सवांददाता मीडिया प्रभारी मनोज मूंधड़ा बीकानेर श्रीडूंगरगढ
हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवउठनी, देवोत्थान और देवप्रबोधिनी के नाम से जाना जाता है तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्रीहरि भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी पर चार महीने की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। भगवान विष्णु के जागने पर इस दिन तुलसी विवाह किया जाता है। भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप संग तुलसी विवाह विधि-विधान के साथ किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह करना बहुत ही शुभ और मंगलकारी माना जाता है। देवउठनी एकादशी पर सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप के साथ तुलसी जी का विवाह कराने पर सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
तुलसी विवाह 2024 तिथि
पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 नवंबर की शुरुआत 11 नवंबर की शाम 6 बजकर 46 मिनट पर शुरू होगी। वही तिथि का समापन 12 नवंबर को शाम 4 बजकर 4 मिनट पर होगा। उदयव्यापनी एकादशी 12 नवंबर को होने से देवउठनी एकादशी इसी दिन मनाई जाती है। इस पुरे दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाएगा।
तुलसी विवाह मुहूर्त 2024
12 नवंबर 2024 को तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल में शाम 5 बजकर 29 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।
तुलसी विवाह का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी पर भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह का बहुत ही विशेष महत्व होता है। चार महीने की योगनिद्रा के बाद जब प्रभु जागते हैं तो उस दिन सभी देवी-देवता मिलकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। भगवान विष्णु के जागने पर चार महीने से रुके हुए सभी तरह के मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। इस दिन भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह किया जाता है। ऐसा करने पर वैवाहिक जीवन में आ रही बाधाएं खत्म होती है और जिन लोगों के विवाह में रुकावटें आती हैं वह भी दूरी हो जाती है। शास्त्रों के अनुसार तुलसी-शालिग्राम का विवाह करने पर कन्यादान के बराबर का पुण्य लाभ मिलता है। अगर किसी के विवाह में तरह-तरह की अड़चनें आती हैं या फिर विवाह बार-बार टूटता है तो इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन शुभ माना गया है।
तुलसी पूजन की विधि:-
*तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।
* तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।
* तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
* गमले में सालिग्राम जी रखें।
*शालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।
* तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
* गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
*अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।
*देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।
* कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
* प्रसाद चढ़ाएं।
* 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
* प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें।
* प्रसाद वितरण अवश्य करें।
* पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-
उठो देव सांवरा,भाजी,बोर आंवला,गन्ना की झोपड़ी में शंकर जी की यात्रा।
तुलसी मंत्र:-
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः । नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये ।।
ॐ सुभद्राय नम:, मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी,नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते।।
महाप्रसादजननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
ॐ श्री तुलस्यै विद्महे।
विष्णु प्रियायै धीमहि।
तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।
इस लोक आह्वान का भोला सा भावार्थ है – हे सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें।
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी देव को जगाया जा सकता है-
‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥’
‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’
‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।’
पंडित जगदीश आसोपा
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