बड़गांव धसान का राम भरोसे विकास सीएमओ पर लगाए तानाशाही के आरोप,
प्रशासन के आदेशों की उड़ाई जा रही है धज्जियां
कविन्द पटैरिया पत्रकार
टीकमगढ़। इन दिनों वैसे तो जिले की अधिकांश नगर परिषदों एवं नगर पालिका का विकास पटरी से पूरी तरह उतरा नजर आने लगा है। जहां विकास किया भी जा रहा है, तो वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। जिले में सीएमओ की तानाशाही के कारण आला अधिकारियों के आदेश की धज्जियां उड़ाने के साथ ही योजनाओं को धता दिखाने के आरोप गर्माने लगे हैं। कुछ इसी तरह की सरगर्मियां बड़ागांव नगर परिषद् में बनी हुई हैं। यहां भी टीकमगढ़ की तर्ज पर परिषद द्वारा निर्माण कार्यों के थमने और असुविधाओं के बढऩे से सीएमओ को हटाने पर जोर दिया जाता रहा है। यहां बता दें कि टीकमगढ़ नगर पालिका को तो सीएमओ नए मिल गए हैं, अब देखना है कि बड़ागांव के बिगड़ते हालातों में सुधार कब तक लाया जाता है। सूत्रों की मानें तो विवादों मे रहने वाली नगर परिषद् बड़ागांव सीएमओ ज्योति सुनरे की तानाशाही बढ़ती जा रही है। बीते दिनों समस्त पार्षदों ने कलेक्टर से अनियमितता की शिकायत के साथ विशेष सम्मलेन की मांग की थी, जिसके चलते आज विशेष सम्मलेन के आदेश दिए गए थे। बताया गया है कि जिसमें सीएमओ की तानाशाही नजर आई।
जब पार्षदों ने कार्यवाही विवरण पंजी मांगी तो नहीं दी गई। यहां जिन प्रस्तावों पर चर्चा की जानी थी, उन्हें नजर अंदाज कर दिया गया। बताया गया है कि चर्चा के लिए आवास, निर्माण कार्य सहित विभिन्न कार्यों को शामिल किया गया था, लेकिन इन मुद्दों पर किसी प्रकार की चर्चा नहीं की गई। यहां अनियमितता को नाराजगी बनी हुई है। कुल मिलाकर पार्षदों की नहीं सुनी गई, जिससे पार्षद परेशान हैं । सीएमओ अपनी मनमानी करने में लगी हुई हैं। आखिर सीएमओ पर कौन मेहरबानी कर रहा है, यह भी लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है। भाजपा के ही नगर परिषद् अध्यक्ष जो एक महिला हैं, वह भी सीएमओ की मनमानी के चलते हाथ पर हाथ धरे बैठी है। यदि कहा जाए कि यहां जनता द्वारा चुने गए पाषर्द और अध्यक्ष की ही नहीं सुनी जा रही हैं,तो गलत नहीं होगा। इस संबन्ध में मिल रही खबरों में बताया गया है कि उक्त मामले में सीएमओ ज्योति सुनरे ने बताया की बैठक उनके द्वारा बैठक नहीं ली गई, साथ ही बताया गया कि उनके स्टेम्प को कागजों में लगाकर फ र्जी हस्ताक्षर कर दुरुपयोग किया जा रहा है। इसमें कोई स्केम है, जबकि अधिकारियों द्वारा नियम अनुसार कार्रवाई की बात कही गई थी, ना की विशेष सम्मेलन की बात कही गई थी। बैठक में एक तिहाई पार्षदों के अनुमोदन की आवश्यकता होती है, जो कि नहीं था। हस्ताक्षर मिलान होने की भी बात कही गई। कुल मिलाकर सीएमओ अपने आप को बचाती नजर आ रही है। अब सोचने वाली बात यह है कि भाजपा की सरकार में भाजपा के नगर परिषद् अध्यक्ष एवं पार्षद, जिसमें कांग्रेस के पार्षद भी शामिल हैं, जिनके द्वारा टीकमगढ़ से लेकर सागर तक गुहार लगाई जा चुकी हैं, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। यहां निंदा प्रस्ताव भी पास नहीं किया गया। अब इस सारे मामले को लेकर जनप्रतिनिधि परेशान हैं। जब जनता उनसे सवाल पूंछती है, काम की बात करती है, तो उन्हें शर्मिंदा होना पड़ता हैं । नगर परिषद के जनप्रतिनिधि पर अफ सर भारी हैं। ऐसे में जनता की पुकार का असर नहीं होता दिखाई दे रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि यहां हो रहे भ्रष्टाचार और लापरवाही पर पर्दा डालने में अब तक अधिकारी कामयाब होते रहे हैं। अब देखना है कि नगर परिषद के पार्षदों द्वारा सीएमओ के विरोध का क्या असर होता है। आखिर क्यों इतने भ्रष्टाचार के बाद भी जिम्मेदार चुप्पी साधे हैं….?