भारत की जनसंख्या: चुनौतियां और बदलाव की नई तस्वीर
लेखक: हरिशंकर पाराशर
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की हालिया स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन (SOWP) रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस, भारत के जनसांख्यिकीय परिदृश्य में गहरे बदलावों की ओर इशारा करती है। यह रिपोर्ट 2025 में होने वाली जनगणना से पहले भारत की आबादी के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों को रेखांकित करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2025 में भी दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहेगा, जिसकी जनसंख्या 1.46 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि, प्रजनन दर में कमी और जनसंख्या की संरचना में बदलाव भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन रहे हैं।
प्रजनन दर में कमी: एक चेतावनी
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate – TFR) अब घटकर 1.9 जन्म प्रति महिला हो गई है, जो प्रतिस्थापन दर (Replacement Rate) 2.1 से नीचे है। प्रतिस्थापन दर वह स्तर है, जिस पर जनसंख्या स्थिर रहती है, यानी एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को पूरी तरह से प्रतिस्थापित कर लेती है। 1.9 की प्रजनन दर का मतलब है कि भारत में अब औसतन एक महिला इतने बच्चे पैदा नहीं कर रही है, जितने जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए जरूरी हैं। यह स्थिति लंबे समय में जनसंख्या में कमी और जनसांख्यिकीय असंतुलन की ओर ले जा सकती है।
इस कमी के पीछे कई सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारक हैं। शहरीकरण, शिक्षा के स्तर में वृद्धि, महिलाओं की कार्यबल में बढ़ती भागीदारी, और आर्थिक अनिश्चितताएं जैसे नौकरी की कमी और रहने की जगह की समस्या ने युवाओं को छोटे परिवारों की ओर प्रेरित किया है। “हम दो, हमारे दो” का नारा अब पुराना पड़ता दिख रहा है, क्योंकि कई युवा जोड़े अब एक बच्चे या फिर बच्चे न पैदा करने का विकल्प चुन रहे हैं।
### *युवा आबादी: भारत का ताकतवर आधार*
भारत की जनसंख्या में युवाओं की हिस्सेदारी अभी भी इसकी सबसे बड़ी ताकत है। रिपोर्ट के अनुसार, देश की 68 प्रतिशत आबादी 15-64 वर्ष की कामकाजी आयु वर्ग में आती है। इसके अलावा, 24 प्रतिशत आबादी 0-14 वर्ष के बच्चों की है, 17 प्रतिशत 10-19 वर्ष के किशोरों की, और 26 प्रतिशत 10-24 वर्ष के युवाओं की है। यह युवा शक्ति भारत को आर्थिक विकास और नवाचार के लिए एक अनूठा अवसर प्रदान करती है, बशर्ते इसे शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के अवसरों के साथ जोड़ा जाए।
हालांकि, इस युवा आबादी का लाभ तभी उठाया जा सकता है, जब देश में पर्याप्त नौकरियां, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों। अन्यथा, यह जनसांख्यिकीय लाभ एक बोझ में बदल सकता है।
### *बुजुर्ग आबादी और जीवन प्रत्याशा*
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में बुजुर्ग आबादी (65 वर्ष और उससे अधिक) वर्तमान में केवल 7 प्रतिशत है। लेकिन बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और जीवन प्रत्याशा में सुधार के साथ यह अनुपात आने वाले दशकों में तेजी से बढ़ेगा। 2025 के अनुमानों के अनुसार, पुरुषों की औसत जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष और महिलाओं की 74 वर्ष होगी। यह एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन यह भी एक चुनौती है। बढ़ती बुजुर्ग आबादी के लिए सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और पेंशन योजनाओं की आवश्यकता होगी, जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक जटिल कार्य हो सकता है।
### *चुनौतियां और भविष्य की राह*
भारत की प्रजनन दर में कमी और जनसंख्या की संरचना में बदलाव कई सवाल खड़े करते हैं। पहला, क्या भारत अपनी युवा आबादी का लाभ उठा पाएगा, या यह बेरोजगारी और सामाजिक अस्थिरता का कारण बनेगी? दूसरा, क्या देश बढ़ती बुजुर्ग आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार है? तीसरा, प्रजनन दर में कमी को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों और सामाजिक बदलावों का क्या प्रभाव होगा?
इन सवालों के जवाब खोजने के लिए नीतिगत स्तर पर कई कदम उठाने की जरूरत है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश, रोजगार सृजन, और परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ छोटे परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करना जरूरी है। इसके अलावा, बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को मजबूत करना और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाना भी महत्वपूर्ण होगा।
### *निष्कर्ष*
UNFPA की यह रिपोर्ट भारत के लिए एक चेतावनी और अवसर दोनों है। प्रजनन दर में कमी और जनसंख्या की संरचना में बदलाव एक नई वास्तविकता की ओर इशारा करते हैं। भारत को अपनी युवा शक्ति का लाभ उठाने और बुजुर्ग आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक संतुलित और दूरदर्शी नीति की आवश्यकता है। यदि सही दिशा में कदम उठाए गए, तो भारत न केवल अपनी जनसांख्यिकीय चुनौतियों पर काबू पा सकता है, बल्कि एक मजबूत और समृद्ध भविष्य की नींव भी रख सकता है।
लेखक: हरिशंकर पाराशर, स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक विश्लेषक