग, नाभि पश्चिमोत्तासन के समान लाभ आदि।
29. पाद-हस्तासन – कमर दर्द, कटिवात, जांघों का दर्द, तिल्ली, प्लीहा, मानसिक रोग, कदवृद्धि, पेट आदि।
30. अर्धचंद्रासन – आँतों के रोग, कुबडापन, यकृत, प्लीहा, श्वसन तंत्र, दमा, थायरॉयड, सर्वाइकल, स्पाण्डलाइटिस, सियाटिका आदि।
31. मण्डूकासन – (1,2) डायबिटीज, उदर व हृदयरोग, अग्न्याशय आदि।
32. मर्कटासन – (1,2,3)- सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, स्लिप डिस्क, सियाटिक, कमर दर्द, पेटदर्द, कब्ज, दस्त, गैस, नितम्ब, जोडो के दर्द आदि।
33. सिंहासन – थायरॉयड, टॉसिल, कान का रोग, गला रोग, हकलाना, तुतलाना आदि।
34. वक्रासन – डायबिटीज, कमर की चर्बी कम करने, यकृत व तिल्ली आदि।
35. बद्धपदासन – स्त्री व पुरुष की छाती विकास, हाथ, कंधे व सम्पूर्ण पृष्ठभाग, जठराग्नि, वातव्याधि, आदि।
36. बह्मचर्यासन- धातुरोग, स्वप्नदोष व प्रमेह, मधुमेह, ब्रह्मचर्य आदि।
37. वृक्षासन – मन की चंचलता स्नायुमंडल, वीर्य, नेत्र रोग, धातुरोग, कफ रोग, हृदय, फेफडे आदि।
38. तिर्यक् ताडासन – कटि प्रदेश लचीला, पार्श्व भाग की चर्बी को कम करना आदि।
39. कटि चक्रासन – कब्ज, ऑत, गुर्दे, तिल्ली, अग्न्याशय, मासिक धर्म, कमर गर्दन, शरीर में जकडन आदि।
40. कोणासन – कमर माँस पेशियों के दर्द, फेफडों की कमजोरी, स्त्री के लिए उपयोगी आदि।।
41. त्रिकोणासन – कटि प्रदेश लचीला, पार्श्व भाग की चर्बी को कम करना, पृष्ठांश की मांस पेशियों को बल, छाती का विकास आदि।
42. चलितपाद हस्तासन – मोटापा, कद, कमर एवं पेट की चर्बी को कम करना आदि।
43. मकरासन – (1,2) स्लिप डिस्क, सर्वाइकल स्पॉण्डिलाइटिस, सियाटिका, अस्थमा, घुटनों का दर्द, फेफडो के रोग आदि।
44. अर्धहलासन – मोटापा, नाभि टलना, गर्भाशय, आँत, टाँग, उत्तानपादासन के समान लाभ आदि।
45. कटि उत्तानपादासन – स्लिप डिस्क, सियाटिका, कमर दर्द आदि ।
46. पादवृत्तासन – जंघा, नितम्ब एवं कमर दर्द, पेट सुडौल, आँत, मोटापा, उदर रोग आदि।
47. द्विचक्रिकासन – मोटापा, कमर दर्द, पेट, आँत, कब्ज, मंदाग्नि, अम्लपित्त, उदर रोग आदि।
48. कन्धरासन – सूर्य केन्द्र (नाभि), बन्ध्यत्व, मासिक विकृति, श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर व धातुरोग, गर्भाशय, पेटदर्द, कमर दर्द, आदि।
49. पादागुष्ठनासास्पर्शासन – नाभि, कब्ज, गैस, अतिसार, आलस्य, पेट दर्द, आमाशय, अग्न्याशय, आँत आदि।
50. कर्ण-पीडासन – कर्ण रोग, लाभ हलासन के समान आदि।
51. दीर्घनौकासन – पेट, पीठ, हृदय, स्त्रियोंकी देह सुडौल, लाभ-नौकासन के समान, (गर्भावस्था मे न कर) आदि।
52. पृष्ठतानासन – पृष्ठभाग की सम्पूर्ण नस-नाडियों के लिए आदि।
53. कूर्मासन – अग्न्याशय, उदर, हृदय आदि।
54. पूर्णमत्स्येन्द्रासन – मधुमेह, कमर दर्द, मेरूदण्ड, उदर आदि।
55 पशुविश्रामासन – मधुमेह, कमर के पाश्रों में बढी हुयी चर्बी को कम करता आदि।
56. बालासन (विश्रामासन) – मानसिक तनाव (डिप्रेशन), अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, थकान, नकारात्मक चिन्तन, स्नायु दुर्बलता, शरीर, मन, मस्तिष्क, आत्मा को विश्राम, शक्ति, उत्साह, आनन्द आदि।
57. सेतुबन्ध आसन – स्लिप डिस्क, कमर, ग्रीवा-पीडा, उदर में विशेष आदि।
58. पूर्ण या विस्तृत भुजंगासन – सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, स्लिप डिस्क, भुजंगासन के समान लाभ आदि।
59. पूर्ण धनुरासन – मेरूदण्ड लचीला, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, कमर दर्द, उदर, नाभि टलना, मासिक धर्म, गुर्दों के रोग आदि।
60. विपरीत नौकासन (नाभि आसन) – मेरूदण्ड रोग, नाभि गैस, यौन रोग, पेट, कमर व मोटापा आदि। (स्त्री न करे)
61. अर्धचन्द्रासन – श्वसन तंत्र, फेफडा, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, सियाटिका थायरॉयड आदि।
62. एकपाद ग्रीवासन – स्कन्ध व वक्ष बलवान, उदर, मेद, पैर व टाँगे लचीली आदि।
63. सिद्धासन – ब्रह्मचर्य, कामवेग, बवासीर, यौन रोग, कुण्डिलिनी जागरण, हृदय रोग, दमा, शुगर, स्मरण शक्ति, एकाग्रता आदि।
64. कुक्कुटासन – हाथ एवं कन्धे आदि।
65. उत्तान कुक्कुटासन – हाथ एवं कन्धे आदि।
66. सुप्तगर्भासन – हाथ, पैर, कमर एवं पेट आदि।
67 गर्भासन – जठराग्नि, पाचन तन्त्र आदि।
68. तोलांगुलासन – हाथ, पैर की सम्पूर्ण स्नायुओं को बल आदि।
69. शंखासन – समस्त रोग, उदर, कब्ज, मंदाग्नि, गैस, अम्लपित्त, बवासीर, मोटापा, मधुमेह, श्वांस रोग, हृदय रोग, मासिक धर्म आदि।
70. पर्वतासन – मन की एकाग्रता आदि।
71. मार्जारासन – कटि-पीडा, गुदा भ्रंश, फेफडा, पेट की चर्बी, गर्भाशय बाहर निकलने के रोग में, आदि।
72. वृश्चिकासन – जठराग्नि, उदर, मूत्रविकार, मुखकान्ति आदि।
73. प्रसृतहस्त वृश्चिकासन – जठराग्नि, उदर, मूत्रविकार, मुखकान्ति आदि।
74. पादांगुष्ठासन – ब्रह्मचर्य, वीर्य, ओज, तेज उदरविकार, नाभि डिगना, आदि।
75. गोरक्षासन – ब्रह्मचर्यासन का पूरक, इन्द्रियों की चंचलता, मन को शांति आदि।
76. आकर्णधुनष्टकारासन – हाथ-पैर के जोड़ों के दर्द, कम्पावत आदि।
77. भूनमनासन – जंघा, टाँगे, कमर, पीठ, उदर वीर्य आदि।
78. स्कन्धपादासन – हाथ-पैर, ग्रीवा के स्नायु आदि।
79. द्विपादग्रीवासन – हाथ पैर व ग्रीवा के स्नायु स्कन्धपादासन के समान लाभ आदि।
80. बकासन – हाथों की स्नायुओं को बल, मुख कान्ति, मोटापा, पेट रोग आदि।
81. उपधानासन (तकियासन) – हाथ पैर गर्दन के स्नायु आदि।
82. हस्तपादागुष्ठासन – हाथ-पैर के रोग आदि।
83. ध्रुवासन – मन की चंचलता, स्नायु मंण्डल का विकास आदि।
84. पक्ष्यासन – मस्तिष्क विकार, जंघा की स्नायु शक्ति का विकास, शरीर में हल्कापन, व स्फूर्ति देने वाला आदि।
85. नटराजासन – हाथ पैर की स्नायु का विकास आदि।
86. वातायनासन – घुटने के विकार, जंघाओं में जलन की वृद्धि करना, हर्निया आदि।
87. ऊर्ध्वताडासन – बौनापन, सर्वाइकल व स्लिप डिस्क आदि
88. तिर्यक भुजंगासन – मेरूदण्ड से सम्बन्धित रोगो में, कमर, सर्वाइकल, कमरदर्द, सियाटिका आदि।
89. कटिआसन – स्लिप डिस्क, कमर, ग्रीवा-पीडा, गर्भावस्था के शुरूवाती माह में आदि।
90. कन्धरासन – मासिक विकार, थायराइड, गर्भावस्था के शुरूवाती माह में, स्लिप डिस्क, कमर, ग्रीवा-पीडा, उदर में विशेष आदि।
91. हनुमानासन – कूल्हे, जांघ, घुटने मजबूत व लचीली मांसपेशियां, नाभि के निचले भाग की हड्डी लचीली. सियाटिका, प्रजनन शक्ति, मासिक धर्म, कमर पतली आदि ।
92. बद्धकोणासन (तिल्ली आसन) – शरीर लचीला, थकान दूर, प्रसव का आसन, जांघो व घुटनों में खिंचवा लाता है।
1.
नोट : इन सभी योगासनों का अभ्यास अनुभवी योग प्रशिक्षक की देखरेख में ही करें। साथ ही हमारे चैनल के साथ जुड़े रहे और हर दिन आपको मिलेगी योग से जुड़ी हुई तरोताजा खबर।