श्रावस्ती जनपद में यदि अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया जाता है तो यह न्यायिक प्रणाली की नींव हिला देता है, जो कानून के शासन को दुर्बल करता है। अदालत इसी की संरक्षा और सम्मान करती है। लोगों का न्यायिक प्रणाली में आस्था और विश्वास कायम रखने के लिए यह आवश्यक भी होता है, लेकिन जब न्याय पथ, कानून के राज और निष्पक्ष कार्रवाई की खिल्ली जिम्मेदार अधिकारी ही उड़ाने लगें तो यह सब उतनी ही झूठी हो जाती है … जितना सफेद कोयला। इनमें तनिक भी संशय हो तो कृपया किड़िहौना गांव में पहुंचे तहसीलदार के कार्यप्रणाली की असलियत को जान लीजिएगा।
मामला श्रावस्ती जिले के इकौना तहसील के किड़िहौना गांव का है। किड़िहौना अहिरनपुरवा निवासी रक्षाराम अपने घर के सामने पड़ी जमीन पर घूर आदि लगा रहे थे। राजनैतिक विद्वेष की भावना से ग्राम प्रधान के पति से मिलकर सतगुर आदि इस जमीन पर कब्जा करना चाहते थे। जब रक्षाराम को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने सिविल जज (प्रवर खंड) के यहां 22 दिसंबर 2023 एक वाद दायर किया।
इस पर न्यायालय ने दोनों पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। राजनैतिक विद्वेष की भावना से ग्रस्त होकर सतगुर आदि इनके कब्जे में नवीन परती का हवाला देकर बराबर दखल देने का प्रयास करते रहे। जबकि बगल में नवीन परती पर सतगुरु आदि ने अवैध कब्जा कर मकान भी बना लिया है। इस अवैध कब्जे को हटवाने के लिए कई बार शिकायत भी की जा चुकी है, लेकिन सरकारी जमीन पर बने मकान को ढहवाने के बजाय तहसील प्रशासन घूर हटवाने में ज्यादा रुचि दिखाने लगा। इसमें हल्का लेखपाल और ग्राम प्रधान प्रतिनिधि की सांठ गांठ होना बताया जाता है। पीड़ित रक्षा राम का आरोप है कि लेखपाल सरकारी कार्य कम गांव की राजनीति ज्यादा कर रहे हैं। यह भी आरोप है कि लेखपाल की शह पर ही इस जमीन को लेकर मारपीट भी हो चुकी है। पीड़ित पक्ष का यह भी आरोप है कि लेखपाल तहसील प्रशासन को गुमराह कर रहे हैं। नतीजतन बिना जांच पड़ताल के तहसीलदार इकौना ने मौके पर पहुंच कर वर्षों से काबिज जमीन पर घूर आदि तो हटवा दिया लेकिन बगल में नवीन परती पर बने सतगुरु के अवैध कब्जे को नहीं हटवाया। रक्षाराम ने बताया कि जब तहसीलदार को कोर्ट के स्टे आदेश को दिखाया गया तो उन्होंने कहा कि स्टे मतलब क्या होता है। पीड़ित परिवारों ने अभद्रता का भी आरोप लगाया है। हाल फिलहाल तहसीलदार की ओर से की गई कार्रवाई लोगों में चर्चा का विषय बनी हुई है। लाख टके सवाल यह भी उठ रहा है कि आम आदमी के लिए कानून कायदा है और दबंगों के लिए.. ? यह भी सच है जब अपना कर्मचारी दबंगों के साथ खड़ा हो तो अफसर उसकी तरफदारी तो करेंगे ही।